(संपादकीय टिप्पणी – चुनावी रिपोर्टिंग के लिए जीआईजेएन ने पांच खंडों की मार्गदर्शिका तैयार की है। परिचय खंड और पहला अध्याय आप पढ़ चुके होंगे। यह दूसरा अध्याय‘है। प्रत्याशियों की जांच पर केंद्रित तीसरा अध्याय पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। चौथा अध्याय राजनीतिक संदेश और गलत सूचनाओं पर केंद्रित है।)
लोकतांत्रिक चुनावों को स्वतंत्र, निष्पक्ष और विश्वसनीय होना चाहिए। चुनाव आचार संहिता के अनुसार चुनाव कराना तथा मतदाताओं को सभी आवश्यक सूचनाएं प्रदान करना अनिवार्य है। खोजी पत्रकारों को देखना चाहिए, जो होना चाहिए, और वास्तव में जो हो रहा है, इसके बीच क्या कोई कमी है। जनाकांक्षाओं से खिलवाड़ के पीछे दोषी कौन लोग हैं? चुनाव आचार संहिता का कितना अनुपालन हो रहा है?
विशेषज्ञों का कहना है कि पत्रकारों को चुनावी रिपोर्टिंग की पूर्व-तैयारी जरूर करनी चाहिए। उन्हें चुनाव आचार संहिता और चुनावों को नियंत्रित करने वाले नियम-कानून सीखना चाहिए। अपने डेटा और स्रोतों को सुरक्षित रखने के लिए टूल और तरीकों का निर्धारण पहले ही कर लेना चाहिए। इसके अलावा, राजनीतिक प्रवृत्तियों, स्रोतों और खतरों को सूचीबद्ध करना चाहिए। इससे पत्रकारों को महत्वपूर्ण जांच करके अच्छी खोजी खबरें निकालने में मदद मिल सकती है।
इस अध्याय में ऐसे नियमों और तकनीकी प्रवृत्तियों की जानकारी दी गई है, जिनके बारे में पत्रकारों को जानना जरूरी है। जैसे, विभिन्न क्षेत्रों में मतदान प्रक्रिया कैसे बदल रही है? चुनाव में विदेशी हस्तक्षेप के सबूत कैसे प्राप्त करें? लोकतंत्र में तानाशाही प्रवृतियों की निगरानी कैसे करें? इसके अलावा, निरंकुश ताकतों द्वारा अपने तरीके से चुनाव कराने की लोकतंत्र विरोधी रणनीति की जानकारी भी दी गई है।
चुनाव अभियान के दौरान पत्रकारों को सुरक्षित रखने के संसाधनों की सूची भी यहां दी गई है। चुनाव में खबर देने की समयसीमा (डेडलाइन) का पालन करने का तरीका भी बताया जाएगा। सूचनाओं की बाढ़ को संभालने के लिए डिजाइन किए गए कई टूल भी इस अध्याय में बताए गए हैं। प्रमुख पत्रकारों ने चुनावी तैयारियों के लिए कुछ सुझाव दिए हैं। जैसे, राजनीतिक नेताओं, कार्यकर्ताओं की ट्विटर सूची खोजने के लिए एक सरल उपकरण का उपयोग करना, वेबसाइट में किसी परिवर्तन की जानकारी के लिए स्वचालित अलर्ट सेट करना, चुनाव अधिकारियों के साथ फोन नंबरों का आदान-प्रदान करना इत्यादि कई जानकारी भी इस अध्याय में मिलेगी। चुनाव से पहले ऐसी तैयारियां कर लेने से चुनाव के वक्त पत्रकारों को काफी लाभ होगा।
रिपोर्टिंग का आधार तैयार करना
चुनावी नियमों को जानें
दुनिया के विभिन्न देशों में चुनाव की तीन प्रणाली लागू हैं। लगभग आधे देशों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली लागू है। हर एक पार्टी को मिले कुल वोट के प्रतिशत के अनुपात में उतनी ही संसदीय सीटें आवंटित की जाती हैं। इससे छोटे दलों को भी कुछ सीटें हासिल करके संसद में आने और नए कानून बनाने का मौका मिलता है। लगभग एक चौथाई देशों में हर एक संसदीय क्षेत्र में सर्वाधिक वोट पाने वाले एक प्रतिनिधि को सांसद चुना जाता है। शेष एक चौथाई देशों में दो बुनियादी प्रणालियों के संयोजन पर आधारित चुनाव होता है। इस डेटाबेस में चुनावी सिस्टम के बीच अंतर देखें। प्रत्येक चुनाव के साथ विभिन्न नियम अक्सर बदलते रहते हैं। खोजी पत्रकारों को नियमों में बदलाव की जानकारी होनी चाहिए। आपके देश के चुनावी नियमों को समझने के लिए संसाधनों की एक सूची नीचे दी गई है।
- जिस देश में रिपोर्टिंग करनी हो, वहां की चुनावी प्रबंधन प्रणाली, संवैधानिक प्रावधान और नागरिक संगठनों की पूरी जानकारी हासिल करें।
- ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस‘ (इंटरनेशनल आईडिया) द्वारा संकलित इलेक्टोरल सिस्टम डिजाइन डेटाबेस देखें। इसमें 217 देशों की चुनावी संरचना पर विस्तृत और तुलनात्मक डेटा उपलब्ध है।
- एसीई इलेक्टोरल नॉलेज नेटवर्क – इसमें मतदान संबंधी 11 विषयों पर 200 से अधिक देशों का चुनावी डेटा उपलब्ध है।
- ओपन इलेक्शन डेटा इनिशिएटिव – इसमें लैटिन अमेरिका की चुनाव प्रक्रिया विस्तार से बताई गई है। वहां चुनाव अभियान के वित्तीय मामलों का अध्ययन भी उपलब्ध है। चुनाव संबंधी किस प्रकार का डेटा किस तरह सार्वजनिक रूप से मिल सकता है, यह भी बताया गया है।
- वर्ष 2014 के बाद 17 लैटिन अमेरिकी देशों से जुड़े चुनावी डेटा की 14 श्रेणियों में सार्वजनिक उपलब्धता का विश्लेषण दिया गया हे। यह विश्लेषण अब पुराना हो चुका है। लेकिन ग्राफ से विभिन्न उदार लोकतंत्रों और निरंकुश लोकतंत्रों के डेटा की उपलब्धता का पता चल जाएगा। पत्रकारों को किस प्रकार के चुनाव डेटा की तलाश करनी है, इसका आइडिया भी मिलेगा।
