स्वास्थ्य और ओषधि पर इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग के लिए GIJN की गाइड

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कोविड- 19 के दौर में स्वास्थ्य और चिकित्सा पर इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग बेहद अहम हो गई है। GIJN की एक विस्तृत गाइड पत्रकारों के लिए इस विधा में मददगार है। पत्रकार किस तरह स्वास्थ्य और चिकित्सा पर रिपोर्टिंग और विश्लेषण करें, इस संबंध में बहुत सी जानकारियां इस गाइड में मौजूद हैं। यह गाइड दवाओं और चिकित्सा उपकरणों पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य पत्रकारों में स्वतंत्र रूप से सबूतों का आकलन करने और किसी भी उत्पाद या नीति के जोखिम-लाभ अनुपात के सटीक मूल्यांकन की समझ विकसित करना है। जिससे वे किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार या कदाचार को उजागर कर सकें। अपने दैनिक कार्यों के बीच अपनी सुविधा के अनुसार इस गाइड का अध्धयन किया जा सकता है।

ख़बरों के पीछे की खबर समय तो लेती है लेकिन यह आपको अन्य पत्रकारों से अलग भी साबित करती है। जैसा कि हम चैप्टर- 2 में चर्चा करेंगे कि कैसे खोजी रिपोर्टिंग के तरीकों और मानकों का ईबीएम यानी एविडेंस-बेस्ड मेडिसिन (ईबीएम, साक्ष्य आधारित चिकित्सा) के साथ संयोजन बहुत प्रभावी हो सकता है। ईबीएम वर्तमान में रोगियों की व्यक्तिगत देखभाल को लेकर सर्वोत्तम मौजूद साक्ष्यों द्वारा ईमानदार, स्पष्ट और विवेकपूर्ण निर्णय लेने में सबसे बेहतर है। यही वजह है कि ईबीएम के तरीकों को सार्वजनिक स्वास्थ्य के व्यापक दृष्टिकोण पर सर्वोत्तम परिणाम देने के लिए लगातार संशोधित किया जाता है।

दुनिया भर के छात्रों का एक नेटवर्क Students 4 Best Evidenceजो साक्ष्य-आधारित स्वास्थ्य देखभाल के बारे में जानने में रुचि रखते हैं, उन्होंने ईबीएम के बारे में कहा है कि, यह प्रश्न पूछने और उन प्रश्नों का उत्तर मिलने का सर्वोत्तम स्थान है। यहां पर प्रमाणिक शोध के जरिए सभी सवालों के जवाब मिल जाते हैं। ईबीएम एक दृष्टिकोण है जो खोजी पत्रकारिता के मानकों से मेल खाता है।

अपनी पुस्तक “द राइज एंड फॉल ऑफ मॉडर्न मेडिसिन” में जेम्स ले फानू ने उन 12 नवाचारों को लिखा है जो चिकित्सा क्षेत्र में निर्णायक साबित हुए हैं। इनमें पेनिसिलिन (एक प्रकार की दवा) की खोज, कोर्टिसोन, स्ट्रेप्टोमाइसिन (एक एंटीबायोटिक), क्लोरप्रोमजीन (एक एंटीसाइकोटिक दवा), गहन देखभाल, ओपन-हार्ट सर्जरी, हिप रिप्लेसमेंट, किडनी प्रत्यारोपण, उच्च रक्तचाप का नियंत्रण ( स्ट्रोक की रोकथाम), बचपन के कैंसर का उपचार, “टेस्ट-ट्यूब” शिशुओं और हेलिकोबैक्टर का क्लीनिकल महत्व ( एक प्रकार का बैक्टीरिया) शामिल हैं। ये हमारे आधुनिक समय की सबसे उल्लेखनीय चिकित्स्कीय सफलताएं हैं।

कैंसर विशेषज्ञ विनय प्रसाद ने अपने पॉडकास्ट ”Plenary Session” में इसके बारे में लिखा है कि हमारे कुछ प्रयास, हमारी कुछ सर्जरी, हमारी कुछ दवाएं, हमारी कुछ प्रक्रियाएं निस्नदेह रूप से लाभकारी हैं। यह सही समय पर ली गई सही दवा की तरह हैं लेकिन हर महामारी के साथ कई तरह के मिथक भी सामने आते हैं, लेकिन मिथकों के साथ दवा भी जरूरी है और मिथकों को दूर करना भी महत्वपूर्ण है। क्योंकि, जॉन पी ए इयोनिडिस ने भी इसी पॉडकास्ट में लगभग इन्ही बातों का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा कि, नई खोज की प्रक्रिया की रफ्तार हमेशा बहुत धीमी होती है, लेकिन निराली भी होती है। इसलिए कहते हैं कि विज्ञान कठिन है और समाज का चिकित्साकरण मानवता के लिए एक बड़ा खतरा भी है।

