संपादकीय टिप्पणी – चुनाव के दौरान खोजी पत्रकारों के पास गहन जांच के काफी अवसर होते हैं। जीआईजेएन ने पांच खंड में यह नई गाइड तैयार किया है। यह आलेख उस गाइड का ‘परिचय अध्याय‘ है। इसका पहला अध्याय ‘चुनावी रिपोर्टिंग के नए उपकरण‘ जल्द ही जारी किया जाएगा।
दुनिया भर में चुनावों के दौरान कई तरह की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। चुनाव के दौरान दुष्प्रचार अभियान, विदेशी हस्तक्षेप, मतदाताओं का दमन, निरंकुश सत्तावादी हमले, धन का दुरुपयोग, भ्रष्टाचार, अल्पसंख्यकों एवं कमजोर लोगों को मताधिकार से वंचित करना, हिंसा और धमकी सहित अन्य प्रकार के खतरे देखने को मिलते हैं।
‘द ग्लोबल स्टेट ऑफ डेमोक्रेसी‘ की रिपोर्ट के अनुसार लोकतंत्र पर खतरा बढ़ा है। इसमें बताया गया है कि इस सदी में दुनिया भर में लोकतंत्र काफी निचले पायदान पर चला गया है। अब ‘निर्वाचित निरंकुश‘ की एक नई श्रेणी पैदा हुई है। ऐसे चुने हुए नेता अब धनी और कुलीन ताकतवर लोगों के साथ भ्रष्ट गठजोड़ करके अपनी हैसियत मजबूत करते हैं। इस गठजोड़ द्वारा सोशल मीडिया के जरिए झूठ एवं अफवाहों को बढ़ावा दिया जाता है। हाल के दिनों में लोकतांत्रिक सरकारों ने कोविड-19 के संकट का भी दुरुपयोग करके लोगों में भय उत्पन्न किया है। महामारी के नाम पर नागरिक स्वतंत्रता और मीडिया का दमन किया गया है। साथ ही, फरवरी 2022 में एक प्रमुख पूर्वी यूरोपीय लोकतांत्रिक देश ‘यूक्रेन‘ पर एक निरंकुश शासन ‘रूस‘ ने बेशर्मी से आक्रमण किया है।
पारंपरिक राजनीतिक कवरेज वाले तरीकों से अब चुनावी रिपोर्टिंग करना पर्याप्त नहीं। ऐसे चुनावी कवरेज में ‘घुड़दौड़ दृष्टिकोण‘ हावी रहता है। यानी ‘प्रमुख प्रत्याशी‘ केंद्रित चुनावी रिपोर्टिंग। इसमें कौन जीतेगा, कौन हारेगा, ऐसे थोथे आकलन पर जोर होता हैं। लेकिन नीतिगत सवालों, पॉलिसी और मुद्दों की चर्चा नहीं होती। इससे नागरिकों और लोकतंत्र को नुकसान होता है। ऐसी रिपोर्टिंग के जरिए चुनावी खतरों को सामने लाना और बुरी प्रवृतियों को उजागर करना संभव नहीं होता है। इसलिए स्वतंत्र और खोजी पत्रकारों को अनिश्चित चुनावों की सतह के नीचे छुपे तथ्य तलाशने होंगे। लोकतंत्र विरोधी ताकतों के बहुआयामी हमलों से ऐसी सूचनाओं और खुद को बचाते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा भी जरूरी है। इसके लिए पत्रकारों को पर्याप्त साहस, योजना, परस्पर सहयोग और नए उपकरणों की आवश्यकता होती है।
यह गाइड खोजी पत्रकारों के लिए काफी उपयोगी है। वर्ष 2022 में दुनिया के कई देशों में महत्वपूर्ण चुनाव होने हैं। ऐसे देशों में भारत, केन्या, ब्राजील, हंगरी, फ्रांस, सर्बिया, कोलंबिया, फिलीपींस और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
