संपादकीय टिप्पणी : हम एक नवंबर से पांच नवंबर 2021 तक बारहवीं ‘ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म कॉन्फ्रेंस की तैयारी में जुटे हैं। केवल ऑनलाइन होने वाला यह हमारा पहला सम्मेलन है। इस अवसर पर हम ‘ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म नेटवर्क‘ और ‘कॉन्फ्रेंस‘ के संबंध में अपने सहयोगियों को एक बार पुनः समुचित जानकारी देना चाहते हैं। बीसवीं सदी के अंत में यह एक सामान्य सुझाव आया था कि दुनिया भर के खोजी पत्रकारों को अपना ज्ञान परस्पर साझा करने के लिए इकट्ठा होना चाहिए। इस विचार ने जीआईजेएन को जन्म दिया। यह अब 82 देशों में 211 सदस्य संगठनों का एक विशाल नेटवर्क बन गया है।
वर्ष 2000 की बात है। निल्स मुलवाड ने डेनमार्क के आरहूस स्थित अपने घर में लगभग सौ पत्रकारों को आमंत्रित किया था। विशेष अतिथि के रूप में ब्रेंट ह्यूस्टन भी मौजूद थे। इस दौरान कंप्यूटर की सहायता से रिपोर्टिंग (सीएआर) के बढ़ते महत्व पर विशेष ध्यान देने की जरूरत महसूस की गई। पत्रकारिता की नई खोजी तकनीकों के बारे में भी बात की गई।
ब्रेंट ह्यूस्टन ने मिसौरी में कंप्यूटर की सहायता से रिपोर्टिंग (सीएआर) बढ़ावा देने का बीड़ा उठा रखा था। वह खोजी पत्रकारों के यूएस-आधारित संगठन – ‘इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टर्स एंड एडीटर्स‘ (आईआरई) का संचालन करते थे। इस संगठन ने ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कंप्यूटर एसीस्टेड रिपोर्टिंग‘ का गठन किया था। यह अंतर्राष्ट्रीय तौर पर आकर्षण का विषय था।
निल्स मुलवाड ने वर्ष 1996 में IRE “boot camp” में भाग लिया था। तभी से उन पर ‘सीएआर‘ की धुन सवार हो गई थी। उन्होंने ‘डेनिश इंटरनेशनल सेंटर फॉर एनालिटिकल रिपोर्टिंग‘ की स्थापना की। वह पूरे यूरोप में सहयोगियों को डेटा पत्रकारिता के बारे में बताने लगे। उनके वार्षिक कार्यक्रम अब आधा दर्जन देशों के पत्रकारों को आकर्षित कर रहे थे। निल्स मुलवाड और ब्रेंट ह्यूस्टन अब भविष्य के बारे में सोचने लगे थे।
‘क्या अगली बार हम दुनिया भर के पत्रकारों को आमंत्रित कर सकते हैं?‘ ब्रेंट ह्यूस्टन ने पूछा।
ऐसे किसी आयोजन के लिए काफी उर्वर जमीन मौजूद थी। वैश्वीकरण से प्रेरित, खोजी रिपोर्टिंग दुनिया भर में फैल रही थी। इंटरनेट, मोबाइल फोन और शीत युद्ध की समाप्ति के कारण इसे बढ़ावा मिला। प्रगतिशील पत्रकारों के बढ़ते वैश्विक समुदाय के लिए उस समय तक कोई वास्तविक केंद्र नहीं था, जहां मिलकर विचारों को साझा कर सकें। लेकिन निल्स मुलवाड और ब्रेंट ह्यूस्टन को यह अंदाजा नहीं था कि आपसी प्रतियोगिता और अकेले चलने वाले पत्रकार भी ऐसा सकारात्मक जवाब देंगे।
वर्ष 2001 के अप्रैल महीने के एक सप्ताहांत में निल्स मुलवाड ने कोपेनहेगन के सबसे प्रसिद्ध होटल को बुक किया। उन्हें डीआइसीएआर, आईआरई तथा डेनिश एसोसिएशन ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स का सहयोग प्राप्त था। ब्रेंट ह्यूस्टन याद करते हैं- ”हमें लगा था कि कुछ ही लोग आएंगे। हमें वास्तव में ऐसी सफलता की उम्मीद नहीं थी। यह सही समय पर सही कदम साबित हुआ।”
