तीन आलेखों की श्रृंखला का यह अंतिम भाग है। इस श्रृंखला का नाम है: ‘सेविंग जर्नलिज्म-2 : वैश्विक रणनीति और खोजी पत्रकारिता‘। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के ‘स्कूल ऑफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स‘ में प्रौद्योगिकी, मीडिया और संचार कार्यक्रम की निदेशक आन्या श्रिफ़िन के नेतृत्व वाली टीम की यह एक नई रिपोर्ट है। प्रस्तुत अंश ‘खोजी पत्रकारिता के सामने चुनौतियों‘ के बारे में डेविड ई. कपलान (कार्यकारी निदेशक, जीआईजेएन) के साथ एक साक्षात्कार है।
आन्या श्रिफ़िन – पिछले साल खोजी पत्रकारिता का प्रदर्शन कैसा रहा?
डेविड कपलान: आज दुनिया भर में खोजी पत्रकारों को असाधारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। हमें कानूनी खतरों, धमकियों, शारीरिक खतरों, बढ़ती निगरानी, ऑनलाइन ट्रोलिंग और दुर्व्यवहार से गुजरना पड़ रहा है। दूसरी ओर, वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण और संसाधनों की कमी से भी निपटना पड़ता है। दुनिया भर में स्वतंत्र मीडिया, लोकतंत्र, मानवाधिकारों और नागरिक समाज के खिलाफ कई तरह के हमले देखे जा रहे हैं। लेकिन वॉचडॉग होने के कारण खोजी पत्रकारिता को इन खतरों की पहली पंक्ति में देखा जा सकता है। दुनिया के निरंकुश और कुलीन वर्गों तथा सत्ता का दुरुपयोग करने वालों के प्रमुख निशाने पर हम खोजी पत्रकार ही हैं। बदलते आर्थिक मॉडल और कोरोना महामारी के कारण भी खोजी पत्रकारिता का हमारा क्षेत्र ज़बर्दस्त दबाव में है।
इन चुनौतियों के बावजूद दुनिया भर में खोजी पत्रकारिता बढ़ रही है। हमने 2013 में गैर-लाभकारी संस्था के बतौर जीआईजेएन को स्थापित किया था। उस वक्त सोशल मीडिया पर हमारे मात्र 1,000 फॉलोअर थे। अब हमारे पास 3,50,000 फॉलोअर हैं। नवंबर 2021 में हमने बारहवें वैश्विक खोजी पत्रकारिता सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें 144 देशों के पत्रकारों की भागीदारी का रिकॉर्ड बना। आज हमारे साथ पहले से काफी अधिक खोजी पत्रकार हैं, जो पहले से कहीं अधिक बेहतर टूल के साथ बेहतर न्यूज स्टोरीज कर रहे हैं। दुनिया की निरंकुश और कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ जनहित पत्रकारिता का विस्तार हुआ है। वैश्वीकरण, कंप्यूटिंग शक्ति, त्वरित संचार, डेटा तक पहुंच जैसी चीजों ने भी दुनिया के खोजी पत्रकारों को बढ़ावा दिया है।
आन्या श्रिफ़िन: खोजी पत्रकारिता की मदद के लिए किस तरह के नीतिगत उपाय सामने आए हैं?