‘निरंकुशता की तीसरी लहर‘ : कई विद्वानों ने 1970 और 80 के दशक में ‘लोकतांत्रिकीकरण की तीसरी लहर‘ का वर्णन किया था। लेकिन अब ‘निरंकुशता की तीसरी लहर‘ के खतरे पर बात हो रही है। इसमें सत्तावादी निरंकुश राजनेताओं द्वारा लोकतांत्रिक संस्थानों को नष्ट किया जा रहा है। दमनकारी कानून लागू करने, हिंसा और धमकी को बढ़ावा देने तथा मीडिया को नियंत्रित और प्रदूषित करने जैसे कदम शामिल हैं। ऐसे निरंकुश शासकों द्वारा विपक्ष के खिलाफ भी अनुचित तरीके अपनाए जाते हैं। हंगरी का उदाहरण सामने है। वर्ष 2010 में हंगरी में ‘फिदेज‘ पार्टी को संसदीय चुनाव में बहुमत मिला। इसके बाद प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन ने देश के संविधान में भारी फेरबदल करके भविष्य के चुनावों में धांधली करने का आसान रास्ता बना लिया।
शोध से पता चलता है कि जिन देशों में सत्तावादी ताकतें मामूली बहुमत हासिल करती हैं, वहां भी लोकतांत्रिक संस्थानों को धीरे-धीरे कमजोर किया जा सकता है। पोलैंड में यह बात सामने आई है। खोजी पत्रकार ऐसे विषयों पर गहन जांच कर सकते हैं।
‘द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट‘ ने वर्ष 2020 में दुनिया के 167 लोकतांत्रिक देशों का एक शोध किया। इसमें पाया कि 116 देशों के लोकतंत्र में गिरावट आई है। सिर्फ एक देश ताइवान में लोकतंत्र बेहतर हुआ है। शोधकर्ताओं ने पाया कि पिछले दो वर्षों के दौरान कई देशों में मतदान का प्रतिशत बढ़ने का एक सकारात्मक चुनावी रुझान आया है। लेकिन इसका एक नकारात्मक पहलू भी है। ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस‘ (इंटरनेशनल आईडीईए) नामक एनजीओ का आकलन है कि इन्हीं देशों में काफी जहरीले रूप में राजनीतिक ध्रुवीकरण हुआ है। लिहाजा, मतदाताओं की संख्या बढ़ना किसी लोकतांत्रिक चेतना की निशानी नहीं बल्कि किसी नकारात्मक एजेंडे का परिणाम हो सकता है।
इस चुनाव गाइड की श्रृंखला में क्या है?
हर देश में चुनाव संबंधी नियम कानून अलग होते हैं। जीआईजेएन के इस चुनाव गाइड में उपकरणों, तकनीकों और संसाधनों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रस्तुत है। स्थानीय एवं प्राथमिक स्रोतों से निकाली जाने वाली खबरों की तुलना में इस गाइड से आपको व्यापक सूचनाएं खोजने में मदद मिलेगी। खोजी पत्रकारों को किसी भी चुनाव में तथ्य जुटाने में यह उपयोगी होगा। जैसे, कोई दुष्प्रचार अथवा भय फैलाने वाले अभियान की वेबसाइटों के पीछे किन लोगों का हाथ है, इसकी पहचान कैसे करें? ऐसा करने वाले विभिन्न लोगों के परस्पर संबंधों की पहचान करने की भी काफ़ी सरल ऑनलाइन तकनीकें हैं। कई ऐसे ओपन-सोर्स टूल मौजूद हैं जो चुनाव के दौरान हिंसक घटनाओं के बारे में सोशल मीडिया की सारी पोस्ट को तलाश सकते हैं। फेसबुक पर राजनीतिक विज्ञापनों की पहचान करके उनका आकलन करने, पुलिस ऑडियो चैटर को ट्रैक करने, चरमपंथी और अलोकतांत्रिक सोशल मीडिया चैनलों की जांच करने, चुनाव में अवैध धन के दुरुपयोग पर नजर रखने और विशाल मात्रा में उपलब्ध डेटा को स्वचालित रूप से फिल्टर करने जैसी सुविधाएं शामिल हैं।
इस परिचय खंड में इस गाइड के बारे में जानकारी प्रस्तुत है। हम प्रत्येक सप्ताह विभिन्न तकनीकी जानकारियों के अध्यायों का पूर्वावलोकन करेंगे। चुनावी रिपोर्टिंग की विभिन्न रणनीतियों की चर्चा करेंगे। चुनावी स्कूप के लिए एक उदाहरण पद्धति भी बताएंगे।
चुनावी रिपोर्टिंग के लिए इस जीआईजेएन गाइड में निम्नलिखित पांच अध्याय शामिल हैं-