निश्चित रूप से स्वास्थ्य सेवा और चिकित्सा हम सभी की जिंदगी को प्रभावित करते हैं। लेकिन किसी भी महामारी के दौरान उस समय लोगों के बीच जो धारणा बनती है और वे जो बातचीत करते हैं वह वास्तव में विरोधाभासी होती है। यही वजह है कि एक तरफ चिकित्सा-विज्ञान अपनी उपलब्धियों का जश्न मनाता है और इसका प्रचार भी करता है। दूसरी ओर, स्वास्थ्य सेवा और चिकित्सा क्षेत्र में कई तरह की समस्याएं भी सामने आती है, जो स्पष्ट रूप से नजर नहीं आती हैं। इसलिए इन महत्वपूर्ण मुद्दों का जानकार बनना स्वास्थ्य सेवा और चिकित्सा के क्षेत्र में खोजी पत्रकार बनने की दिशा में पहला कदम है।

दवा उद्योग का प्रभाव व्यापक है और इसका मार्केट आसमान छू रहा है। दुनिया की लगभग आधी आबादी के पास अब भी एंटीबायोटिक्स और वैक्सीन जैसी आवश्यक दवाओं के लिए बेहद सीमित संसाधन हैं, जिनका वितरण दवा उद्योग पर निर्भर करता है। हालांकि, नकली दवाओं और दवाइयों में काला-बाज़ार का व्यापार किसी से छुपा नहीं है, यह सर्वव्यापी है। अमीर देशों में, अति-निदान, अति-आविष्कार और अति-उपचार नागरिकों को अनावश्यक रूप से रोगी बना रहा है। राज्यों में संदिग्ध प्रभाव वाली महंगी नई दवाओं की लागत को कम करके भी लिखा जाता है जिसके दबाव में स्वास्थ्य बजट बिगड़ जाता हैं। ऐसे में सच्ची सफलता अत्यंत दुर्लभ होती है।

फ्रांसीसी स्वतंत्र ड्रग बुलेटिन प्रिस्क्राइन्स  The Golden Pill , चिकित्सीय प्रगति में काफी चर्चित नाम है, लेकिन यह भी ज्यादा लंबे समय तक के लिए दवाओं की गारंटी नहीं देते हैं। चर्चित और पुरस्कृत दवाओं की सूची में कई ऐसी नई ऑन्कोलॉजिकल दवाएं हैं, जो भले ही आज भी नियमित रूप से कैंसर अनुसंधान और पत्रकारिता में महाशक्तियों के उपयोग से जुड़ी हैं, लेकिन वास्तव में वे लुप्त हो चुकी हैं। ब्लूमबर्ग के रिपोर्टर पीटर कॉय ने अपनी रिपोर्ट  Too Many Medicines Simply Don’t Work में भी इसके बारे में लिखा है। विनायक के प्रसाद, एडम एस में लिखते हैं कि, कभी-कभी दशकों से उपयोग की जाने वाली दवाएं भी मार्केट से गायब जाती हैं, जो रोगियों को कोई लाभ नहीं पहुंचाती हैं। इसे मेडिकल रिवर्सल (एंडिंग मेडिकल रिवर्सल) भी कहते हैं।

दवा उद्योग की विपणन रणनीतियां भी अत्यधिक परिष्कृत हैं। वह अपनी दवाओं को बेचने के लिए डॉक्टरों को कई तरह के प्रलोभन देते हैं, जैसे फ्री में यात्रा कराना, अन्य वित्तीय सहायता  प्रदान करना आदि। यद्यपि यह अतीत की तुलना में छोटे पैमाने पर अभी भी जारी है, इसके अलावा नई रणनीतियां विकसित की गई हैं, ताकि प्रिस्क्राइबर और सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को प्रभावित किया जा सके।

कई बड़ी फार्मा कंपनियां जानती हैं कि मरीजों की वकालत करने वाले संगठनों को उदारता से फंडिंग करना भी बड़ा फायदेमंद होता है। फार्मा कंपनियां अपनी नई दवा को बाजार में बेचने के लिए कई तरह के लाभ डॉक्टरों और सरकार को देने से भी नहीं कतरातीं, ताकि महंगी दवा बड़ी मात्रा में आसानी से बिक सके, जिसका उपयोग भले ही मरीज के लिए बहुत जरूरी न हो। ऐसे में मीडिया सामाजिक दायित्व निभाते हुए पीड़ितों की कहानियों को सामने ला सकता है और कंपनियों की ऐसी मिलीभगत को उजागर कर सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पत्रकार “पीड़ितों” और “रोगियों” को अच्छे लोगों के रूप में देखते हैं।

ऐसे में अगर इस क्षेत्र में तह तक जाकर खोजी पत्रकारिकता करना है तो आपको हमेशा सचेत रहना होगा और हमेशा एक बड़ी तस्वीर की जांच करने की आवश्यकता होगी। वैश्विक स्वास्थ्य बाजार में स्वास्थ्य प्राधिकरण, दवा निर्माता और चिकित्सा उपकरण कंपनियां, बीमाकर्ता, शैक्षणिक संस्थान और गैर सरकारी संगठन मीडिया के काम को प्रभावित करने की पूरी कोशिश भी करते हैं। कई बार दवा उद्योग से जुड़ी मार्केटिंग कुछ इस तरह की जाती है कि वह सिर्फ मीडिया के माध्यम से जनता तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश करते हैं। ऐसे कार्यों का सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों पर काफी प्रभाव पड़ सकता है, कभी-कभी निहित स्वार्थों को आगे बढ़ाना व्यक्तियों और समाज के लिए नकारात्मक परिणाम लेकर आता हैं।

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