‘द इकोनॉमिस्ट‘ लंदन से प्रकाशित होने वाली प्रसिद्ध पत्रिका है। इसने दिसंबर 2019 अंक में जीपीटी-2 नामक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मशीन के साथ एक साक्षात्कार प्रकाशित किया था। जीपीटी-2 मशीन को टेक्स्ट के रूप में जवाब देने के लिए प्रशिक्षित किया गया था। साक्षात्कार में इस मशीन ने 2020 में दुनिया के भविष्य को लेकर पूछे गए सवालों का जवाब दिया।
एक सवाल था- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का भविष्य क्या है?‘
जीपीटी-2 मशीन के उस बॉट ने उत्तर दिया: “बेहतर होगा कि हम प्रौद्योगिकी का अधिक जिम्मेदारी से उपयोग करें। इसे हम एक उपयोगिता या उपकरण की तरह काम में लाएं। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि तकनीक हमें नुकसान पहुँचाएगी और हमारा जीवन नष्ट कर देगी। ऐसा सोचने के बजाय हमें प्रौद्योगिकी के विकास का हर संभव प्रयास करना चाहिए।“
जीपीटी-2 मशीन का बॉट खुद नहीं समझता है कि वह क्या बोल रहा है। साक्षात्कार में इसके उत्तर कुछ अस्पष्ट हैं। फिर भी इसने काफी अच्छे जवाब दिए हैं। जीपीटी-2 का निर्माण करने वाली कंपनी ‘ओपेन एआई‘ ने अब जीपीटी-3 भी बना ली है। यह बहुत अधिक शक्तिशाली है। इसमें स्वचालित टेक्स्ट जनरेशन की क्षमता है। इस प्रकार के ‘एआई‘ का उपयोग करने से मीडिया की क्षमता काफी बढ़ जाएगी।
जून 2019 में यूरोपियन साइंस-मीडिया हब (ईएसएमएच) ने पत्रकारिता में एआई पर एक लेख प्रकाशित किया। इसी विषय पर फ्रांस के शहर स्ट्रासबर्ग में युवा पत्रकारों और छात्रों के लिए तीन दिवसीय ग्रीष्मकालीन कक्षाएं भी लगाई गईं। उसके बाद से अब तक महत्वपूर्ण घटनाक्रम क्या हैं? इस पर क्या चर्चा रही है? आइए, इस आलेख में समझते हैं पूरी बात।
वर्तमान विकास-क्रम
संयुक्त राज्य अमेरिका की नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी में संचार अध्ययन और कंप्यूटर विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर निकोलस डायकोपोलोस ने कहा: “पिछले एक साल में काफी महत्वपूर्ण बदलाव आया है। दुनिया भर के न्यूजरूम में एआई के प्रति स्वीकार्यता और जागरुकता बढ़ रही है। पत्रकारिता में नई किस्म की नौकरियों के अवसर पैदा होंगे। कुछ नौकरियां पारंपरिक रिपोर्टिंग के काम जैसी नहीं बल्कि ज्यादा तकनीकी काम जैसी दिखेंगी।“
प्रो. निकोलस डायकोपोलोस ने पत्रकारिता के लिए उपयोगी कई ‘एआई‘ टूल्स के बारे में बताया। ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स‘ ने पत्रकारिता में ‘एआई‘ के जरिए प्रयोग करने के लिए एक शोध और विकास प्रयोगशाला शुरू की है। वाशिंगटन पोस्ट ने डायकोपोलोस के सहयोग से समाचार खोज उपकरणों का प्रयोग शुरू किया है। कुछ अकादमिक काम भी हुए हैं। जैसे, ‘मशीन और मीडिया‘ और ‘कम्प्यूटेशन एंड जर्नलिज्म सिम्पोजियम‘ की स्थापना हुई है।