अध्याय एक: चुनाव संबंधी जांच के नए उपकरण
हमने दुनिया भर के प्रमुख पत्रकारों और चुनाव विशेषज्ञों से बात की। उनसे वर्ष 2022 और आगामी वर्षों में चुनावी रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के लिए सर्वोत्तम नए उपकरण और तकनीक की जानकारी मांगी गई। इस अध्याय में हम ऐसे प्रमुख उपकरणों की जानकारी देंगे। अपने ग्राफिक्स के साथ ऑनलाइन चुनावी बहसों और दुष्प्रचार पर नजर रखने के लिए एक अद्भुत, मुफ्त, स्विस आर्मी चाकू जैसे खोजी हथियार की भी जानकारी देंगे। हम चुनाव से संबंधित वेबसाइटों के पीछे व्यक्तियों की पहचान करने के लिए एक सरल उपकरण भी पेश करेंगे। उसका उपयोग बेहद आसान है। कीवर्ड सर्च कमांड में ‘कंट्रोल-एफ‘ टाइप करने जैसा सामान्य कौशल वाले लोग भी इसका लाभ उठा सकते हैं।
अध्याय 2: चुनाव की तैयारी
इस अध्याय में हम चुनाव संबंधी नियम कानून समझने के लिए उपकरणों और संसाधनों की सूची देंगे। खबरों के लिए लीड और स्रोत ढूंढते समय खुद को तथा अपने स्रोतों और अपने डेटा को कैसे सुरक्षित रखें, इसकी भी जानकारी देंगे। हम चुनावी रुझानों की जांच के तरीके भी बताएंगे जिसमें लोकप्रिय ‘इलेक्टेड ऑटोक्रेट्स प्लेबुक‘ भी शामिल है।
अध्याय 3: उम्मीदवारों की जांच
पत्रकार सबसे पहले यह मान ले कि चुनाव लड़ रहे राजनेताओं के बारे में वह कुछ नहीं जानता है। इसके बाद वह हर एक उम्मीदवार के बारे में गहन जांच करे। उम्मीदवारों का ऑनलाइन इतिहास, उनकी छिपी हुई संपत्ति की जांच करें। वैसे लोगों से बात करें, जो उन नेताओं को अच्छी तरह से जानते हैं। ऐसी हर एक जांच के लिए हम यहां आपको अच्छे उपकरणों की जानकारी देंगे। उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि पर पूरी मेहनत करके जानकारी पाने के लिए एक पद्धति भी साझा करेंगे। इससे संबंधित ब्राजील की एक केस स्टडी की जानकारी भी दी जाएगी।
अध्याय 4: चुनावी बहसों पर नजर रखना, दुष्प्रचार के दोषियों की पहचान करना
प्रभावशाली चुनावी बहसें वास्तव में कहां हो रही है? राजनीतिक विज्ञापन देने वाले और दुष्प्रचार करने वाले कौन हैं? उनकी पहचान कैसे हो? इस अध्याय में हम टेलीग्राम और ट्विटर जैसे प्लेटफार्मों से खबरें निकालने के चरण-दर-चरण तरीके बताएंगे। इन सोशल मीडिया मंचों पर नागरिक महत्वपूर्ण नीतिगत मुद्दों से लेकर चुनावों को हिंसक रूप से प्रभावित करने की साजिश जैसे सभी विषयों पर चर्चा करते हैं।
आम चुनाव- रिपोर्टिंग की रणनीति कैसे बनाएं
1. सिटिजन मॉनिटर के जरिए स्थानीय टिप्स और डेटाबेस खोजें
जीआईजेएन से जुड़े मीडिया संगठनों और चुनावी रिपोर्टिंग विशेषज्ञों से हमने बात की। चुनावी रिपोर्टिंग के लिए प्रभावी डेटाबेस और उपकरण जरूरी हैं, लेकिन अधिकांश महत्वपूर्ण जांच मानवीय स्रोतों से ही शुरू होती है। इनमें व्हिसल ब्लोअर, कानून प्रवर्तन अधिकारी, नागरिक समाज के पेशेवर लोग, चुनाव प्रबंधक, निचले स्तर के अभियान कर्मचारी इत्यादि शामिल हैं। साथ ही, ऐसे आम नागरिक भी काफी महत्वपूर्ण हैं, जो लोकतंत्र को मजबूत बनाने की भावना रखते हों।