डेविड कपलान: पिछले 20 वर्षों में खोजी पत्रकारिता संगठनों का बड़ा नेटवर्क दुनिया भर में फैल गया है। जीआईजेएन पहली बार 2003 में 22 देशों के 35 गैर-लाभकारी संस्थाओं के नेटवर्क के रूप में बना था। आज 88 देशों में हमारे 227 समूह हैं। ऐसे समूह दुनिया भर में प्रशिक्षण, नेटवर्किंग और बड़ी सीमा पार परियोजनाओं का दायित्व निभाते हैं। लेकिन उन पर हमले हो रहे हैं। हमें उनकी क्षमता बढ़ाने और स्थिरता कायम करने की जरूरत है। हमें अधिक प्रशिक्षण, अधिक धन और अधिक संसाधनों की आवश्यकता है। हमारे पास संसाधनों की बेहद कमी है। रूस का राज्य-वित्त पोषित ‘आरटी नेटवर्क‘ एक ही दिन में उतनी बड़ी राशि खर्च कर देता है, जितना जीआईजेएन का पूरे एक साल का बजट है।
हमें दुनिया के सभी देशों में खोजी पत्रकारिता के लिए अनुकूल कानूनी वातावरण की आवश्यकता है। आपराधिक मानहानि कानूनों का अंत किया जाना चाहिए। पत्रकारों पर हमला करने वालों के खिलाफ समुचित कानूनी कार्रवाई हो और उन्हें पर्याप्त दंड मिले। राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर प्रेस के खिलाफ विभिन्न कानूनों के दुरुपयोग का अंत हो। सूचना का अधिकार भी दुनिया के सभी देशों में अच्छी तरह से लागू किया जाए।
हमें स्वतंत्र पत्रकारिता के आर्थिक ढांचे को मजबूत करने वाला सिस्टम बनाने के लिए सरकारी सहयोग की आवश्यकता है। विज्ञापनों पर मीडिया की निर्भरता न हो। इसके बजाय, सदस्यता मॉडल अपनाने के अलावा गैर-लाभकारी संस्थाओं और सहकारी समितियों के माध्यम से खोजी पत्रकारिता के प्रयोग किया जाना शामिल है। सरकारों को टैक्स संबंधी कानूनों और परोपकारी अनुदान प्रोत्साहन के माध्यम से जनपक्षधर मीडिया को मजबूत करना चाहिए। लेकिन ऐसा करने के बदले कई देश बिल्कुल उल्टे रास्ते पर जा रहे हैं। एनजीओ विरोधी कानून पारित करके अंतरराष्ट्रीय मदद को प्रतिबंधित किया जा रहा है। ऐसे सनकी कदमों से नुकसान होगा।
स्वतंत्र मीडिया की मदद के लिए विदेशी सहायता एजेंसियों को और अधिक प्रतिबद्धता दिखाने की आवश्यकता है। अभी मीडिया को मिलने वाली राशि अंतरराष्ट्रीय सहायता का अनुमानित तीन फीसदी मात्र है। उस राशि का मात्र 10 फीसदी (कुल सहायता का मात्र 0.3 फीसदी) से भी कम हिस्सा खोजी पत्रकारिता समूहों को मिलता है। जबकि खोजी पत्रकारिता के कारण सरकारी खजाने को अरबों डॉलर का लाभ होता है। वाचडॉग मीडिया के कारण होने वाले जुर्माने की वसूली, टैक्स और विभिन्न मामलों के निपटारे के कारण सरकारी खजाने को काफी राशि प्राप्त हो जाती है। इसके अलावा, खोजी पत्रकारिता के कारण विभिन्न तरीकों से अनगिनत लोगों की जिंदगी बचाने में भी सफलता मिलती है। इसलिए दुनिया भर में जनहित की निगरानी करने वाली पत्रकारिता की मदद करने के लिए समुचित सिस्टम होना चाहिए।
आन्या श्रिफ़िन: क्या ऐसे परोपकारी प्रयास या नए व्यवसाय मॉडल सामने आए हैं, जिन्हें लेकर आप उत्साहित हों?