- स्थानीय बुद्विजीवियों, शिक्षाविदों, लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं, चुनाव विशेषज्ञों और चुनाव निगरानी समूहों की मदद लें। यहां ऐसे 251 समूहों की सूची दी गई है। इनसे आप चुनाव संबंधी नियमों में आए बदलाव तथा चुनाव संबंधी अन्य जानकारी ले सकते हैं।
- आगामी चुनाव में किस तरह के मतदान उपकरणों का उपयोग होगा? उनके विक्रेता कौन हैं? ईवीएम मशीनें किन कंपनियों की हैं? कहां से आएंगी? इन चीजों की जानकारी लें। ‘वेरीफाइड वोटिंग‘ नामक एनजीओ ने ‘वेरीफायर डेटाबेस‘ बनाया है। यह अमेरिका के डेटा पर केंद्रित है। आसानी से सर्च करने लायक इस टूल में वाणिज्यिक मतपत्र-चिह्न उपकरणों और इंटरनेट वोटिंग सिस्टम से लेकर ऑप्टिकल स्कैनर और इलेक्ट्रॉनिक पोल बुक की अच्छी जानकारी है। इनमें कई चीजों का उपयोग अन्य देशों के चुनाव में भी होता है।
- प्रमुख चुनावों का इतिहास जानें। इस ग्लोबल वोटर टर्नआउट डेटाबेस से पता लगाएं कि आपके देश में मतदाताओं द्वारा वोट डालने के प्रतिशत का इतिहास क्या है। स्थानीय चुनाव प्रबंधन अभिलेखागार (आर्काइव) और ‘लेक्सिस-नेक्सिस‘ जैसे मीडिया अनुसंधान उपकरण का भी उपयोग करें।
- एडम कैर इलेक्शन आर्काइव भी देखें। यह निजी तौर पर संकलित है तथा यह व्यापक नहीं है। लेकिन इसमें वैश्विक चुनाव परिणामों और आंकड़ों को मानचित्रों के साथ जोड़ा गया है। इसमें चुनावी निकायों की वेबसाइटों से हटाए गए कुछ ऐतिहासिक डेटा को संरक्षित किया गया है।
चुनावी पर्यवेक्षकों को जानें
- ‘इंटरनेशनल आईडिया‘ की इलेक्टोरल मैनेजमेंट डिजाइन डेटाबेस जैसी वेबसाइटों से चुनाव आयोग के बारे में पूरी जानकारी हासिल करें। चुनाव संचालन के प्रमुख अधिकारियों और प्रक्रिया का पता लगाएं। राष्ट्रीय, प्रदेश और स्थानीय स्तर पर चुनाव अधिकारियों और कार्यालयों का विवरण प्राप्त करें। चुनाव निकायों और आयोगों के कार्यालय के नियमों, प्रमुख, चुनिंदा अधिकारियों और उनसे जानकारी पाने के तरीके का पता लगा लें। उनके वेबसाइट और सोशल मीडिया एकाउंट्स की भी जानकारी लें।
- चुनाव के शुरुआती दौर में ही कुछ प्रमुख चुनाव अधिकारियों के साथ संबंध विकसित करके फोन नंबरों के आदान-प्रदान कर लें। चुनाव के दौरान अधिकारियों पर काम का दबाव बहुत बढ़ जाता है। अगर वह आपको नहीं जानते, तो उनसे खबरें निकालना मुश्किल होता है। ये अधिकारी चुनाव प्रक्रिया में नियमों और समस्याओं को समझने के लिए महत्वपूर्ण स्रोत होंगे।
- चुनाव अधिकारियों की ट्विटर अकाउंट लिस्ट बना लें। वर्ष 2020 के अमेरिकी चुनाव के दौरान दियारा टोनेस जो कि फ़र्स्ट ड्राफ्ट की रिपोर्टर हैं उन्होंने लगभग 50 प्रमुख चुनाव अधिकारियों की ट्विटर में एक सूची बनाई। इसके जरिए एक बार में इन सभी अधिकारियों के वर्तमान विषयों और निर्णयों को देखना संभव हुआ। विशेषज्ञों ने यह सुझाव भी दिया कि चुनावी रिपोर्टिंग करने वाले प्रमुख पत्रकारों की भी ट्वीटर में लिस्ट बना लेनी चाहिए। जैसे, द वाशिंगटन पोस्ट ने अमेरिकी चुनाव के दौरान प्रत्येक राज्य के प्रमुख राजनीतिक पत्रकारों की ट्विटर सूची बनाई थी।
- चुनाव में मीडिया की भूमिका के बुनियादी सिद्धांतों की समीक्षा करें। चुनाव अभियान में अभद्र भाषा और मीडिया विनियमन संबंधी मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय मानदंड के संदर्भ में समीक्षा करें। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम का मीडिया एंड इलेक्शन गाइड भी काफी उपयोगी है।
चुनाव रिपोर्टिंग में सुरक्षा
सच बोलने वाले पत्रकारों को चुनावों के दौरान खतरा हो सकता है। चुनाव से जुड़ी बुरी ताकतें पत्रकारों के अलावा उनके डेटा और स्रोत को भी निशाना बना सकती हैं। ऐसी ताकतें नहीं चाहती कि मतदाता उनसे जुड़े तथ्यों को जानें। इसलिए पत्रकारों को व्यक्तिगत सुरक्षा के साथ ही डिजिटल सुरक्षा के लिए सावधानी बरतना आवश्यक है। इसके लिए कुछ सर्वोत्तम अभ्यास इस प्रकार हैं:
- साइबर सुरक्षा डैशबोर्ड बनाएं। पत्रकारों के लिए जीसीए साइबर सिक्यूरिटी टूलकिट में मुफ्त या कम लागत वाले पासवर्ड मैनेजर, मैलवेयर सुरक्षा और एन्क्रिप्शन टूल का उपयोग करें। इसे चुनाव संबंधी विशेष खतरों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। जीआईजेएन की डिजिटल सिक्यूरिटी गाइड में डिजिटल स्वच्छता के तरीके बताए गए हैं। उनके आधार पर अपने स्थान तथा कौशल स्तर के अनुसार समुचित डिजिटल सुरक्षा के उपाय करें।
- अपने उपकरणों में एन्क्रिप्शन का प्रयोग करें। इसके लिए कई उत्कृष्ट मुफ्त विकल्प उपलब्ध हैं। लेकिन विशेषज्ञों का सुझाव है कि चुनावी रिपोर्टिंग के दौरान पत्रकारों को संचार के लिए सिग्नल का उपयोग करना चाहिए। डिजिटल दस्तावेजों को ई-मेल करने के लिए प्रोटॉनमेल, हार्डकॉपी वाले कागजी दस्तावेजों के लिए पोस्ट ऑफिस का उपयोग करना चाहिए। जिन उपकरणों की भौतिक जब्ती का जोखिम हो, उनके लिए वेराक्रिप्ट का उपयोग बेहतर है।