अमेरिकी सरकार द्वारा वित्तपोषित ‘नेशनल डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूट‘ द्वारा दुनिया भर के चुनावी डेटा जुटाए जाते हैं। इसके देशों के हिसाब से डेटाबेस में 89 देशों के 251 भरोसेमंद संगठन शामिल हैं। इसके चुनावी कार्यक्रमों के निदेशक पैट मेर्लो कहते हैं- “दुनिया भर के सैकड़ों निष्पक्ष चुनाव निगरानी समूहों द्वारा काफी जानकारियों का संकलन किया जाता है। पत्रकारों के लिए यह एक बड़ा खजाना उपलब्ध है। लेकिन स्वतंत्र मीडिया द्वारा इस खजाने का समुचित उपयोग नहीं हो रहा है। इस तरह यह अप्रयुक्त संसाधन हैं।“
पैट मेर्लो कहते हैं- “ऐसे निष्पक्ष संगठनों से पत्रकारों को अपने देश में चुनाव संबंधी नए नियम कानूनों को समझने में मदद मिल सकती है। अपने रिपोर्टिंग में कानूनी निर्देशों का अनुपालन करने में इसकी आवश्यकता होगी। उनसे आपको किसी डेटासेट को समझने में भी मदद मिल सकती है।“
जाम्बिया के ‘क्रिश्चियन चर्च मॉनिटरिंग ग्रुप‘ (सीसीएमजी) ने वर्ष 2021 में जाम्बिया के राष्ट्रपति उप-चुनाव में 1108 पर्यवेक्षकों को तैनात किया था। जॉर्जिया में ‘द यंग लॉयर्स एलायंस‘ और आईएसएफईडी (इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर फेयर इलेक्शन) (ISFED) ने भी चुनाव के दौरान महत्वपूर्ण डेटा जुटाए थे। पत्रकारों के लिए ऐसे संगठनों के डेटाबेस में खबरों का खजाना मौजूद है।
पैट मेर्लो कहते हैं- “किसी पत्रकार की नजर चुनावी हिंसा पर होगी। कुछ पत्रकारों को दुष्प्रचार पर रिपोर्टिंग करनी है। सभी पत्रकारों को मतदाता सूचियों की शुद्धता, मतदान केंद्रों का स्थान, चुनाव के दिन देखने योग्य दस चीजों पर सवाल महत्वपूर्ण होंगे। ऐसे सभी पत्रकारों से हम चर्चा करना चाहते हैं।“
2. अपने देश को सच्चा लोकतंत्र मानते हुए रिपोर्टिंग करें, भले ही ऐसा न हो
एक पत्रकार के बतौर हमारा दायित्व लोकतंत्र को मजबूत करना है। संभव है कि आप जिस देश के चुनावों की रिपोर्टिंग कर रहे हों, वहां निरंकुश शासन हावी हो। इसके बावजूद जहां तक संभव हो, यह मानते हुए रिपोर्ट करें कि वहां अब भी सच्चा लोकतंत्र है। यह एक महत्वपूर्ण सामान्य रणनीति है। आप लोकतांत्रिक मूल्यों के पैमाने पर हर अनियमितता और चुनावी धांधली की रिपोर्टिंग करें। भले ही इसके बावजूद गलत करने वालों पर कार्रवाई न हो। लेकिन इससे लोकतांत्रिक प्रथाओं पर चीजों को परखने का अवसर बना रहेगा। मिस्र की पत्रकार लीना अट्टाला कहती हैं – “यह दृष्टिकोण आपको आत्म-सेंसरशिप से रोकने में मदद करता है। आप सार्वजनिक नैतिकता का उच्च मापदंड दिखा पाते हैं और मतदाता भी बेहतर लोकतंत्र की उम्मीद बनाए रखता है।“
3. क्राउडसोर्स से जुटाएं चुनावी धांधली के सबूत
चुनाव संबंधी धांधली की जानकारी पाने के लिए आप सोशल मीडिया से क्राउडसोर्स करके सबूत जुटा सकते हैं। खासकर जिन देशों में चुनावी बहसों का प्रमुख माध्यम व्हाट्सएप जैसा गैर-सार्वजनिक मैसेजिंग प्लेटफॉर्म हो, वहां ऐसा करना उपयोगी है। जैसे, दक्षिणी अफ्रीका या लैटिन अमेरिका में। विशेषज्ञों की सलाह है कि आप ‘गूगल वाॅयस ऐप‘ के माध्यम से एक व्हाट्सएप टिप लाइन नंबर जारी करें। इसका उपयोग करके दर्शकों को किसी भी झूठे चुनावी दावों, मतदाता पंजीकरण में धांधली, मतदाताओं को डराने धमकाने जैसे मामलों की रिपोर्ट भेजने का अनुरोध करें। विशेषज्ञ यह भी सलाह देते हैं कि कई मीडिया संगठन मिलकर एक ही टिप लाइन नंबर का उपयोग करके ऐसे सबूत जुटाएं। एक साथ काम करके अलोकतांत्रिक चीजों का पर्दाफाश करें। ऐसे तथ्यों के आधार पर संबंधित अधिकारियों से सवाल करें।