कुल मिलाकर, 40 देशों के 300 से अधिक पत्रकार उस कार्यक्रम में आए। उन्हें खोजी पत्रकारिता के तरीकों, उपकरणों और अच्छे सहयोगियों की तलाश थी। कभी-कभी माहौल एक धार्मिक पुनरुत्थान जैसा दिखता था। कड़ी मेहनत से खोजी पत्रकारिता करने वालों ने पाया कि वे दुनिया में अकेले नहीं थे।
ब्रेंट ह्यूस्टन कहते हैं- ”अधिकांश पत्रकार आम तौर पर एक जैसे होते हैं। वे चाहे कहीं से भी हों और कहीं भी काम करते हों। उनके बीच आसानी से तत्काल समझ बन गई। कई लोगों के लिए यह आश्चर्य की बात थी कि पहले ही दिन पत्रकारों ने अपने अनुभवों और ज्ञान को कैसे खुलकर साझा किया। दूसरे दिन तक तो यह बेहद सहज हो गया।”
इस तरह Global Investigative Journalism Conference की शुरुआत हुई। इस बार नवंबर 2021 में बारहवीं बार इसका आयोजन किया जा रहा है। यह हमारा पहला सम्मेलन है जो केवल ऑनलाइन होगा। विगत वर्षों में आयोजित सम्मेलनों ने 140 देशों के 8000 से अधिक पत्रकारों को एक साथ लाया और प्रशिक्षित किया गया है। इस प्रक्रिया में, उन्होंने दुनिया भर में खोजी और डेटा पत्रकारिता के तेजी से प्रसार, कौशल स्तर बढ़ाने, असाधारण सहयोग को बढ़ावा देने और दर्जनों खोजी पत्रकारिता संगठनों को शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
निल्स मुलवाड कहते हैं- ”मैंने कभी नहीं सोचा था कि यह आज के रूप में इतना विकसित होगा। मैंने जो योगदान दिया है, वह मेरे करियर में सबसे महत्वपूर्ण चीज है। हम उस समय इसे नहीं जानते थे, लेकिन बस यह होता गया।”
उस पहले सम्मेलन के दो साल बाद फिर कोपेनहेगन में ही दूसरा सम्मेलन आयोजित किया गया। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 के हमले और वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों ने सम्मेलन में भागीदारी पर बाधा डाल दी। इसके कारण पत्रकारों के लिए यात्रा करना मुश्किल हो गया। इसके बावजूद सम्मेलन में लगभग 300 पत्रकार आए, और उत्साह बना रहा। निल्स मुलवाड और ब्रेंट ह्यूस्टन आश्वस्त थे कि पत्रकारों में अपना कौशल साझा करने, प्रशिक्षण की भूख और सहयोग की भावना कोई आकस्मिक चीज नहीं है। निल्स ह्यूस्टन कहते हैं- ”सम्मेलनों के दौरान हर कोई नियमित संपर्क में रहना चाहता था। हम भी यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि हमारे पास एक सतत नेटवर्क बने।”
लिहाजा, एक सैद्धांतिक बयान का मसौदा तैयार किया और एक अनौपचारिक संगठन बनाने के लिए सम्मेलन में एक बैठक बुलाई। यह सैद्धांतिक वक्तव्य बहुत सरल और स्पष्ट था- ”हम स्वतंत्र पत्रकारिता संगठनों का एक नेटवर्क बनाएंगे जो खोजी और कंप्यूटर-समर्थित रिपोर्टिंग में पत्रकारों के बीच सूचना के प्रशिक्षण और साझा करने का समर्थन करता हो।”