- शारीरिक निगरानी पर नजर रखें। यदि आपको संदेह है कि आपका या आपके स्रोतों का पीछा किया जा रहा है, तो सावधान रहें। किसी राजनीतिक अभियानों से जुड़े गलत लोगों या चरमपंथियों द्वारा शारीरिक रूप से आपका या स्रोतों का पीछा किया जा सकता है। कोई शारीरिक हमला भी संभव है। ऐसी स्थिति में सुरक्षा के लिए जीआईजेएन की इस स्टोरी में दिए गए सुझावों पर विचार करें। अगर आपको संदेह है कि पुलिस या सरकारी खुफिया एजेंट आपका पीछा कर रहे हैं, तो मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, मानवाधिकार सुरक्षा एनजीओ से परामर्श लें। जैसे, सिटीजन लैब या इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन। यदि सरकारी एजेंसियों द्वारा आपके घर पर छापा मारने का जोखिम हो, तो इस स्टोरी में बताए गए सुझावों पर ध्यान दें।
- चुनाव कवर करते समय शारीरिक सुरक्षा के लिए सामान्य सुझावों पर भी ध्यान दें। सीपीजे का जर्नलिस्ट सेफ्टी किट फॉर इलेक्शन्स देखें। इस संगठन ने वर्ष 2021 मेक्सिको चुनावों के लिए सुरक्षा गाइड भी प्रकाशित किया है।
- राजनीतिक विरोध-प्रदर्शनों के दौरान अपनी शारीरिक सुरक्षा का ख्याल रखें। सीपीजे का टूलकिट फॉर सेफ्टी इन पोलिटिकल फ्लैशप्वाइंट इवेंट्स देखें। इसमें आपको रिपोर्टिंग के दौरान अपनी पोशाक का ध्यान रखने से लेकर कोविड-19 और आंसू गैस के जोखिमों तक सभी बिंदुओं पर काफी सुझाव मिलेंगे।
- दंगों और चुनावी विरोध प्रदर्शन के दौरान डिजिटल सुरक्षा पर भी ध्यान दें। इस दौरान निगरानी, गिरफ्तारी और अधिकारियों द्वारा फोन जब्त करने के जोखिम से अपने उपकरणों और डेटा की सुरक्षा के लिए समुचित कदम उठाएं। पेन अमेरिका द्वारा प्रकाशित गाइड टू प्रोटेक्टिंग योर डिवाइसेस एंड डेटा में उपयोगी सुझाव मिल जाएंगे।
- गूगल वॉइस का उपयोग करें। किसी राजनीतिक समूह के उग्र समर्थकों या वैचारिक चरमपंथियों द्वारा पत्रकारों के उत्पीड़न का एक विशेष खतरा होता है। विशेष रूप से महिला पत्रकारों के लिए यह ज्यादा संभव है। यदि आपके देश में उपलब्ध है, तो एक स्वतंत्र, सुरक्षित गूगल वॉइस खाता बनाएं। यह इंटरनेट प्रोटोकॉल (वीओआईपी) फोन सेवा पर एक आवाज है। यह कई फोन नंबरों को एक में मिला सकता है और वर्चुअल बर्नर फोन के रूप में कार्य कर सकता है। यह सर्च करने योग्य वॉइस-मेल भी प्रदान करता है।
समयबद्ध काम पूरा करने के लिए उपकरण
चुनावों के दौरान हर काम की समय सीमा होती है। मतदाता पंजीकरण से लेकर चुनावों के लिए परचा दाखिल करने, चुनाव प्रचार अभियान, चुनाव के दिन और मतगणना तक हर चरण महत्वपूर्ण है। उन तारीखों से पहले काफी गतिशील सूचनाएं आती हैं। यहां कुछ उपकरण दिए गए हैं जो हर काम को समय पर पूरा करने में मदद कर सकते हैं।
- चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइटों, विभिन्न दलों, विशेषज्ञों, सामाजिक संगठनों और चुनाव अभियान की साइटों की जानकारियों में कई परिवर्तन होते हैं। लेकिन आपके पास इन नई जानकारियों को देखने का समय नहीं है। इसलिए ओपन-सोर्स क्लैक्सन ऐप को आजमाएं। इसे अमेरिका के एक निष्पक्ष समूह द मार्शल प्रोजेक्ट ने विकसित किया है। यह टूल बुकमार्क की गई साइटों और यहां तक कि वेब पेजों के कुछ हिस्सों में सामग्री परिवर्तन को स्वचालित रूप से फ्लैग करता है। फिर आपको ईमेल, डिस्कॉर्ड या स्लैक के माध्यम से अलर्ट करता है।
- आर्काइव करना आवश्यक है। आप किसी वेबसाइट पर किसी सामग्री को देखकर उसका कोई उपयोग करते हैं, तो उसे आर्काइव अवश्य कर लें। कई बार पक्षपातपूर्ण वेबपेज को हटा दिया जाता है। उनकी सामग्री की आलोचना होने के बाद उनमें फेरबदल कर दिया जाता है। इसलिए अपनी खुद की ऑनलाइन सर्च को स्वचालित रूप से संग्रहित करने के लिए Hunch.ly plugin का उपयोग करें। वे-बैक मशीन का उपयोग करके उन परिवर्तित या हटाए गए वेबपृष्ठों को फिर से देखने के लिए करें, जिन पर आप नहीं गए हों। वे-बैक मशीन के प्रबंधक द्वारा प्रस्तुत इस जीआईजेएन स्टोरी में इस टूल की अद्यतन सुविधाओं की जानकारी मिल जाएगी।
- साक्षात्कार का ऑटो-ट्रांसक्रिप्शन करें। अपने चुनाव-संबंधी साक्षात्कारों को ट्रांसक्राइब और कीवर्ड-खोज करने के लिए Trint का उपयोग करें। मामूली शुल्क देकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस संचालित Otter भी आजमा सकते हैं। इन कंपनियों का दावा है कि रिकॉर्डिंग और टेप सुरक्षित हैं तथा इन्हें कभी भी तीसरे पक्ष को साझा नहीं किए जाता है। इसके बावजूद ट्रांसक्रिप्शन सेवा में डेटा की सुरक्षा पर यह आलेख पढ़ने लायक है। दुष्प्रचार विशेषज्ञ जेन लिट्विनेंको कहती हैं कि सबूतों को स्क्रीनशॉट के जरिए संरक्षित नहीं किया जा सकता है। पत्रकार इस ऑटो-संग्रह उपकरण के जरिए डिजिटल साक्ष्य को कम कर देते हैं। वह कहती हैं कि स्क्रीनशॉट में आसानी से हेरफेर किया जा सकता है। वे पृष्ठ के मेटाडेटा को संरक्षित नहीं करते हैं। अदालत में भी स्क्रीनशॉट स्वीकार्य नहीं हैं।