यह तकनीक बेहतर लोकतांत्रिक देशों के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसके जरिए किसी दुष्प्रचार का पता लगाना आसान है। कुछ देशों में मतदाताओं को डराया जाता है कि वोट देने वालों के खिलाफ किसी टैक्स विभाग द्वारा जांच की जाएगी। मतदाताओं को बरगलाने या धमकी देने वाले टेलिफोन कॉल या मैसेज के लिए जिम्मेदार लोगों का पता लगाना भी अब संभव है। किसी समूह विशेष के मतदाताओं को चुनाव की तारीख एक दिन बाद की बताकर मतदान से वंचित करने की साजिशें भी होती हैं। पत्रकारों के सामने ऐसे विषयों पर खोजी रिपोर्टिंग करना बड़ी चुनौती है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि ऐसी खबरों और डेटा के लिए क्राउडसोर्सिंग का उपयोग करना सबसे कारगर है। एक बार इससे कुछ जानकारी मिल जाए, तो इससे जुड़े अन्य पहलुओं की जानकारी निकालना भी संभव होगा।
4. बूलियन गूगल सर्च करें और दोहराएं
एडवांस ‘बूलियन सर्च ट्रिक‘ (Boolean search tricks) और ‘गूगल डॉक्र्स‘ (“Google dorks”) जैसी ऑनलाइन सर्च के जरिए पत्रकार अपने लिए आवश्यक डेटा की तलाश कर सकते हैं। इनके जरिए आप अपनी सर्च को अपनी जरूरत के अनुसार सीमित और उन चीजों पर केंद्रित कर सकते हैं। जीआईजेएन द्वारा इस गाइड के लिए विशेषज्ञों से साक्षात्कार में कई बातें सामने आईं। ऐसी खोज के जरिए बुनियादी तथ्यों तक तेजी से पहुंचने के लिए बार-बार जांच और भूलसुधार जैसे तरीकों के उपयोग की जरूरत है। इसके लिए उन्नत ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस कौशल की भी खास आवश्यकता नहीं होती।
खोजी पत्रकार नैन्सी वत्जमैन (न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी की ‘साइबर सिक्योरिटी फॉर डेमोक्रेसी प्रोजेक्ट‘ की सलाहकार) का एक उदाहरण देखें। उन्होंने मतदाताओं को डराने-धमकाने की साजिशों के सबंध में गूगल सर्च करके दिखाया। इसके लिए उन्होंने कई बार ध्यानपूर्वक एक ही प्रकार के सोचे-समझे ‘कीवर्ड‘ का उपयोग किया। मूल शब्द AND तथा OR लिखकर सामान्य गूगल सर्च बार में तलाश किया।
- पत्रकार नैन्सी वत्जमैन की डिजिटल नोटबुक से सरल गूगल सर्च का एक उदाहरण देखें। अमेरिका की राजधानी में छह जनवरी 2021 के दिन हिंसक घटनाएं हुई थीं। इसके बाद 20 जनवरी को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ‘जो बाइडेन‘ का शपथ ग्रहण समारोह था। इस दिन हिंसा की संभावना का पता लगाने के लिए पत्रकार नैन्सी वत्जमैन कुछ ‘जुड़वा‘ शब्दों की एक श्रृंखला का उपयोग किया। जैसे- “patriot” AND (“march” OR “rally” OR “january 20” OR “jan 20” OR “fraudulent election” OR “ashli babbit” OR “storm” OR “capital” OR “capitol”) “inauguration” AND (“march” OR “rally” OR “storm” OR “fraud”).