इस समूह के लक्ष्य इस प्रकार रखे गए – ”सम्मेलन और कार्यशालाओं का आयोजन करना, खोजी और डेटा पत्रकारिता संगठनों को बनाने और बनाए रखने में मदद करना, सर्वोत्तम प्रथाओं का समर्थन करना और बढ़ावा देना, सार्वजनिक दस्तावेजों और डेटा तक पहुंच सुनिश्चित करने में मदद करना, दुनिया भर में खोजी पत्रकारों के लिए संसाधन और नेटवर्किंग सेवाएं प्रदान करना।”
इसकी सदस्यता दुनिया भर के गैर-लाभकारी संगठनों तक सीमित रखी गई। कारण यह कि वाणिज्यिक मीडिया ने निश्चित रूप से खोजी रिपोर्टिंग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन गैर-लाभकारी संस्थाओं ने प्रशिक्षण, शिक्षण, सलाह और कौशल-साझाकरण के क्षेत्र में बहुत कुछ किया है और इसे दुनिया भर में फैलाया है।
कुल मिलाकर, 22 देशों के 35 संगठनों ने स्थापना दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। इनमें दो-तिहाई से अधिक संगठन यूरोप से थे। इस सूची में दुनिया भर में खोजी पत्रकारिता का नेतृत्व करने वाले समूह शामिल थे। इनमें ब्राजील, जर्मनी, नीदरलैंड, स्कैंडिनेविया, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त राज्य अमेरिका, घाना, फिलीपींस, नेपाल और रोमानिया की भागीदारी थी। इनमें कुछ मीडिया स्कूल और प्रशिक्षण संस्थान, मीडिया विकास एनजीओ और आईसीआईजे नामक एक अल्पज्ञात संगठन भी था। आइआरई ने कुछ तकनीकी योगदान दिया लेकिन कोई फंडिंग नहीं थी और कोई केंद्रीय संगठन नहीं था।
इस तरह ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म नेटवर्क (जीआईजेएन) का गठन हुआ। जीआईजेएन ने विभिन्न संस्थाओं की मदद से वैश्विक सम्मेलनों का आयोजन किया। वर्ष 2005 में एम्स्टर्डम में आयोजित सम्मेलन ने फिर से दुनिया भर के सैकड़ों पत्रकारों को आकर्षित किया। इसे डच-फ्लेमिश एसोसिएशन ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स की संस्था वीवीओजे ने प्रायोजित किया। इसके बाद वर्ष 2007 में कैनेडियन एसोसिएशन ऑफ जर्नलिस्ट्स की मदद से टोरंटो में सम्मेलन का सफल आयोजन हुआ। वर्ष 2008 में नॉर्वे के इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन की मदद से लिलेहैमर में सम्मेलन आयोजित किया गया। फिर वर्ष 2010 में जिनेवा में स्विस इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टर्स नेटवर्क की मदद से सम्मेलन हुआ।
जिनेवा में छठे सम्मेलन तक हमारे आयोजनों के आकार और गुणवत्ता में काफी विस्तार हो चुका था। इसमें 80 देशों के 500 से अधिक पत्रकार शामिल हुए, जिनमें से कई पत्रकार तो तीसरी या चौथी बार आए थे। ह्यूस्टन और मुलवाड जिस तरह दुनिया भर के खोजी पत्रकारों के एक समुदाय की परिकल्पना कर रहे थे, वह अब सचमुच दुनिया भर में फैल चुका था। वाणिज्यिक मीडिया को विज्ञापनों की कमी और मंदी के दोहरे संकट का सामना करना पड़ रहा था। लेकिन गैर-लाभकारी संस्थाओं ने जीआईजेएन की रीढ़ का गठन किया, जो दुनिया भर में अनुकरणीय मॉडल बन गया। वर्ष 2007 में सेंटर फॉर इंटरनेशनल मीडिया असिस्टेंस के एक सर्वेक्षण ने 26 देशों में 39 गैर-लाभकारी खोजी पत्रकारिता केंद्रों की पहचान की और यह संख्या अगले पांच वर्षों में दोगुनी हो गई।
