संपादकीय टिप्पणी: दुनिया भर में मीडियाकर्मियों तथा अन्य लोगों के खिलाफ निगरानी या जासूसी के मामले बढ़ते जा रहे हैं। निगरानी की अत्याधुनिक तकनीक ने इसे बेहद आसान बना दिया है। वर्ष 2021 में ऐसी निगरानी से जुड़ी पांच प्रमुख जांच रिपोर्ट का विवरण यहां प्रस्तुत है। इसे जीआईजेएन के सदस्य संगठन कोडा स्टोरी ने संकलित किया है। यह एक गैर-लाभकारी मीडिया संगठन है। यह वैश्विक संकट के बुनियादी कारणों के निरंतर और बारीक अध्ययन पर केंद्रित 360 डिग्री स्टोरीज के लिए समर्पित संगठन है। यहां प्रस्तुत पांच खोजी खबरों का महत्व रेखांकित करना भी जरूरी है। गत दिनों अल-सल्वाडोर के मीडिया संगठन एल फारो के 22 पत्रकारों के फोन पेगासस स्पाइवेयर द्वारा 226 बार हैक किये गए। इस हैकिंग पर एल फारो की रिपोर्ट देखें। यह भी देखें कि यह स्टोरी इस वेबसाइट की प्रमुख खोजी खबरों से कैसे मेल खाती है।
निगरानी तकनीक का असर हर जगह देखा जा रहा है। हमारे हवाई अड्डों और सीमा पार गतिविधियों से लेकर पुलिस स्टेशनों और यहां तक कि हमारे स्कूलों में भी इसकी मौजूदगी देखी जा रही है। लेकिन यह निगरानी केवल खोजी पत्रकारों तक सीमित नहीं। आधुनिक निगरानी तकनीक के जरिए दुनिया में विभिन्न समूहों पर नजर रखने के कई तरह के कदम उठाए जा रहे हैं। जैसे, सिंगापुर के टेक्नो-यूटोपिया पर यह रिपोर्ट देखें। इसमें नागरिकों और सामाजिक कार्यकताओं की व्यापक निगरानी का विवरण दिया गया है।
इसी तरह, न्यूयॉर्क के स्कूलों में छात्रों की सुरक्षा के नाम पर ‘’अग्रेसन डिटेक्टर’‘ लगाए जाने की यह रिपोर्ट देखें। इसका मकसद स्टूडेंट्स के गुस्सैल व्यवहार का पता लगाकर किसी हिंसक वारदात को रोकना है। हालांकि इस रिपोर्ट के अनुसार ऐसे डिटेक्टर के नतीजे भरोसेमंद नहीं हैं। वैश्विक पत्रकारों के अनुसार निगरानी की ऐसी नई तकनीकी के कारण दुनिया भर में सत्ता की निरंकुशता का खतरा बढ़ रहा है।
पिछले एक साल की ऐसी पांच प्रमुख जाँच आधारित खोजी खबरों का विवरण उल्लेखनीय है।
1.पेगासस प्रोजेक्ट
The Pegasus Project
पेगासस स्पाइवेयर की व्यापक पहुंच को समझना जरूरी है। इजराइली कंपनी एनएसओ ग्रुप द्वारा बनाया गया यह बेहद प्रभावी टूल है। पेगासस किसी फोन को निगरानी के उपकरण में बदल देता है। यह संदेशों को कॉपी कर सकता है, कॉल रिकॉर्ड कर सकता है और गुप्त रूप से फोन के कैमरे या माइक्रोफोन को चालू कर सकता है। इसे दुनिया भर के काफी पत्रकारों और सामाजिक-राजनीतिक लोगों के फोन में गोपनीय तरीके से इंस्टॉल करके जासूसी के मामले सामने आए हैं।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों ने एक गठबंधन बनाकर पेगासस प्रोजेक्ट का खुलाया किया। पता चला कि पेगासास स्पाइवेयर का दुरुपयोग करके दुनिया भर में काफी पत्रकारों एवं अन्य व्यक्तियों के फोन की हैकिंग करके जासूसी की गई। इनमें अजरबैजान, मैक्सिको और भारत के खोजी पत्रकारों के नाम भी शामिल हैं।