नैन्सी वत्जमैन कहती हैं- “चुनाव संबंधी सूचनाओं की तलाश में गूगल खुद बेहद शक्तिशाली है। जिस तरह सर्च इंजन काम करता है, उसी तरीके से सोचते हुए हम जांच करें और कोशिश करते रहें, तो काफी जानकारी मिल सकती है।“
5. मतदाताओं की अपेक्षाओं को सामने लाएं
चुनावों के दौरान पत्रकार विभिन्न संस्थाओं की जवाबदेही सुनिश्चित करने, लोकतंत्र को बढ़ावा देने और धांधली को उजागर करने जैसे महत्वपूर्ण काम करते हैं। इसके साथ ही उन्हें तथ्यों की सच्चाई और चुनावों की वैधता को भी रेखांकित करना जरूरी है। इसमें विजुअलाइजेशन शामिल है। इसके लिए फ्लॉरिश (Flourish) नामक ओपन-सोर्स टूल काफी उपयोगी है। यह झूठ और धोखाधड़ी के दावों का मुकाबला करने में मीडिया को सहयोग करता है। मतगणना में होने वाली त्रुटियों तथा मतदाताओं की अपेक्षाओं को सामने लाने में भी इससे मदद मिलती है। राजनीतिक रूप से ध्रुवीकृत देशों में मीडिया की विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए ‘हमने ऐसा क्यों किया‘ – इसकी व्याख्या करना भी अच्छा तरीका है।
‘ट्रस्टिंग न्यूज‘ (Trusting News) के सहायक निदेशक लिन वॉल्श ने कहा- “पत्रकार अपनी खोजी चुनावी स्टोरीज के मुख्य भाग में स्पष्ट बताएं कि हमने यह खबर ‘क्यों‘ और ‘कैसे‘ दी है। रिपोर्टर अपने ही शब्दों में एक वीडियो बनाकर इसे खुद बताएं तो काफी प्रभावी होगा।“
राइज मोल्दोवा केस स्टडी: इलेक्शन स्कूप्स के लिए एक मेथडोलॉजी
चुनावी रिपोर्टिंग के दौरान नए-नए प्रश्नों पर विचार करने के लिए कई प्रकार के वैश्विक और स्थानीय डेटाबेस काफी उपयोगी होते हैं। विभिन्न चीजों के बीच संबंध तलाशने और तथ्यों की जांच करने के लिए यह उत्कृष्ट संसाधन हैं। इस गाइड के आगामी अध्यायों में हम ऐसे कई उपयोगी डेटासेट साझा करेंगे।
पूर्वी यूरोप के एक देश ‘मोल्दोवा‘ के खोजी मीडिया संस्थान ‘राइज मोल्दोवा‘ से जुड़ी एक केस स्टडी देखें। यह जीआईजेएन का सदस्य है। यह ‘ओर्गेनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट‘ (ओसीसीआरपी) का पूर्वी यूरोप स्थित सहयोगी संगठन है। इसके रूसी भाषा के संपादक व्लादिमीर थोरिक कहते हैं- “चुनावी धांधली से जुड़ी अधिकांश बड़ी खबरें मानवीय स्रोतों या लीक से ही शुरू होती हैं। इसके बाद डेटाबेस की जांच, सोशल मीडिया सर्च और ओपन सोर्स टूल्स का उपयोग करके व्यापक खबर बनती है।“
वर्ष 2020 में व्लादिमीर थोरिक और उनकी टीम ने ‘क्रेमलिनोविसी जांच’में यही तरीका अपनाया। इस खोजपूर्ण रिपोर्टिंग की शुरूआत एक गुमनाम स्रोत से मिली एक जानकारी से हुई। इस प्रारंभिक सूचना के आधार पर विभिन्न उच्चस्तरीय स्रोतों के साथ साक्षात्कार किया गया। चेर्नोव अभिलेखागार के डेटाबेस से भी जानकारी निकाली गई। ‘रूसी डोजियर सेंटर‘ के साथ सहयोगी रिपोर्टिंग के जरिए सभी सूचनाओं का सत्यापन किया गया।