वर्ष 2010 में ह्यूस्टन और मुलवाड ने जीआइजेएन के एक अनौपचारिक बोर्ड की स्थापना की। इसका मकसद सम्मेलन के आयोजन हेतु धन संग्रह और बड़े पत्रकारों का जोड़ना था। जैसे-जैसे खोजी खबरें दुनिया भर में देशों की सीमाओं के पार जा रही थीं, पत्रकार जानना चाहते थे कि अन्य महाद्वीपों के सहयोगियों तक कैसे पहुंचा जाए। कई संपादक भी जानना चाहते थे कि अपनी गैर-लाभकारी संस्थाओं को कैसे स्थापित किया जाए। अन्य लोग कार्यशालाओं और नवीनतम युक्तियों और तकनीकों को चाहते थे। डेटा पत्रकारिता का भी महत्व काफी बढ़ गया था। ग्लोबल कॉन्फ्रेंस के प्रशिक्षकों ने अब उच्च मांग के आधार पर कंप्यूटर-साक्षर पत्रकारों की एक पीढ़ी तैयार कर दी थी।
वैश्विक सम्मेलनों के दिग्गजों के लिए यह स्पष्ट था कि अधिक संरचना बनाने से वैश्विक सम्मेलनों और वैश्विक नेटवर्क, दोनों को लाभ होगा। वर्ष 2011 में, ह्यूस्टन, मुलवाड तथा अन्य लोगों की सहमति से मैंने जीआईजेएन में आने वाले कई अनुरोधों का प्रबंधन करने, वैश्विक सम्मेलनों का समर्थन करने और दुनिया भर में खोजी पत्रकारिता को मजबूत करने के जीआईजेएन के मुख्य मिशन को आगे बढ़ाने के लिए एक सचिवालय के गठन का प्रस्ताव रखा।
अक्टूबर 2011 में कीव (यूक्रेन) में सातवें वैश्विक सम्मेलन में जीआईजेएन प्रतिनिधियों ने जोरदार बहस की। इसके बाद एक अस्थायी सचिवालय की स्थापना को मंजूरी मिल गई। इसे फरवरी 2012 में प्रारंभ किया गया।
मुझे इस नई पहल का निदेशक बनने का सौभाग्य मिला। एडेसियम और ओपेन सोसाइटी फाउंडेशन की मदद से 35,000 अमेरिकी डॉलर की सीड फंडिंग के साथ हमने पहला वर्ष जीआइजेएन सचिवालय की नींव रखने में लगाया। इस दौरान व्यापक संसाधनों के साथ एक वेबसाइट बनाना, एक वैश्विक कैलेंडर, दुनिया भर में खोजी पत्रकारिता पर समाचार, कई नेटवर्किंग और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म स्थापित करना, बड़े पैमाने पर विस्तार करके जीआईजेएन को सही मायने में वैश्विक नेटवर्क बनाने जैसे काम किए गए।
वर्ष 2013 में रियो डी जनेरियो में जीआइजेएन का अगला वैश्विक सम्मेलन हुआ। इसमें हमारे प्रयासों को काफी बढ़ावा मिला। हमारे सचिवालय ने विकासशील देशों में पहला वैश्विक सम्मेलन आयोजित करने के लिए ब्राजील के गतिशील खोजी पत्रकारिता संघ, अबराजी के साथ भागीदारी की। हमने अपने सम्मेलन को अबराजी की वार्षिक कांग्रेस और कॉलपिन, लैटिन अमेरिकी खोजी पत्रकारिता सम्मेलन दोनों के साथ जोड़ा। इसके प्रभाव ने हम सबको चौंका दिया। रियो सम्मेलन में 93 देशों के 1350 पत्रकारों ने भागीदारी की।