इस मामले के खुलासे अब भी जारी हैं। इसका निशाना बने लोगों में दुनिया के कई दमनकारी देशों के पत्रकार और एक्टिविस्ट शामिल हैं। इनमें बहरीन के नौ एक्टिविस्ट भी हैं। समझा जाता है कि इनके मोबाइल को 2017 में ही पेगासस ने हैक कर लिया था। हंगरी में एक फोटो जर्नलिस्ट की भी जासूसी कराई गई। उसने अपने देश के अमीर और ताकतवर लोगों की विलासितापूर्ण जीवनशैली संबंधी जांच की थी।
पेगासस प्रोजेक्ट के तहत अंतरराष्ट्रीय जांच के महत्वपूर्ण नतीजे लगातार सामने आ रहे हैं। अमेरिका ने एनएसओ ग्रुप को काली सूची में डाल दिया है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की स्वतंत्र जांच का आदेश दिया है। सबसे पहले फ्रांस ने एक स्वतंत्र सरकारी एजेंसी द्वारा जांच कराकर पेगासस प्रोजेक्ट के निष्कर्षों की पुष्टि की है। इसमें बताया गया है कि पेगासस ने फ्रांसीसी पत्रकारों के फोन को निशाना बनाया।
2.लॉस एंजिल्स पुलिस ने अमेजॅन रिंग कैमरा का प्रमोशन किया
Los Angeles Police Department Sells Amazon Ring Cameras
सूचना के अधिकार के तहत पुलिस से किसी निगरानी उपकरण की जानकारी मांगें, तो कई कंपनियों के मार्केटिंग ई-मेल मिल सकते हैं। इनमें तकनीकी कंपनियों द्वारा पुलिस विभाग को अपने उपकरणों के संबंध में भेजी गई जानकारी होती है। लेकिन ‘लॉस एंजिल्स टाइम्स‘ की खोजी रिपोर्टर जोहाना भुइयां ने एक बड़ा खुलासा किया। उन्होंने ‘रिंग‘ कंपनी के साथ लॉस एंजिल्स पुलिस अधिकारियों के आश्चर्यजनक संबंध पर रिपोर्ट की। ‘रिंग‘ कंपनी डोरबेल कैमरा और अन्य घरेलू निगरानी तकनीक बनाती है।
रिपोर्ट के अनुसार ‘रिंग‘ ने पुलिस अधिकारियों को मुफ्त उपकरण या भारी छूट के कूपन दिए। बदले में पुलिस ने इनके उत्पाद को जनता के बीच प्रचारित किया। ई-मेल की छानबीन से पता चला कि रिंग कंपनी ने वेस्ट लॉस एंजिल्स स्थित एक पुलिस स्टेशन द्वारा आयोजित एक पार्टी में शामिल अफसरों को डोरबेल कैमरे निशुल्क दिए। पुलिस से समाज के प्रभावशाली लोगों के बीच प्रोमो कोड और प्रचार सामग्री बांटने का अनुरोध भी किया।
रिंग ने पुलिस की मदद से नागरिकों को ‘नेबर्स ऐप‘ का उपयोग करने के लिए भी प्रोत्साहित किया। हैरानी की बात यह है कि पुलिस ने बिना वारंट प्राप्त किए ऐसे फुटेज तक पहुंच के लिए इस ऐप का दुरुपयोग किया। ‘लॉस एंजिल्स टाइम्स‘ में यह खोजी खबर आने के तुरंत बाद पुलिस विभाग ने एक आंतरिक जांच शुरू कर दी।
प्राइवेसी मामलों के जानकार कैलिफोर्निया के एक अधिवक्ता ने भी बताया कि सैन फ्रांसिस्को में नागरिकों के साथ एक बैठक के दौरान पुलिस ने ‘रिंग‘ के उत्पादों का प्रचार किया। यह जांच इस बात पर आधारित है कि रिंग कंपनी ने किस तरह अपने उत्पाद बेचने के लिए पुलिस का सहयोग लिया।