इस व्यापक प्रक्रिया का अच्छा परिणाम मिला। देश (मोल्दोवा) के तत्कालीन राष्ट्रपति और रूसी खुफिया सेवाओं के बीच दोबारा चुनाव अभियान मामले में घनिष्ठ संबंधों का खुलासा हुआ। चुनाव संबंधी नियम-कानूनों के उल्लंघन को भी दस्तावेजीकरण किया गया। राष्ट्रपति के परिवार और रूसी कारपोरेट कंपनियों के बीच कई व्यापारिक संबंध पाए गए। राष्ट्रपति भवन और सत्तारूढ़ पार्टी मुख्यालय में ‘चुनाव प्रौद्योगिकी सलाहकार‘ के नाम पर आठ रहस्यमय आगंतुकों की खबर भी सामने आई, जिन्हें क्रेमलिन से भेजा गया था। राइज मोल्दोवा ने यह खबर भी निकाली कि एक गुप्त रूसी विदेशी प्रभाव वाली इकाई द्वारा किस तरह कई भाषण और चुनावी अभियान के नारे तैयार किए गए थे। इस तरह मोन्दोवा के चुनावों में रूस की गोपनीय भूमिका का खुलासा हुआ।
‘राइज मोल्दोवा‘ की यह चुनावी खबर श्रृंखला एक उपयोगी केस स्टडी है। इसके प्रमुख टिप्स इस प्रकार हैं:
- चुनाव अभियान से जुड़े लोगों, नागरिक समाज संगठनों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लोगों को अपनी खबरों के लिए ‘स्रोत‘ बनाएं।
- ‘ओपन कॉर्पोरेट्स‘ और ‘एलेफ‘ जैसे डेटाबेस तथा सोशल मीडिया का उपयोग करके उम्मीदवारों के आर्थिक और राजनीतिक संबंधों की जांच करें। राइज मोल्दोवा ने रूसी स्रोतों से लीक सूचनाओं की जांच के लिए चेर्नोव अभिलेखागार के डेटाबेस का उपयोग किया।
- चुनावी खतरों की पहचान करें – जैसे कि रूसी हस्तक्षेप का खतरा। चुनावों में अलोकतांत्रिक तरीकों के उपयोग तथा लोकतंत्र पर खतरों का पता लगाएं।
- लगातार साहसी राजनीतिक रिपोर्टिंग करते हुए व्हिसल ब्लोअर लोगों को महत्वपूर्ण सूचनाएं देने के लिए प्रेरित करें। गोपनीय सूचनाएं देने वाले स्रोतों के भीतर सुरक्षा की भावना पैदा करने के लिए उनके साथ संवाद के सुरक्षित तरीकों का उपयोग करें। उनसे दस्तावेज लेने के लिए ‘प्रोटॉन मेल‘ (Protonmail) और संचार के लिए ‘सिग्नल‘ (Signal) जैसे एन्क्रिप्टेड चैनलों का उपयोग करें।
- राजनीतिक बहसों, गलत सूचनाओं, अफवाह और अपनी रिपोर्टिंग के संभावित प्रभावों को जानने के लिए ‘सोशल मीडिया सर्च टूल्स‘ का उपयोग करें।
- ऐसे मीडिया संस्थानों और गैर-लाभकारी संगठनों के साथ सहयोगी आधार पर काम करें जिनके पास आपके द्वारा उजागर किए गए विषय पर बेहतर स्रोत या गहरी अंतर्दृष्टि है। राइज मोल्दोवा ने विदेशी चुनावों को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार क्रेमलिन विभाग को उजागर करने के लिए ने ‘रूसी डोजियर केंद्र‘ का सहयोग लिया।
- चुनाव संबंधी नियम कानूनों पर खुद को प्रशिक्षित करें। केंद्रीय चुनाव आयोग के कानूनों का पता लगाएं। नियमों के संभावित उल्लंघन की जांच करें।
- सड़कों पर और चुनावी सभाओं में जाकर व्यक्तिगत रूप से विभिन्न लोगों का साक्षात्कार लें। रैलियों और सार्वजनिक कार्यक्रमों में चुनाव अभियान से जुड़े संभावित आंतरिक स्रोतों पर ध्यान दें, जैसे ड्राइवर, रसोइया, फोटोग्राफर, किसी नेता के सहायक, कार्यकर्ता इत्यादि। चुनाव अभियान से जुड़े लोगों से बातचीत करने वाले अपरिचित चेहरों की तस्वीरें लें। इनका उपयोग बाद के विश्लेषण में हो सकता है।
- किसी भी कदाचार या धांधली के पीछे असली खिलाड़ी की पहचान करने और उस पर नजर रखने के लिए ‘ओपनसोर्स टूल‘ का उपयोग करें। व्लादिमीर थोरिक की टीम ने बाहर के आए कथित ‘चुनाव सलाहकारों‘ की पहचान करने के लिए PimEyes और Findclone जैसे टूल का इस्तेमाल किया। ऐसे लोगों को इस मीडिया टीम के स्रोत नहीं पहचानते थे। इसके कारण उन लोगों पर संदेह हुआ।