रियो सम्मेलन में जीआईजेएन के सदस्यों ने हमारे प्रयासों को जोरदार समर्थन दिया। सचिवालय को स्थायी बनाने का निर्णय लिया गया। सचिवालय को एक ही स्थान पर रखने की व्यापक सहमति बनी। सचिवालय का एक देश से दूसरे देश में बदलते रहने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया। मुझे तीन साल के लिए जीआईजेएन का प्रथम कार्यकारी निदेशक बनाया गया।
मई 2014 के सम्मेलन में जीआईजेएन के भविष्य पर काफी सार्थक चर्चा हुई। इसके बाद सदस्यों ने जीआईजेएन को अधिक संरचनात्मक और औपचारिक कानूनी दर्जा देने के उपाय सुझाए। इस वक्त तके जीआईजेएन में 44 देशों के 98 सदस्य संगठन जुड़ चुके थे। एक ऑनलाइन चुनाव में सदस्यों ने वैश्विक नेटवर्क को संयुक्त राज्य अमेरिका में एक पंजीकृत गैर-लाभकारी संस्था (a registered nonprofit in the United States ) बनाने के लिए 90 फीसदी से अधिक के अंतर से मतदान किया। साथ ही, विश्व के छह क्षेत्रों से भौगोलिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने वाला एक निर्वाचित निदेशक मंडल बनाने पर भी सहमति दी। इसके बाद जीआईजेएन का पहला निर्वाचित निदेशक मंडल बनाने के लिए मतदान हुआ। इसके जरिए नेटवर्क के लिए 10 देशों के 15 पत्रकारों का एक औपचारिक शासी निकाय बनाया गया।
फिलहाल जीआईजेएन के कर्मचारी 23 देशों में मौजूद हैं। इसके संसाधनों का 12 भाषाओं में प्रकाशन होता है। सोशल मीडिया के 20 प्लेटफार्मों पर साढ़े तीन लाख से अधिक फालोअर्स हैं। हमारी एक जीवंत वेबसाइट है, जो 140 देशों में देखी जाती है। हमारी सदस्यता 82 देशों में 211 गैर-लाभकारी संस्थाओं तक पहुंच गई है।
सचिवालय की स्थापना से अब तक हमने दुनिया भर से सहायता के लिए लगभग 12,000 अनुरोधों का जवाब दिया है। हमने काफी उपयोगी संसाधन केंद्र भी स्थापित किया है। इसमें एक हजार से अधिक टिपशीट, वीडियो और ट्यूटोरियल और सौ से अधिक रिपोर्टिंग गाइड हैं। संगठित अपराध और तथ्य-जांच खोजी खबरों पर दो नए गाइड इस सप्ताह जारी किए जा रहे हैं।
वर्ष 2014 में हमने एशिया का पहला खोजी पत्रकारिता सम्मेलन मनीला में आयोजित किया। काठमांडू और सियोल में आइजे-एशिया सम्मेलन भी काफी सफल रहा। वर्ष 2015 में नॉर्वे के एसकेयूपी में जीआईजेसी-15 आयोजित हुआ। इसमें लगभग 1000 पत्रकार शामिल हुए। दो साल बाद जोहान्सबर्ग में हमने विट्स जर्नलिज्म के साथ काम करते हुए जीआईजेसी-17 का आयोजन किया। अफ्रीका में हमारे इस पहले वैश्विक सम्मेलन में 1200 पत्रकार शामिल हुए।
वर्ष 2019 में कोरोना महामारी का संकट आने के ठीक पहले, अक्टूबर 2019 में हैम्बर्ग में अपने जर्मन सहयोगियों के साथ हमने जीआइजेसी-19 का सफल आयोजन किया। हम जानते थे कि खोजी पत्रकारिता में वैश्विक रुचि बढ़ रही है, लेकिन पत्रकारों की व्यापक भागीदारी ने हमें भी चौंका दिया। वर्ष 2019 के हमारे सम्मेलन में रिकॉर्ड संख्या में भागीदारी हुई। कुल 131 देशों के 1750 लोग इसमें शामिल हुए। यहां तक कि इतने अधिक लोगों ने सम्मेलन में भाग लेना चाहा जो हमारी सुविधाओं की क्षमता से अधिक बड़ी संख्या थी। इसके कारण हम प्रतीक्षा सूची में मौजूद 400 लोगों को शामिल नहीं कर सके।