- चुनावी हिंसा की संभावना वाले इलाकों में रिपोर्टिंग की योजना बनाएं। स्थानीय मानवाधिकार समूह, राजनीतिक कार्यकर्ता और चुनाव अधिकारी आपको ऐसे संभावित संघर्ष वाली जगहों की जानकारी देने के लिए अच्छे स्रोत होते हैं। सोशल मीडिया में की-वर्ड सर्च से रैलियों में हिंसा की साजिशों का खुलासा किया है। जेन लिट्विनेंको कहती हैं कि गूगल के माध्यम से टेलीग्राम प्लेटफॉर्म के सर्च में site:t.me (प्लस की-वर्ड), और com के साथ विश्लेषण करें। यह कई देशों में सुनियोजित हिंसक घटनाओं को चिह्नित करने के लिए उपयोगी है।ट्विटर के लिए, वी-वेरीफाइ का ट्विटर एसएनए टूल उपयोगी है। फेसबुक के लिए क्राउड-टैंगल में खोजने का प्रयास करें। इसके अलावा, इंटरनेशनल आईडिया द्वारा विकसित इलेक्टोरल रिस्क मैनेजमेंट टूल देखें।
- बेलिंगकैट की ‘वाइल्ड-कार्ड लिस्ट तरकीब‘ के जरिए ट्विटर में चुनाव संबंधी जानकारी खोजें। गूगल में सर्च करें- site:twitter.com/*/lists “LISTNAME” (इसमें आप कोई कीवर्ड जोड़ते हैं)। इसमें आपको चुनावी विषय से मेल खाने वाली कई सार्वजनिक ट्विटर सूचियों को खोजने की सुविधा मिलेगी। फेसबुक ग्रुप खोजने के लिए, गूगल सर्च करें – site:facebook.com/groups “keyword.”
- संभावित चुनावी हिंसा के संबंध में पुलिस की बातचीत पर नजर रखने की कोशिश करें। लेकिन आप ऐसा तभी करें, जब इसकी सुविधा हो और ऐसा करना कानूनी तौर पर जायज हो। पुलिस और ‘ईएमएस रेडियो स्कैनर ऐप‘ के जरिए चुनाव के इलाकों के पास हिंसक घटनाओं को ट्रैक करें। ऐसे ऐप हैं OpenMHZ या 5-0 Radio Pro (जिसमें चिली, रूस, जापान, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया और कुछ अन्य जगहों से कुछ आपातकालीन फीड आते हैं)। मतदाता को डराने-धमकाने की घटनाओं तथा कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा किसी को अनुचित मदद संबंधी मामलों के सबूतों को भी चिह्नित करें।
- चुनाव संबंधी बूलियन सर्च के लिए स्प्रेडशीट सेट करें। नैन्सी वाट्जमैन एनवाईयू साइबर सिक्यूरिटी फॉर डेमोक्रेसी प्रोजेक्ट से संब़द्ध पत्रकार एवं सलाहकार) का कहना है कि पूरे चुनाव के दौरान आपको मिलने वाले सभी असामान्य, पक्षपातपूर्ण, या संदेहास्पद सामग्री को इकट्ठा करना अच्छा तरीका है। इन्हें एक स्प्रेडशीट में डालते जाएं। उसमें मुद्दों की श्रेणियों के बीच विभाजन कर दें। चुनाव के दिन तक इस बूलियन खोज में काम की चीज प्राप्त कर सकते हैं। बूलियन गूगल सर्च से आवश्यक परिणामों पर लेजर-फोकस करने में सहायता मिलती है। वाट्जमैन ने छह जनवरी को अमेरिका की राजधानी में दंगे के बाद हिंसक सामग्री की खोज के लिए ऐसी स्प्रेडशीट का इस्तेमाल किया था।
- अपनी ऐसी साख बनाएं कि चुनावी व्हिसल-ब्लोअर आपके पास खुद आने लगें। यदि आप चाहते हैं कि चुनाव अभियान से जुड़े अंदरूनी स्रोत के माध्यम से महत्वपूर्ण लीक और सुझाव मिलें, तो आपको एक गंभीर खोजी पत्रकार के बतौर अपनी इमेज बनानी होगी। आपकी गुणवत्तापूर्ण साहसिक रिपोर्टिंग का अच्छा रिकॉर्ड हो। आप महज प्रमुख उम्मीदवारों पर केंद्रित घुड़दौड़ पत्रकारिता के बजाय जनता के मुद्दों और नीतियों पर राजनीतिक रिपोर्टिंग करते हों। विरोधी राजनीतिक ताकतों द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ खबरें देना सामान्य बात है। लेकिन किसी चुनाव अभियान से जुड़े अंदरूनी व्यक्ति (व्हिसल-ब्लोअर) से मिली जानकारी बड़ी खबर हो सकती है। किसी कानूनी एजेंसी के अधिकारी से भी बड़ी खबर मिल सकती है। ऐसे लोग सिर्फ गंभीर खोजी पत्रकारों को ही कोई गोपनीय जानकारी देना पसंद करते हैं। इस गाइड के लिए चर्चा के दौरान कई खोजी संपादकों ने उपर्युक्त सुझाव दिया।
अंतर्राष्ट्रीय रुझानों की निगरानी
प्रत्येक चुनाव के दौरान अनगिनत स्थानीय मुद्दे सामने आते हैं। लेकिन इनके अलावा कुछ अंतर्राष्ट्रीय रुझान भी होते हैं। खोजी पत्रकारों को इन पर बारीक नजर रखनी चाहिए। ये रुझान जनसांख्यिकीय बदलाव, नई तकनीकों और डिजिटल खतरों से जुड़े होते हैं। साथ ही, सरकारों और चुनाव अधिकारियों द्वारा एक-दूसरे को देखते हुए प्रवाहित होने वाले विचारों से भी ऐसे रूझान उत्पन्न होते हैं। इन्हें गंभीरता से समझने की जरूरत है। इनमें से कुछ रुझान किन्हीं नए अनुबंधों से जुड़े हो सकते हैं। कुछ बातें सरकारों द्वारा किए जाने वाले खर्च के पैटर्न से जुड़ी हो सकती हैं। कुछ मामले चुनावों की निष्पक्षता पर खतरा हो सकते हैं। कुछ का संबंध लोकतंत्र को जुड़ा होगा। ऐसे कई मामले मतदाताओं को भ्रमित कर सकते हैं। ऐसे रूझानों पर नजर रखने से आपको महत्वपूर्ण चुनावी खबरें मिल सकती हैं।
