सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के साथ ही गलत सूचनाओं और फर्जी सामग्री की भी बाढ़ आ गई है। फोटोशाॅप की हुई तस्वीरों और फर्जी वीडियो के द्वारा अफवाह फैलाई जाती है। शोधकर्ताओं और पत्रकारों को इनकी असलियत का पता लगाना जरूरी होता है। यूट्यूब, ट्विटर, फेसबुक जैसे सोशल नेटवर्क और फाइल शेयर करने के विभिन्न प्लेटफॉर्म द्वारा भेजे गए वीडियो की सामग्री का सत्यापन करना एक बड़ी चुनौती है।
यह आलेख वीडियो की जांच पर केंद्रित है। हालांकि ऐसा कोई आसान फार्मूला नहीं है, जिसके सहारे आप हर वीडियो को सत्यापित कर लें। किसी वीडियो की मूल फाइल नहीं मिलने पर उसे सत्यापित करना लगभग असंभव हो सकता है।
(वीडियो सत्यापित करने के लिए अन्य महत्वपूर्ण लेख जीआईजेएन की वेबसाइट पर Fact-Checking and Verification resource page पर उपलब्ध हैं।)
इसके बावजूद कई ऐसे तरीके हैं, जो आपको किसी वीडियो की सामग्री के सत्यापन में मदद कर सकते हैं। किसी वीडियो को अगर ब्रेकिंग न्यूज के रूप में शेयर किया गया हो, तो आप यह पता लगा सकते हैं कि यह किसी पिछली घटना का पुराना वीडियो है, अथवा वाकई ताजा घटना है। वीडियो को सत्यापित करने के लिए पहले से कई गाइड उपलब्ध हैं। खासकर ‘वेरिफिकेशन हैंडबुक‘ काफी उपयोगी है।
इस आलेख में ‘बेलिंगकैट टीम‘ द्वारा उपयोग की जाने वाली कुछ खास तकनीकों की जानकारी दी जा रही है। इसमें उपलब्ध साधनों की सीमाओं के बावजूद जांच के तरीके भी शामिल हैं। विशेष जानकारी के लिए बेलिंगकैट की ‘रिवर्स इमेज सर्च गाइड (2019)‘ देखें। इसे पढ़कर इस उपकरण सेट के उपयोग की जानकारी मिलेगी तथा आप रचनात्मक तरीकों से काम करते हुए जांच के सही रास्तों की तलाश कर सकेंगे।
उपयोगी है रिवर्स इमेज सर्च
किसी फोटो की असलियत जानने के लिए ‘रिवर्स इमेज सर्च‘ का उपयोग किया जाता है। किसी वीडियो सामग्री के सत्यापन का पहला कदम भी ऐसा ही है। गूगल या टिनआई (TinEye) के माध्यम से रिवर्स इमेज सर्च करें। फिलहाल ऐसा कोई उपकरण उपलब्ध नहीं है, जो इमेज सर्च की तरह किसी संपूर्ण वीडियो क्लिप के सर्च की सुविधा देता हो।
लेकिन हम रिवर्स इमेज सर्चिंग ‘थंबनेल‘ और ‘स्क्रीनशॉट‘ के जरिए सर्च कर सकते हैं। नकली वीडियो बनाने वाले अधिकांश लोग ज्यादा रचनात्मक नहीं होते। वे सबसे आसानी से मिलने वाले वीडियो को ताजा बताकर शेयर कर देते हैं। कई बार ऐसे वीडियो उसके साथ बताई गई झूठी कहानी के साथ फिट नहीं बैठते हैं। जैसे, कि समाचार या किसी व्यक्ति के साथ ऑडियो ट्रैक में वह नई घटना फिट नहीं दिखेगी। इसके कारण ऐसे फर्जी वीडियो की जांच करना संभव हो सकता है।
इस खोज के दो तरीके हैं। सबसे पहले आप मैन्युअल तरीके से उस वीडियो के कुछ स्क्रीनशॉट ले लीजिए। बेहतर होगा कि वीडियो की शुरुआत वाला तथा महत्वपूर्ण हिस्से का स्क्रीनशॉट हो। फिर उन्हें गूगल रिवर्स इमेज सर्च पर अपलोड करें।