अब भविष्य की हमारी क्या योजना है? हम दुनिया भर के उद्यमी पत्रकारों को संसाधनों, क्षमता और एक-दूसरे के साथ जोड़कर नेटवर्क बनाने और फैलाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। हम दुनिया भर में खोजी पत्रकारिता समूहों को मजबूत करने के लिए काम कर रहे हैं। जीआईजेएन द्वारा प्रदान किए जाने वाले संसाधनों का विस्तार करना, मदद के अनुरोधों का जवाब देने की हमारी क्षमता में वृद्धि करना, व्यावसायिक कौशल, धन उगाहने और राजस्व की विविधता में खोजी समूहों को प्रशिक्षित करना हमारी प्राथमिकता है।
मानवाधिकार, लोकतंत्र और एक स्वतंत्र प्रेस के खिलाफ बढ़ती वैश्विक प्रतिक्रिया के बीच हमारा काम काफी महत्वपूर्ण है। जिन देशों में हमारे सहयोगी अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं, वहां भी मीडिया पर गंभीर हमले हो रहे हैं। लेकिन एक खोजी प्रेस दुनिया भर में फैल गया है। सामाजिक जवाबदेही और प्रगति में विश्वास रखने वाले लोग मानते हैं कि विकास के लिए वॉचडॉग पत्रकारिता उतनी ही आवश्यक है जितनी जरूरत अच्छी स्वास्थ्य सेवा, ईमानदार पुलिस और व्यापार के समान अवसर की है। आज हमारे पास दुनिया भर में पहले से कहीं अधिक बेहतर टूल के साथ कड़ी मेहनत से पत्रकारिता करने वाले काफी पत्रकार हैं।
नवंबर 2021 के पहले सप्ताह में होने वाले हमारे 12वें वैश्विक सम्मेलन के लिए भी काफी उत्साहजनक संकेत मिल रहे हैं। हमें रिकॉर्ड 140 देशों के 1600 से अधिक लोगों की भागीदारी की उम्मीद है। ऑस्ट्रेलिया के जूडिथ नीलसन इंस्टीट्यूट फॉर जर्नलिज्म तथा आइडियाज इस सम्मेलन के सह-आयोजक हैं। इनके साथ ही एक दर्जन बड़े और छोटे दानदाताओं और दो दर्जन जीआईजेएन सदस्य संगठनों को भी धन्यवाद, जिन्होंने सह-प्रायोजक के रूप में सहयोग दिया है।
इस सम्मेलन में आपकी भागीदारी से हमारे विश्वास को नई मजबूती मिलेगी। भ्रष्टाचार, सत्ता के दुरुपयोग और जवाबदेही की कमी को हमारे सहयोगी लगातार उजागर कर रहे हैं। इस तरह खोजी पत्रकारिता का प्रभाव हमें प्रतिदिन देखने को मिल रहा है। इसके लिए, हम उन दो पायनियरों के आभारी हैं, जिन्होंने ऐसे वैश्विक नेटवर्क की परिकल्पना की थी।
यह स्टोरी वर्ष 2015 में लिलेहैमर, नॉर्वे में आयोजित नौवें वैश्विक खोजी पत्रकारिता सम्मेलन की पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। हमने उसे अपडेट किया है। पहली बार यह स्टोरी प्रकाशित करने के लिए नॉर्वेजियन एसोसिएशन ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स, एसकेयूपी में हमारे भागीदारों को धन्यवाद।
डेविड ई. कपलान जीआइजेएन के कार्यकारी निदेशक हैं। इससे पहले उन्होंने इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स के निदेशक और यूएस न्यूज एंड वर्ल्ड रिपोर्ट में मुख्य खोजी संवाददाता के रूप में कार्य किया। उन्होंने दो दर्जन देशों से रिपोर्टिंग की है और 25 से अधिक पुरस्कार जीते या साझा किए हैं।