मौजूदा कुछ प्रवृत्तियों में निरंकुशता का संकेत मिलता है। कई देशों के सत्तावादी नेता एक-दूसरे से दमनकारी चुनावी रणनीति की नकल कर रहे हैं। हम यहां इन प्रवृतियों और तरीकों पर चर्चा करेंगे।
आगे दो विशेषज्ञों के सुझाव हमारे लिए उपयोगी हैं। डेविड लेविन एलायंस फॉर सिक्योरिंग डेमोक्रेसी से जुड़े इलेक्शन्स इंटीग्रीटी के फैलो हैं तथा सैम वैन डेर स्टाक इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस (इंटरनेशनल आईडिया) में यूरोप कार्यक्रम के प्रमुख हैं।
- राजनीतिक मीडिया का एकाधिकार एक बड़ा खतरा है। राजनेताओं तथा उद्योगपतियों का मीडिया पर, खासकर टीवी चैनलों पर स्वामित्व बढ़ता जा रहा है। इसके कारण निष्पक्ष चुनाव कवरेज में कमी आती है और स्वतंत्र मीडिया की बदनामी होती है । सैम वैन डेर स्टाक के अनुसार “पोलैंड ने एक नया कानून बनाकर स्थानीय मीडिया पर गैर-यूरोपीय कंपनियों के स्वामित्व पर रोक लगा दी है। सामान्य तौर पर पत्रकार सिर्फ ऐसे नकली विधायी कदम देखते हैं। जबकि मीडिया स्वामित्व के बारे में हमें बहुत कम जानकारी है। टीवी चैनलों में बड़े राजनीतिक हित समूहों का स्वामित्व बढ़ रहा है। नए कानून इतने कड़े हैं कि जो लोग मीडिया के दुष्प्रचार से लड़ते हैं वे कई सालों कोर्ट के चक्कर लगाते रहते हैं। इनसे लड़ना मुश्किल है। अदालतों में वर्षों तक मुकदमा चलता है। फैसला आने तक बहुत देर हो चुकी होती है। पूर्वी यूरोप और पूरे पश्चिमी बाल्कन में अधिकांश चैनल बेहद राजनीतिक हो गए हैं। उन पर राजनेताओं या ऑफशोर कंपनियों का नियंत्रण है।“
- चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप पर ध्यान दें। अलायंस फॉर सिक्योरिंग डेमोक्रेसी ने इसके लिए ऑथोरिटेरियन इंटरफेरेंस ट्रैकर बनाया है। इसमें वर्ष 2000 के बाद से 40 देशों में विदेशी ताकतों द्वारा अवैध अभियान के लिए वित्तपोषण, साइबर हमलों और दुष्प्रचार अभियानों का विवरण है। चुनाव परिणामों को क्रॉस-चेक करने का प्रयास करें। डीएफआर-लैब ने इसके लिए फॉरेन इंटरफेरेन्स एट्रिब्यूशन ट्रैकर बनाया है। यह वर्ष 2020 के अमेरिकी चुनाव में विदेशी हस्तक्षेप से जुड़ी ताकतों पर ध्यान केंद्रित करता है। इसमें प्रभाव का आकलन भी शामिल है। देशों के लिए निर्मित विशिष्ट टूल भी देखें, जो चुनावों से पहले उपलब्ध हो जाते हैं। जैसे, फ्रांस में अप्रैल 2022 के चुनाव से एक महीने पहले ‘फॉरेन नैरेटिव‘ पर ‘फ्रेंच इलेक्शन डैशबोर्ड‘ को लॉन्च किया गया। इस टूल के डिजाइनर ब्रेट शेफर ने जीआईजेएन को बताया कि इसे विदेशी संदेशों पर नजर रखने के लिए बनाया गया है। खासकर रूसी सरकार के स्वामित्व वाले मीडिया द्वारा फ्रांसीसी मतदाताओं के लिए क्या परोसा जा रहा है, इसे देखना जरूरी है। उन्होंने कहा कि नवंबर 2022 में अमेरिका के मध्यावधि चुनाव से पहले एक और भी शक्तिशाली संस्करण जारी किया जाएगा।
- पश्चिमी देशों में बैलेट पेपर से वोटिंग सिस्टम की वापसी भी एक बड़ा संकेत है। डेविड लेविन ने कहा कि वर्ष 2016 के अमेरिकी चुनाव में रूसी हस्तक्षेप और हैकिंग की घटनाओं के कारण नीदरलैंड सहित कई विकसित देशों का डिजिटल चुनावों पर भरोसा कमजोर हुआ। ऐसे देशों को एक बार फिर मैन्युअल मतदान प्रणाली अपनाने के लिए पुनर्विचार करना पड़ा है।
- युवा लोकतांत्रिक देशों में अधिक डिजिटल चुनावी बुनियादी ढांचे की ओर रुझान बढ़ा है। सैम वैन डेर स्टाक ने कहा – “दमन की विरासत ने कई युवा लोकतांत्रिक देशों और पूर्व कम्युनिस्ट देशों में स्वचालित प्रणाली के साथ भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। मध्य और पूर्वी यूरोप के कुछ देशों में लोग इलेक्ट्रॉनिक्स पर अधिक भरोसा करते हैं। उन्हें संस्थानों पर कम भरोसा है। जबकि कुछ प्रणालियाँ काफी सुदृढ़ हैं। कई इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल चुनाव प्रणालियों में हेरफेर की ज्यादा गुंजाइश है। जो देश पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस आईडी के लिए निम्न स्तर की बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली अपनाते हैं, उनकी उच्च खरीद लागत के कारण भ्रष्टाचार का अधिक खतरा है। पत्रकारों को देखना चाहिए कि ऐसे फैसले किस तरह हो रहे हैं? इन्हें किस तरह खरीदा जा रहा है? इनमें बड़े घोटाले सामने आ सकते हैं।