3.शॉट-स्पॉटर‘ के आधे नतीजे गलत
ShotSpotter Comes Under Fire
शॉट-स्पॉटर एक ऐसा उपकरण है, जो गोली चलने की आवाज और उसके स्थान का पता लगाने का दावा करता है। लेकिन इसका हर नतीजा सही निकले, ऐसा जरूरी नहीं। एसोसिएटेड प्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार इसके गलत नतीजे के कारण विलियम्स नामक एक बेकसूर व्यक्ति को हत्या के आरोप में जेल भेज दिया गया।
एपी ने अगस्त 2021 में यह खबर प्रकाशित की। इस वक्त तक लगभग 200 अदालती मामलों में शॉट-स्पॉटर के नतीजों का इस्तेमाल किया जा चुका था। लेकिन पत्रकारों के अनुसार इसके नतीजे हमेशा सही नहीं होते। शॉट-स्पॉटर का काम गोलियों की आवाज को पकड़ना है। लेकिन कई बार यह असली गोली की आवाज भी नहीं पकड़ पाता। संभव है कि मोटरसाइकिल के शोर, कचरा वैन के इंजन की आवाज या चर्च की घंटी को बंदूक से निकली गोली बता दे। मैसाचुसेट्स में एक पुलिस अधिकारी के अनुसार शॉट-स्पॉटर ने लगभग 50 फीसदी से भी अधिक मामलों में गलत नतीजे बताए।
एल्गोरिथ्म पर आधारित इन नतीजों को किसी बाहरी एजेंसी से जांच के लिए खुला नहीं रखा गया है। यह कंपनी निजी स्वामित्व पर आधारित है। अदालतों में इस तकनीक के आधार पर सुनवाई हो रही है, जबकि अब तक यही मालूम नहीं कि इसके नतीजे कितने सही हैं।
4.क्लियर-व्यू के जरिए चेहरे की पहचान
Clearview AI Goes Global
बजफीड न्यूज ने चेहरे की पहचान करने वाले उपकरण क्लियर-व्यू पर रिपोर्ट की है। यह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) पर आधारित तकनीक है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में इसका उपयोग देखा जा रहा है। फरवरी 2020 तक 24 देशों की 88 कानून प्रवर्तन और सरकारी एजेंसियों ने इस तकनीक का उपयोग किया।
ब्राजील की संघीय पुलिस ने 501 से 1000 बार इसका इस्तेमाल किया। क्वींसलैंड, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन पुलिस ने भी इसका उपयोग किया। कुछ मामलों में कानून प्रवर्तन कर्मचारियों ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को बताए बगैर ही इसका उपयोग कर लिया। जैसे, थंडर बे (कनाडा) में ऐसा मामला सामने आया।
बजफीड की यह खोजी खबर अगस्त 2021 में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद यूके के गोपनीयता आयुक्त ने डेटा सुरक्षा कानून का उल्लंघन करने के लिए क्लियर-व्यू पर 22.6 मिलियन डॉलर का जुर्माना लगाया।
इस विवादास्पद कंपनी के संबंध में पिछले साल बजफीड टीम की यह दूसरी महत्वपूर्ण खबर थी। इससे पहले, अप्रैल में 2021 में बजफीड की एक और रिपोर्ट काफी चर्चित रही। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में 1,800 से अधिक सरकारी एजेंसियों ने क्लियर-व्यू द्वारा चेहरे की पहचान का उपयोग किया। लेकिन इसमें नागरिकों की गोपनीयता की रक्षा संबंधी किसी जवाबदेही का ख्याल नहीं रखा गया। टैक्स-पेयर्स के पैसों से चलने वाली सरकारी एजेंसियों के ऐसे कदमों पर पत्रकारों ने सवाल उठाए।