डेविड कपलान: विज्ञापन पर आधारित मीडिया का मॉडल दुनिया के अधिकांश हिस्सों में विफल हो रहा है। इसलिए नए व्यापार मॉडल की तलाश करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। चिली, हंगरी, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में ‘सदस्यता मॉडल‘ ने काफी उम्मीद जगाई है। सदस्यता, प्रायोजन, इवेंट प्रोडक्शन, शिक्षण और प्रशिक्षण सभी चीजें महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं।
परोपकारी फंडिंग का विस्तार करना जरूरी है। धीरे-धीरे ऐसा हो भी रहा है। हमारे पास पहले से कहीं अधिक जगहों पर अधिक दानकर्ता हैं। व्यक्तिगत दाताओं की संख्या बढ़ाना भी जरूरी है। यह मान्यता लगातार बढ़ती जा रही है कि विकास और लोकतंत्र के लिए खोजी पत्रकारिता आवश्यक है। समर्थन के अतिरिक्त स्रोत उत्पन्न करने के लिए नया वित्तपोषण तंत्र बनाने की योजना भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। हमें अपने वित्तपोषण का आधार बढ़ाने के लिए बहुत कुछ करना है। पत्रकार जोखिम लेने और कठिन रिपोर्टिंग करने को तैयार हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें संसाधनों की आवश्यकता है।
आन्या श्रिफ़िन: मौजूदा कठिन समय में जीआईजेएन किस तरह खोजी पत्रकारिता की मदद कर रहा है?
डेविड कपलान: जीआईजेएन कई स्तरों पर क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण और उपकरण प्रदान करने के साथ ही खोजी पत्रकारों का नेटवर्क मजबूत करने पर काम करता है। हम दुनिया भर के पत्रकारों को सैटेलाइट इमेजरी और डिजिटल फोरेंसिक जैसी अत्याधुनिक तकनीकों की जानकारी देते हैं। हम स्थानीय और वंचित समुदायों को निगरानी पत्रकारिता क्षमता निर्माण करने में मदद करते हैं। हमारे हेल्प डेस्क ने पिछले एक साल में सहायता के लिए 2,400 अनुरोधों का जवाब दिया।
हम अपनी पहुंच भी बढ़ा रहे हैं। दुनिया के अधिकांश पत्रकार अंग्रेजी नहीं पढ़ते हैं। इसलिए हम दर्जनों भाषाओं में इनका अनुवाद वितरित करते हैं। हमने मायन, किस्वाहिली और हिंदी जैसी विविध भाषाओं में 500 से अधिक टिपशीट और गाइड का अनुवाद किया है।
मीडिया संगठनों में काम के कठिन वातावरण को देखते हुए हमने सुरक्षा प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण को प्राथमिकता दी है। ‘जीआईजेएन एडवाइजरी सर्विसेज‘ भी शुरू की गई है। इसमे वॉचडॉग मीडिया को विशेषज्ञ सलाह और मूल्यांकन की सुविधा मिलती है। हम अधिकतम भाषाओं का उपयोग करते हुए अपने हेल्प डेस्क और संसाधन केंद्र को मजबूत करना चाहते हैं। हम प्रशिक्षण का विस्तार करके विश्व स्तर पर क्षमता निर्माण को बढ़ाना चाहते हैं। हमारे पास करने के लिए और भी बहुत कुछ है।
यह साक्षात्कार ‘सेविंग जर्नलिज्म-2 – वैश्विक रणनीति और खोजी पत्रकारिता‘ का एक अंश है। आन्या श्रिफ़िन, हन्ना क्लिफोर्ड, थियोडोरा डेम एडजिन-टेटी, रयान ली और मैथ्यू रेसियो-क्रूज की यह रिपोर्ट है। इसे कोनराड एडेनॉयर स्टिफ्टंग ने प्रकाशित किया था। उसमें इसका संक्षिप्त संस्करण प्रकाशित हुआ था। हम यहां पूरा साक्षात्कार प्रकाशित कर रहे हैं।
अतिरिक्त संसाधन
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आन्या श्रिफ़िन कोलंबिया यूनिवर्सिटी के ‘स्कूल ऑफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स‘ में प्रौद्योगिकी, मीडिया और संचार कार्यक्रम की निदेशक हैं। वह वैश्विक मीडिया, नवाचार और मानवाधिकारों पर एक वरिष्ठ व्याख्याता हैं। वह वैश्विक दक्षिण में पत्रकारिता, विकास और खोजी रिपोर्टिंग पर लिखती हैं और पिछले एक दशक में अफ्रीका के मीडिया में व्यापक रूप से प्रकाशित हुई हैं।