- मतदान के नए तरीकों की तलाश बढ़ी है। कोविड-19 महामारी ने वर्ष 2020 में कई देशों की मतदान प्रणाली को तहस-नहस कर दिया। इसके कारण दुनिया भर में अन्य प्रकार की ‘विशेष मतदान व्यवस्था‘ की खोज बढ़ी है। जैसे, डाक से या पोस्टल मतदान, इलेक्ट्रॉनिक और प्रॉक्सी वोटिंग, प्रवासी आबादी के लिए विशेष मतदान तंत्र इत्यादि। सैम वैन डेर स्टाक कहते हैं- “कई देशों में मतदान के नए तरीकों को अपनाया जा रहा है, क्योंकि नई प्रौद्योगिकी इसे संभव बना रही है। लेकिन पत्रकारों और पर्यवेक्षकों के लिए इनकी निगरानी करना बेहद मुश्किल है। मोल्दोवा, बुल्गारिया, लिथुआनिया और अन्य पूर्वी यूरोपीय देश अधिक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग पर विचार कर रहे हैं। अल्बानिया की कोशिश है कि देश के बाहर रहने वाले नागरिकों के लिए ऑनलाइन वोटिंग का उपाय हो।
- चंदा-दाताओं के नाम छिपाने के लिए सरकारें डेटा गोपनीयता का बहाना बना रही हैं। सैम वैन डेर स्टाक ने कहा – “यूरोप के बाहर के कुछ राजनेता जीडीपीआर डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन का उपयोग चुनावों के चंदादाताओं का नाम छिपाने के लिए करते हैं। डेटा संरक्षण एक सकारात्मक चीज है। लेकिन कुछ देश इसे एक बहाने के रूप में उपयोग करते हैं। डेटा गोपनीयता के कारण दाताओं के नामों का खुलासा नहीं करने की बात कही जाती है। इस तरह वे पारदर्शिता से बचने के लिए इन नियमों का दुरूपयोग करते हैं। पत्रकारों को इसकी जांच करनी चाहिए।“
- आधिकारिक चुनाव वेबसाइटों पर सेवा से इनकार (डीओएस) करने वाले हमलों पर भी ध्यान देना जरूरी है। सेवा से इनकार करने वाले ऐसे साइबर हमले के जरिए वेबसाइटों के वेब सर्वर पंगु बना दिया जाता है। उन्हें अत्यधिक ट्रैफिक के जरिए जाम कर दिया जाता है। किसी राजनीतिक लाभ के लिए या दुश्मनी के तहत ऐसा किया जा सकता है। मतदाता पंजीकरण साइटों को साइन-अप समय सीमा से पहले बाधित करना भी एक तरीका है। सैम वैन डेर स्टाक ने कहा – “पत्रकारों को चुनाव की निष्पक्षता के लिए इन हमलों पर ध्यान देना चाहिए। हम साइबर खतरों को रूसी हैकिंग के रूप में देखते हैं। लेकिन साइबर हस्तक्षेप का एक तरीका चुनावी आयोगों की वेबसाइट पर हमला है। इसके जरिए चुनाव निकाय को संदिग्ध बनाया जाता है। लोग आश्चर्य करना शुरू कर सकते हैं कि क्या चुनाव की वैधता नहीं है। बड़े साइबर हमले किसी आपराधिक समूह द्वारा किए जा सकते हैं, जैसा मेक्सिको में चुनाव आयोग के वेबसाइट पर हुआ। लेकिन किसी नौसिखिए द्वारा भी कोई हमला संभव है। जैसे, 16 वर्षीय हैकर द्वारा किया गया हमला, जो खुद को बहुत स्मार्ट दिखाना चाहता था।“
तानाशाही के खतरों की पहचान कैसे करें
सैनिक तख्तापलट होने या बहुदलीय चुनावों पर प्रतिबंध लगने से किसी लोकतंत्र का खत्म होना आसानी से दिख सकता है। लेकिन तानाशाही की ओर धीरे-धीरे बढ़ने वाले मौजूदा कदमों से लोकतंत्र पर खतरे की पहचान करना आसान नहीं है। अब कानूनी पहलुओं और आपातकाल की आड़ में लोकतांत्रिक संस्थानों का क्षरण होने के सच को छुपाया जाता है। राज्य प्रायोजित चुनावी हिंसा के लिए भी किसी तीसरे पक्ष पर दोष लगा दिया जाता है।
शोधकर्ताओं ने पाया है कि निर्वाचित तानाशाह अन्य देशों के तानाशाहों की रणनीति से सीखते हैं। कई बार तो ऐसे तानाशाह दूसरे तानाशाहों से संसाधनों और डर्टी ट्रिक्स की सलाह देने वाली कंपनियों को आपस में साझा भी करते हैं। जैसे, फॉरेन पॉलिसी पत्रिका ने हाल ही में विस्तार से बताया कि निकारागुआ का साइबर सुरक्षा और विदेशी एजेंट कानून दरअसल रूस द्वारा वर्ष 2021 में बनाए गए दमनकारी कानून की कार्बन कॉपी है।
हंगेरियन राजनीतिशास्त्री एंड्रस बिरो-नेगी ने एक उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि अप्रैल 2022 में विक्टर ओर्बन ने लगातार चौथी बार चुनाव किस तरह जीता। इसमें उन्होंने अपनी आजमाई हुई रणनीति का उपयोग किया। जैसे, अल्पशिक्षित मतदाताओं को विपक्ष के कथित प्रेत से डराया गया। पक्षपातपूर्ण चुनाव अभियान नियमों और मीडिया कवरेज के जरिए विपक्षी दलों को हाशिए पर रखा गया। चुनाव के कई महीनों पहले छापेमारी से डराया भी गया।
पुराने तानाशाहों द्वारा नई रणनीति अपनाने का एक उदाहरण देखें। जिम्बाब्वे में रॉबर्ट मुगाबे की सरकार द्वारा मतपेटियों को बोगस वोट से भरने और विपक्षी कार्यकर्ताओं पर हिंसक कार्रवाई की रणनीति अपनाई जाती थी। वर्ष 2008 में, मुगाबे के पार्टी एजेंटों को बहुत देर से पता चला कि वे राष्ट्रपति चुनाव के पहले दौर में जीतने के लिए तेजी से बोगस मतदान नहीं कर पाएंगे। इसके बाद रन-ऑफ चुनाव में ‘जीत‘ सुनिश्चित करने के लिए विपक्ष का हिंसक उत्पीड़न किया गया। इस रणनीति की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा हुई। वर्ष 2013 के चुनाव में मुगाबे ने अपने पक्ष में खेल का मैदान तैयार करके नई रणनीतियों की एक श्रृंखला अपनाई। पत्रकारों को चुनावी धांधली के ऐसे प्रयासों पर नजर रखने और अनुमान लगाने की जरूरत है।
तानाशाहों के इन तरीकों पर नजर रखें:
- सरकार द्वारा मीडिया को नियंत्रित करने का प्रयास – हंगरी में विक्टर ओर्बन की नई सरकार ने आलोचनात्मक रिपोर्टिंग पर भारी प्रतिबंध लगाते हुए आत्म-सेंसरशिप को बढ़ावा देने के लिए एक मीडिया परिषद का गठन किया। सर्बिया में तानाशाह राष्ट्रपति के सहयोगियों और पूंजीपतियों ने लगभग सभी टीवी चैनलों को खरीद लिया। उन्हें सरकारी खजाने से अनुदान भी दिया गया। इन चैनलों ने भी सरकारी मीडिया की तरह सरकारी भोंपू की भूमिका निभाई। स्वतंत्र मीडिया के लिए सुझाव – पहले मीडिया स्वामित्व डेटाबेस से मीडिया और राजनेताओं के संबंधों की तलाश करें। साथ ही, एक मजबूत कानूनी रक्षा टीम बनाकर विश्वसनीय मीडिया संगठनों के साथ सहयोगी रिपोर्टिंग करें।
- प्रेस या विपक्ष पर झूठे आरोप लगाकर कुप्रचार करना- कई तानाशाहों पर जब कोई आरोप लगता है, तो उसका जवाब देने का नया तरीका सीख लिया है। विपक्ष या मीडिया के आरोपों के जवाब में उन्हीं पर आरोप लगा दिया जाता है। फिर उस झूठ को सोशल मीडिया द्वारा फैलाकर जनता को भ्रमित किया जाता है। मूल आरोप को खारिज करने के लिए इस रणनीति का उपयोग होता है। पत्रकारों के लिए सुझाव – ‘प्रतिद्वंद्वी‘ आरोपों की समयसीमा और साक्ष्य की तुलना करने के लिए विजुअलाइजेशन का उपयोग करें, और अपनी मूल जांच पर दोबारा जोर दें।
- निजी गिरोहों के माध्यम से चुनावी हिंसा कराना – पुराने तानाशाहों द्वारा चुनावी हिंसा के लिए सरकारी एजेंसियों और पुलिस का दुरुपयोग किया जाता था। लेकिन नए तानाशाहों ने इसके लिए निजी गिरोहों और गुंडों का उपयोग शुरू किया किया है। स्टीवन डोजिनोविक (संपादक, क्रीक) कहते हैं- “नए जमाने के तानाशाह एक अलग रणनीति का उपयोग करते हैं। वे सरकारी एजेंसियों को चुप रहकर तमाशा देखने को कहते हैं, और निजी गुंडा गिरोहों को हिंसा की छूट देते हैं। पत्रकारों के लिए सुझाव – चुनाव अधिकारियों के साथ गुंडा गिरोह के लोगों का संबंध खोजने के लिए चेहरे की पहचान वाला फेशियल रिकॉग्निशन और रिवर्स इमेजिंग टूल का उपयोग करें। लेकिन ऐसा करते समय पत्रकार सुरक्षा गाइड का पालन करें।
- मामूली मुद्दों को फोकस करना, अल्पसंख्यकों या अन्य समूहों पर दोषारोपण करना भी तानाशाहों की एक तकनीक है। कई लोकलुभावन चुनाव अभियान में आतंक और दोषारोपण को इतना प्रभावी कर दिया जाता है कि नीतिगत मामले पूरी तरह से छोड़ दिए जाते हैं। पत्रकारों के लिए सुझाव – भावनात्मक मुद्दों पर आधारित पत्रकारिता से बचें। प्रमुख उम्मीदवारों पर केंद्रित घुड़दौड़ पत्रकारिता से भी बचें। इसके बजाय मतदाताओं की जिंदगी को प्रभावित करने वाली नीतियों पर ध्यान केंद्रित दें। नागरिकों के जानने के अधिकार और अपना प्रतिनिधि चुनने की शक्ति का पक्षपोषण करें।
- स्वतंत्र मीडिया को हाशिए पर डालना और बदनाम करना भी तानाशाहों की एक रणनीति है। वर्ष 2012 में रूस के विदेशी एजेंट कानून के माध्यम से किसी भी अंतरराष्ट्रीय समर्थन प्राप्त एनजीओ और समाचार संगठनों को बदनाम करना आसान हो गया। तानाशाहों के लिए यह एक लोकप्रिय रणनीति है। पत्रकारों के लिए सुझाव – अन्य स्वतंत्र मीडिया संगठनों के साथ एकजुटता बढ़ाएं। पड़ोसी देशों के स्वतंत्र मीडिया के साथ भी सहयोगी संबंध बनाएं। उन देशों में आपके खुलासे को दबाया न जा सके और आपकी खबरें दुनिया भर में फैल सके, यह सुनिश्चित करें।
- कानूनों को तोड़-मरोड़ कर अपने पक्ष में उपयोग करना। शोधकर्ता एंड्रिया पिरो और बेन स्टेनली ने पोलैंड और हंगरी में एक अध्ययन किया। उन्होंने तानाशाह दलों की सत्ता-केंद्रित नीति का पैटर्न दिखाया। सबसे पहले, लोकलुभावन ‘गैर-मुद्दों‘ पर नीतियां बनाई जाती हैं, जो मौजूदा कानूनों की भावना को नहीं तोड़ती हैं। ऐसी नीतियां अक्सर नैतिकता या इतिहास के दावों के आधार पर बनाई जाती हैं। इसके बाद कार्यपालिका की शक्ति को मजबूत करने वाली नीतियों को बढ़ावा देना, जो मौजूदा कानूनों की भावना का उल्लंघन करती हैं, और चुनावी वादों को अपनाती हैं। फिर तीसरे चरण में ऐसे नए कानून बनाना, जो उस तानाशाह का निरंतर शासन सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक और अंतर्राष्ट्रीय दोनों मानदंडों को तोड़ते हैं। पत्रकारों के लिए सुझाव – इन तानाशाहों द्वारा बनाई गई गैर-जवाबदेह वास्तविकता को स्वीकार न करें। इनकी सच्चाई पर रिपोर्टिंग करें। तानाशाही के बावजूद यह मानते हुए रिपोर्टिंग करें कि वह देश अब भी जवाबदेही के उच्चतम सिद्धांतों के साथ एक पूर्ण लोकतंत्र बना हुआ है। कार्यपालिका और विधायिका के बीच गोपनीय सौदों और संबंधों की खोज करें।