यूट्यूब जैसे किसी भी वीडियो होस्ट पर लोग अपने वीडियो अपलोड करते हैं। ऐसे हर वीडियो का एक ‘थंबनेल‘ बन जाता है। हर वीडियो खुद ही अपने किसी फ्रेम की इमेज से थंबनेल बना लेता है। इसलिए यह पता लगाने का कोई तरीका नहीं है कि एक वीडियो की किस फ्रेम की इमेज से ‘थंबनेल‘ बनेगा।
यूट्यूब में अपलोड किए गए किसी वीडियो के लिए थंबनेल बनाने के लिए गूगल का एक खास सिस्टम है। इसे स्वचालित प्रक्रिया को ‘एल्गोरिदम‘ कहा जाता है। इस बारे में अधिक जानकारी ‘गूगल रिसर्च ब्लॉग‘ में मिल जाएगी।
‘एमनेस्टी इंटरनेशनल का यूट्यूब डेटा व्यूअर‘ – यह ऐसे थंबनेल को खोजने का सबसे अच्छा उपकरण है। इसका उपयोग करके आप यूट्यूब पर अपलोड किसी वीडियो के थंबनेल उत्पन्न कर सकते हैं। इसके आधार पर रिवर्स इमेज सर्च हो सकती है।
इसका एक उदाहरण देखें। ‘एक्शन ट्यूब‘ नामक एक यूट्यूब समूह ने एक वीडियो पोस्ट किया। इसमें लिथुआनिया में सैन्य उपकरणों का काफिला जाते हुए दिखाया गया था। लेकिन इस सूचना का कोई स्रोत नहीं बताया गया। यह भी स्पष्ट नहीं था कि यह वीडियो कब बनाया गया। यानी यह ताजा या फिर पांच साल पुराना भी हो सकता था।https://www.youtube.com/watch?v=zX7gu_gS3zE
‘एमनेस्टी इंटरनेशनल टूल पर‘ ऐसे वीडियो को सर्च करने से उस वीडियो को अपलोड करने की तारीख के साथ ही चार थंबनेल भी मिल गए। इनके जरिए रिवर्स इमेज सर्च करके वीडियो के मूल स्रोत को खोजना आसान हो गया।
लेकिन कोई भी परिणाम हमें मूल स्रोत का प्रत्यक्ष संकेत नहीं दे रहा था। हालाँकि, तीसरे थंबनेल के कई परिणाम से कई वीडियो को अपलोड करने के एक ही समय का अंदाज लग रहा था। ऐसे वीडियो पर क्लिक करने पर आपको वह थंबनेल नहीं मिल पाता है, क्योंकि यूट्यूब पृष्ठ के दाईं ओर ‘अप नेक्स्ट‘ वीडियो के परिणाम दिखाए जाते हैं। हालांकि, उस थंबनेल वाला वीडियो उस समय मौजूद था जब गूगल ने परिणाम सहेजे थे। इसका अर्थ है कि आप इस वीडियो को कैश पेज पर खोज सकते हैं।
अब तक इन पांच परिणामों में से किसी से भी उस वीडियो का स्रोत नहीं मिल पाया था। लेकिन जब गूगल ने उस पेज का स्नैपशॉट लिया था, उस वक्त स्रोत का थंबनेल वीडियो इन वीडियो के पृष्ठों पर मौजूद था। जब हमने प्रारंभ में ऊपर दिए गए पहले परिणाम के लिए कैचेज पेज देखे, तो हमें एक्शन ट्यूब द्वारा पोस्ट किए गए वीडियो के लिए स्रोत मिल गए। इसका शीर्षक था- ‘एन्हांस्ड फॉरवर्ड प्रेजेंस बैटल ग्रुप पोलैंड कंडक्ट्स ए रोड मार्च टू रुक्ला, लिथुआनिया।‘
अब हमारे पास मूल वीडियो को सत्यापित करने के लिए पर्याप्त जानकारी थी। हमें यह पता लगाना था कि एक्शन ट्यूब में अपलोड वीडियो वास्तव में लिथुआनिया में सैन्य उपकरणों की तैनाती का है अथवा नहीं। जब हमने थंबनेल के खोज परिणाम में पाए गए वीडियो के शीर्षक के आधार पर सर्च की, तो हमें अपलोड की गई छह सामग्री मिली। हमने उन्हें तिथि के अनुसार क्रमबद्ध करके सबसे पुराना अपलोड निकाल लिया। उसी सबसे पुराने अपलोड ने एक्शन ट्यूब के लिए स्रोत सामग्री के रूप में काम किया था।