कोरोना वायरस संकट के कारण वर्ष 2020 में ओलिंपिक खेल रद्द कर दिये गये थे। लेकिन ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स‘ ने थ्री-डी दृश्यों के साथ खेलों का कवरेज करने के लिए कंप्यूटर विजन और ‘एआई‘ तकनीक का प्रयोग करने की योजना बना रखी थी। वास्तविक समय में टीवी दर्शकों का आनंद बढ़ाने के लिए ‘एआई‘ का उपयोग करने की योजना थी। जैसे, एथलीटों के लाइव प्रदर्शन के दौरान उसके विभिन्न पहलुओं के संबंध में दर्शकों को बेहतर समझ प्रदान करना।
प्रो. निकोलस डायकोपोलोस ने ‘वॉशिंगटन पोस्ट‘ की एक टीम के सहयोग से वर्ष 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के लिए एक समाचार खोज उपकरण विकसित किया था। इसके तहत पूरे अमेरिका के लाखों पंजीकृत मतदाताओं का डेटासेट बनाकर विभिन्न स्थानों से जुड़ी प्रवृतियों की जानकारी पाना और मतदाताओं में जनसांख्यिकीय प्रवृत्ति समझने का प्रयास किया गया। जैसे, टेक्सास में हिस्पैनिक मतदाताओं के नए पंजीकरण का मामला।
प्रो. निकोलस डायकोपोलोस और उनकी शोध प्रयोगशाला द्वारा एक उपकरण बनाया जा रहा है। इससे खोजी पत्रकारों को एल्गोरिदम के जरिए अमेरिकी सरकार संबंधी जानकारी निकालने में मदद मिलेगी। हर सप्ताह स्वचालित रूप से अलर्ट देने के लिए इस टूल को सेट किया जा सकता है। जैसे, यह आपको बताएगा कि पिछले हफ्ते आठ नए एल्गोरिदम मिले, जो आपकी रुचि से मेल खाते हैं। फिलहाल नौ पत्रकार इस टूल का परीक्षण कर रहे हैं।
समाज पर प्रभाव
वर्ष 2019 में, ‘लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स‘ ने ‘पत्रकारिता और एआई‘ का एक वैश्विक सर्वेक्षण प्रकाशित किया। यह रिपोर्ट 32 देशों के 71 मीडिया संस्थानों के साथ साक्षात्कार पर आधारित थी। इसका एक निष्कर्ष यह था कि ‘एआई‘ के कारण पत्रकारिता को एक गतिशील तरीके से नया रूप मिलेगा। इसका दीर्घकालिक तौर पर संरचनात्मक प्रभाव भी पड़ेगा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पत्रकारिता में ‘एआई टूल‘ के इस्तेमाल का समाज पर भी गहरा असर होगा। इसका रिपोर्टिंग की विविधता, लोकतंत्र और जनहित पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
एम्स्टर्डम विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नताली हेलबर्गर इन सवालों का सटीक अध्ययन करती हैं। वह कहती हैं कि पत्रकारिता और प्रौद्योगिकी का हमेशा घनिष्ठ संबंध रहा है। जैसे, फोटोग्राफी, टेलीफोन, रेडियो, टीवी, कंप्यूटर, इंटरनेट, स्मार्टफोन। इन सभी चीजों से पत्रकारिता में बदलाव आया है। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा- “हरेक तकनीक पहले काफी प्रचार के साथ आती है। फिर उसे लेकर चिंता की लहर पैदा होती है। लेकिन इसके बाद उसका रचनात्मक उपयोग होने लगाता है। प्रौद्योगिकी के जरिए पत्रकारिता को काफी लाभ मिलता है।“