- स्वतंत्र जांच निकायों को तानाशाहों द्वारा भंग कर दिया जाता है। उच्चतम स्तर पर भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने वाली एजेंसियों को कमजोर किया जाता है। नए तानाशाहों द्वारा विभिन्न प्रकार के स्वतंत्र निकायों, विशेष अभियोजकों और सार्वजनिक निगरानी जांच इकाइयों को बदनाम या भंग कर दिया जाता है। अपने लोगों को प्रमुख स्थानों पर तैनात कर दिया जाता है। वर्ष 2009 में दक्षिण अफ्रीका के तत्कालीन राष्ट्रपति जैकब जुमा ने अभिजात वर्ग की उस स्कोर्पियन इकाई को भंग कर दिया, जिसने उनसे जुड़े भ्रष्टाचार की जांच की थी। इसके बाद एक नई और सीमित शक्ति वाली इकाई बनाई गई। पत्रकारों के लिए सुझाव: नई सरकारी जांच एजेंसियों के बीच व्हिसल-ब्लोअर खोजने का प्रयास करें। उनसे पता लगाएं कि उन्हें किस प्रकार के भ्रष्टाचार के मामलों की जांच से रोका गया। ऐसे मामलों पर आप जांच कर सकते हैं।
- न्यायपालिका और चुनाव आयोग को अपने लोगों से भर देना भी तानाशाहों की एक प्रमुख रणनीति है। चुनावों की तिथियों को निर्धारित करने के लिए ऐसे समय का चयन करते हैं, जिससे विपक्ष को नुकसान हो। मतदाता पंजीकरण में भी ऐसी कोशिश होती है जो विपक्ष को नुकसान पहुंचाए। पत्रकारों के लिए सुझाव – न्यायाधीशों, चुनाव आयोग और सरकारी अधिकारियों के संबंधों की जांच करने पर पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। लेकिन info जैसे स्वतंत्र मीडिया संगठन के बहादुर पत्रकारों ने इसे संभव कर दिखाया है। आप उनके पुराने फैसलों को कीवर्ड द्वारा खोज सकते हैं। उनके कनेक्शन को सोशल मीडिया और रिवर्स इमेजिंग खोजों के माध्यम से भी खोज सकते हैं।
- स्वतंत्र चुनाव आयोगों में पक्षपातपूर्ण अफसरों की नियुक्ति करना भी एक रणनीति होती है तानाशाहों की। वर्ष 2013 में जिम्बाब्वे के चुनाव आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त व्यक्ति सत्तारूढ़ पार्टी का नेता था। पत्रकारों के लिए सुझाव: इस डेटाबेस के माध्यम से चुनाव आयोग के लिए नियुक्ति और कार्यकाल के नियमों की जाँच करें।
- इतिहास को फिर से लिखकर, बाहरी लोगों को निशाना बनाकर, राष्ट्रीय और बहुसंख्यक धार्मिक पहचानों को एक ही मानकर भय पैदा करना। यह भी तानाशाहों का एक आजमाया गया फार्मूला है। GroundTruth के पत्रकारों ने Democracy Undone के तहत इसे दिखाया है। उन्होंने भारत, ब्राजील, हंगरी, पोलैंड, कोलंबिया, इटली और अमेरिका में राष्ट्रवादी नेताओं की रणनीति को देखा। इन सभी देशों में सोशल मीडिया पर उनके समर्थकों द्वारा नफरत और हिंसक विचारों को बढ़ावा दिया गया। पत्रकारों के लिए सुझाव – विविधता और आप्रवासन के लाभ बताएं। उन्माद फैलाने वाली पार्टी के नेताओं का अप्रवासी इतिहास बताएं।
- छोटी त्रुटियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना, विदेशी साजिश का बहाना बनाना भी एक तरीका है तानाशाहों का। यदि मतगणना के दौरान हार होती दिखे तो गड़बड़ी का बहाना बनाकर असंवैधानिक तरीकों का उपयोग करना भी उनकी रणनीति होती है। पत्रकारों के लिए सुझाव: वर्ष 2020 में कोलंबिया जर्नलिज्म रिव्यू ने बताया था कि पत्रकारों को मतगणना के छोटे उदाहरणों को सामान्य रूप से संदर्भित करना चाहिए। इसे प्रमुखता के साथ ग्राफिक रूप से बताएं। लोकतंत्र विरोधी लोग हर छोटी त्रुटि एक धांधली का सबूत बताकर जनता को बरगलाने की कोशिश करेंगे। चुनाव के दिन सामान्य गलतियां हो सकती हैं। कुछ ईवीएम मशीनें ठीक से काम नहीं करेंगी। मतदान स्थल पर बिजली खराब हो सकती है। कहीं देर मतदान शुरू होगा, कहीं गलत मतदाता सूची का वितरण हो सकता है। लेकिन इसके आधार पर पूरे चुनावी नतीजे को गलत बताकर किसी तानाशाही तरीके का उपयोग करने की इजाजत नहीं दी जा सकती।
‘एलायंस फॉर सिक्योरिंग डेमोक्रेसी‘ से जुड़े डेविड लेविन कहते हैं – “लोकतंत्र एक चिंताजनक मोड़ पर है। सफल चुनावों पर भी पत्रकारों को गंभीर सवाल उठाने की जरूरत है। खासकर इस बारे में कि क्या मतदाताओं को अपना प्रतिनिधि चुनने के बारे में सही जानकारी मिल रही है।“
टिप्पणी: यदि आप किसी अच्छे नए उपकरण या डेटाबेस के बारे में जानते हैं जो पत्रकारों को चुनावी रिपोर्टिंग में उपयोगी है, तो कृपया hello@gijn.org पर साझा करें। साथ ही, अगली किस्त – ‘अध्याय तीन: उम्मीदवारों की जांच’ सहित इस चुनाव मार्गदर्शिका के सभी अध्याय पढ़ना न भूलें।
अतिरिक्त संसाधन
Elections Guide for Investigative Reporters: Chapter 1 – New Election Digging Tools
Elections Guide for Investigative Reporters: Introduction
Essential Resources for the US Election: A Field Guide for Journalists on the Frontlines
रोवन फिलिप जीआईजेएन के संवाददाता हैं। वे पूर्व में दक्षिण अफ्रीका के संडे टाइम्स (Sunday Times) के मुख्य संवाददाता थे। एक विदेशी संवाददाता के रूप में उन्होंने दुनिया भर के दो दर्जन से अधिक देशों से समाचार, राजनीति, भ्रष्टाचार और संघर्ष पर रिपोर्ट दी है।