- विशेषज्ञों और डेटा विश्लेषण से पता लगाएं कि किसी कदाचार या धांधली ने चुनाव को किस प्रभावित किया। उसी तरह की रणनीति यदि अन्य देशों में पिछले किसी चुनाव में अपनाई गई हो, तो उसकी जानकारी लेना भी उपयोगी होगा।
व्लादिमीर थोरिक कहते हैं- “चुनाव में एक बड़े रहस्योद्घाटन के लिए आपको प्राथमिक जानकारी की आवश्यकता होती है। ऐसी सूचना आपको किसी भी डेटाबेस में नहीं मिल सकती है। इसके लिए आपके किसी मानव स्रोत या कहीं से खबर लीक होने पर ही भरोसा करना होगा। ऐसी कोई प्रारंभिक सूचना मिलने के बाद आपको डेटाबेस की आवश्यकता पड़ती है। इनमें तथ्यों की जांच करके आप नए तथ्य हासिल करते हैं। विभिन्न उपकरणों का प्रयोग करके आप संबंधित व्यक्तियों की पहचान भी करते हैं।“
इसका एक दिलचस्प उदाहरण देखें। व्लादिमीर थोरिक की टीम को मिली प्रारंभिक टिप में पता चला कि ऑनलाइन उपयोगकर्ता का नाम ‘क्रेमलिनोविसी‘ है। इस नाम का उपयोग मोल्दोवा के तत्कालीन राष्ट्रपति ने रणनीतिक संचार के लिए किया था। इसके कारण पत्रकारों की टीम को अपनी ऑनलाइन जांच के लिए महत्वपूर्ण सुराग हाथ लगे।
किसी गोपनीय स्रोत द्वारा कोई सूचना लीक की जाती हो, तो उसे डिजिटल माध्यम से लेने के बजाय व्यक्तिगत तौर पर लेना ज्यादा सुरक्षित है। डिजिटल माध्यम से लेने पर उसका सबूत रह जाता है, जो बाद में आपके गोपनीय स्रोत के लिए नुकसानदेह हो सकता है। व्यक्तिगत रूप से सूचना लेने के लिए भी किसी मध्यस्थ का उपयोग करना बेहतर है। आपके सीधे संपर्क में आने से स्रोत को खतरा हो सकता है।
व्लादिमीर थोरिक की टीम ने मोल्दोवा के चुनावों में रूसी हस्त़क्षेप का खुलासा करके खोजी पत्रकारिता का शानदार उदाहरण पेश किया। इससे रूस समर्थक उम्मीदवार द्वारा खतरनाक विदेशी हस्तक्षेप का पता चला। मोल्दोवा के कानूनों का उल्लंघन भी साबित हुआ। बाहरी सलाहकारों ने केंद्रीय चुनाव आयोग में अपना पंजीकरण नहीं कराया था। इन खबरों से यह भी पता चला कि उस रूसी हस्तक्षेप के कारण चुनाव अभियान रणनीति में भारी बदलाव आया।
संपादकीय टिप्पणी: यदि आप चुनावी रिपोर्टिंग के लिए उपयोगी किसी उपकरण या डेटाबेस के बारे में जानते हैं, कृपया हमें ईमेल (hello@gijn.org) पर साझा करें। इस गाइड का पहला अध्याय ‘चुनावी रिपोर्टिंग के नए उपकरण‘ जल्द की आएगा। उसके बाद के अध्याय भी अवश्य देखें।
अतिरिक्त संसाधन
Focus on the Risks to Democracy: Lessons from Abroad for US Election Coverage
Essential Resources for the US Election: A Field Guide for Journalists on the Frontlines
How Open Source Experts Identified the US Capitol Rioters
रोवन फिलिप जीआईजेएन से जुड़े पत्रकार हैं। पहले वह दक्षिण अफ्रीका के संडे टाइम्स के मुख्य संवाददाता थे। एक विदेशी संवाददाता के रूप में उन्होंने दुनिया भर के दो दर्जन से अधिक देशों से समाचार, राजनीति, भ्रष्टाचार और संघर्ष पर रिपोर्टिंग की है।