पत्रकार रयान मैक ने बताया कि अमेरिका में किस मनमाने तरीके से क्लियर-व्यू के उपयोग हो रहा था। उन्होंने कहा- “हमारी खबर प्रकाशित होने से पहले इस पर कोई निगरानी नहीं थी। पुलिस के बड़े अधिकारियों और राजनेताओं को हमने बताया कि उनके अधीनस्थ कर्मचारी इस उपकरण का उपयोग कर रहे हैं। जाहिर है कि इस पर कोई निगरानी नहीं थी।“
5.सीमा निगरानी से प्रवासियों को खतरा
Border Surveillance Endangers Migrants
हम कोडा स्टोरी में अक्सर निगरानी को कवर करते हैं। महत्वपूर्ण विषयों की जांच की यह विस्तृत सूची हमारे सहयोगियों के प्रयासों से ही बनती है। वर्ष 2021 में हमने सीमाओं पर लगातार बढ़ाई जा रही निगरानी की जांच की।
कोडा की वरिष्ठ रिपोर्टर एरिका हेलरस्टीन ने अमेरिका-मैक्सिकोसीमाओं पर जाकर रिपोर्टिंग की। उन्होंने निगरानी तकनीक के लिए उपयोग में लाई जा रही महंगे आधुनिक उपकरणों की जानकारी ली। ऐसी निगरानी के काफी खतरनाक परिणाम सामने आ रहे हैं। ऐसे उपकरणों की सूची लंबी है। सीमा पार करने के दौरान चेहरे की पहचान के उपकरण लगे हैं। रेगिस्तान पार करने वाले लोगों को ड्रोन और ब्लिंप द्वारा ऊपर से देखा जा रहा है। भूमिगत सेंसर के जरिए लोगों के आवागमन का पता लगाया जा रहा है। इन्फ्रा-रेड कैमरा, रडार सेंसर, मोबाइल सर्विलांस टॉवर इत्यादि का भरपूर उपयोग हो रहा है। इसके कारण प्रवासियों को अमेरिका में अन्य बेहद खतरनाक रास्ते अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
सीजर ऑर्टिगोजा ने कहा- “यह तकनीक प्रवासियों को मार रही है। यह उन्हें अपनी मौत तलाशने के लिए मजबूर कर रही है।“ सीजर ऑर्टिगोजा उन प्रवासियों का पता लगाने का प्रयास करते हैं, जो रेगिस्तान से पार करने की कोशिश करते समय गायब हो गए।
अटलांटिक के दूसरे छोर पर भी ऐसा हो रहा है। ‘कोडा स्टोरी‘ के इसोबेल कॉकरेल की यह रिपोर्ट देखें। फ्रांस और यूके की सरकारें नवीनतम तकनीक पर लाखों डॉलर खर्च कर रही हैं। खतरनाक इंग्लिश चैनल को पार करने की कोशिश कर रहे प्रवासियों की जान बचाने के नाम पर ऐसा किया जा रहा है। लेकिन प्रवासियों को कैमरे या ड्रोन का भय नहीं है। वे अब भी ठंडे पानी का सामना करते हुए इस यात्रा में मर रहे हैं।
कोडा स्टोरी में प्रकाशित इस लेख को अनुमति के साथ यहां पुनः प्रकाशित किया गया है।
अतिरिक्त संसाधन
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केटलीन थॉम्पसन कोडा स्टोरी की रिपोर्टर और ऑडियंस लीड हैं। वह कोडा करंट्स पॉडकास्ट की मेजबानी भी करती हैं। पहले वह फॉरेन पॉलिसी पत्रिका में काम करती थीं।