प्रो. नताली हेलबर्गर के अनुसार किसी भी विशेष तकनीक को बदनाम करना गलत है। हमें देखना होगा कि एक लोकतांत्रिक समाज बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कैसे करें। वह कहती हैं- “एआई के पास पत्रकारिता में काफी बड़े बदलाव लाने की क्षमता है। इसके जरिए व्यापक स्तर पर पाठकों से जुड़ने के नए तरीके मिलते हैं। एआई से किसी भी जानकारी को अधिक कुशलता से खोजने और बेहतर जानकारी पाने की संभावना बढ़ती है। लेकिन उस शक्ति के साथ जिम्मेदारियां भी आती हैं। जैसे, मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करना।“
इन जिम्मेदारियों के कारण प्रो. नताली हेलबर्गर चाहती हैं कि पत्रकारिता में अनुसंधान एवं विकास जैसे कामों का वित्त-पोषण स्वतंत्र किस्म का होना चाहिए। वह कहती हैं- “पत्रकारिता में कई तकनीकी नवाचार का वित्तपोषण ‘गूगल न्यूज इनिशिएटिव‘ द्वारा किया जाता है। यह अच्छी बात है। लेकिन गूगल एक निजी कंपनी है। जबकि मीडिया हमारे लोकतंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उसे हमेशा स्वतंत्र रहना चाहिए।“
प्रो. नताली हेलबर्गर ने स्वचालित समाचार अनुशंसाओं के उपयोग पर शोध किया है। ऐसी अनुशंसा के कारण रिपोर्टिंग की विविधता पर गहरा असर पड़ता है। वह कहती हैं- “लोकतंत्र में विचारों, संस्कृतियों, जातियों और धर्मों में विविधता महत्वपूर्ण है। यह हमें सहिष्णुता सिखाती है। खासकर वर्तमान ध्रुवीकृत समय में मीडिया को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह समावेशी हो। वह सबकी सेवा करे, न कि केवल एक विशेष समूह की।”
वह अपने विश्वविद्यालय के सहयोगियों तथा जर्मन सार्वजनिक प्रसारक जेडडीएफ के साथएक विविधता टूलकिट का परीक्षण कर रही हैं। इसे नीदरलैंड के वाणिज्यिक प्रसारक आरटीएल के डेटा वैज्ञानिकों के सहयोग से विकसित किया गया है। यह एक सामान्य, स्टैंड-अलोन टूलकिट है जो मीडिया पेशेवरों को उनकी एल्गोरिथम सिफारिशों की विविधता को समझने और उनका आकलन करने में मदद करता है। अपनी जरूरत के आधार पर अधिक आकर्षक सामग्री, अधिक राजनीतिक सामग्री, या अधिक अल्पसंख्यक आवाज, अनुशंसा उपकरण का चयन किया जा सकता है।
प्रो. नताली हेलबर्गर ने कहा- ”प्रत्येक एआई टूल को हर एक मीडिया संस्थान की खास जरूरत के अनुसार सेट करना होगा। किसी मशीन को आपकी पत्रकारिता के मूल्यों और दृष्टिकोण की जानकारी नहीं है। कोई मशीन यह तय नहीं कर सकती कि आपके लिए कौन-से मूल्य महत्वपूर्ण हैं। यह एक मानवीय निर्णय है।”
यूरोपियन साइंस-मीडिया हब वेबसाइट पर यह लेख 9 सितंबर, 2020 को प्रकाशित हुआ था। हम अनुमति के साथ पुनः प्रकाशित कर रहे हैं।
अतिरिक्त संसाधन
How Innovative Newsrooms Are Using Artificial Intelligence
How Machine Learning Can (And Can’t) Help Journalists
Beyond the Hype: Using AI Effectively in Investigative Journalism
बेनी मोल्स एम्स्टर्डम स्थित एक स्वतंत्र विज्ञान पत्रकार, लेखक और वक्ता हैं। वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोट और मानव मस्तिष्क के विशेषज्ञ हैं। आप अंग्रेजी और डच में उनके ब्लॉग यहाँ देख सकते हैं। डच में उनकी वेबसाइट यहाँ देख सकते हैं। मानव-मशीन बातचीत के बारे में उनकी टेडेक्स प्रस्तुति भी आप यहां देख सकते हैं।