इस आधार पर हमें 18 जून, 2017 को – ‘मेजर एंथोनी क्लैस‘ द्वारा अपलोड किया गया एक वीडियो मिला। जबकि इसके एक दिन बाद 19 जून को एक्शन ट्यूब ने उसी वीडियो को अपलोड किया था।
यदि हम अपलोडर पर एक सरल खोज करते हैं, तो देखते हैं कि ‘मेजर एंथोनी क्लैस‘ ने यूरोप में नाटो गतिविधियों के बारे में अमेरिकी सेना की वेबसाइट के लिए कई लेख लिखे हैं। इसका अर्थ है कि संभवतः वह संचार अधिकारी हैं। इस प्रकार एक्शन ट्यूब में अपलोड किए गए वीडियो के मूल स्रोत की पुष्टि हुई।
एल्गोरिदम की तुलना में रचनात्मकता अब भी अधिक शक्तिशाली
रिवर्स इमेज सर्च के जरिए नकली वीडियो का पता लगाया जा सकता है। लेकिन यह कोई उचित समाधान नहीं है। उदाहरण के लिए, नीचे दिए गए इस वीडियो को 45,000 से अधिक बार देखा गया। इसे पूर्वी यूक्रेन के स्विटलोडार्स्क के समीप यूक्रेन के सैनिकों और रूस समर्थित अलगाववादी ताकतों की लड़ाई का वीडियो बताया गया। इसका शीर्षक था- “Battle in the area of the Svitlodarsk Bulge in the Donbas.” इस वीडियो में काफी गोलाबारी और तोप के शॉट्स दिखते हैं, जबकि लड़ाई के साथ ही सैनिकों की हंसी भी सुनाई देती है।
जब हमने इस वीडियो के यूआरएल को एमनेस्टी इंटरनेशनल के टूल में डाला, तो इसे अपलोड करने की तारीख और समय का पता चल गया। साथ ही, हमें कई थंबनेल मिले जिसके आधार पर रिवर्स इमेज सर्च की गई।
जब परिणामों को देखने से पता चला कि इन्हें अपलोड करने का समय लगभग वही था, जब वीडियो अपलोड किया गया था। इससे ऐसा लग रहा था कि वह वीडियो वास्तव में दिसंबर 2016 में स्विटलोडार्स्क के समीप लड़ाई का ही है।
जबकि सच्चाई कुछ और है। वह वीडियो 2012 में एक रूसी सैन्य प्रशिक्षण अभ्यास का था।
गूगल रिवर्स इमेज खोज और एमनेस्टी इंटरनेशनल के टूल का सबसे बेहतर उपयोग करने के बाद भी 2012 वाला वह मूल वीडियो नहीं मिल पाएगा। केवल नकली वीडियो फैलाए जाने के बाद इसके भंडाफोड़ का वर्णन करने वाली खबरों को छोड़कर इसकी सच्चाई का पता लगाना मुश्किल है।
उदाहरण के लिए, इस हम मूल वीडियो का शीर्षक था – ‘कावकाज 2012 का रात्रि प्रशिक्षण।‘ इस शीर्षक के आधार पर सर्च करें, तो हमें इस वीडियो के स्क्रीनशॉट के साथ स्विटलोडार्स्क के समीप लड़ाई का फर्जी वीडियो मिलेगा।
इस वीडियो के फर्जी होने की बात प्रमाणित करने के लिए दो में से एक की आवश्यकता थी। या तो उसका मूल वीडियो मिल जाए, या फिर आप यह साबित कर सकें कि हंसते हुए सैनिकों का उस कथित लड़ाई से कोई संबंध नहीं।
ऐसे मामलों में क्या किया जायें? इसके लिए रचनात्मक तरीके से खोज के अलावा कोई आसान रास्ता नहीं है।
ऐसी जांच करने का एक तरीका यह है कि आप उस व्यक्ति की तरह सोचने की कोशिश करें जिसने ऐसा संभावित नकली वीडियो साझा किया है। ऊपर दिए गए उदाहरण में हंसते हुए सैनिकों को देखकर आप अंदाज लगा सकते हैं कि यह कोई वास्तविक लड़ाई नहीं है। ऐसे में आप विचार करें कि किन परिस्थितियों में रूसी भाषी सैनिक हंसते हुए ऐसी घटना का वीडियो बनाएगा?
अगर आप ऐसा वीडियो ढूंढना चाहते हैं, तो क्या खोजेंगे? आप शायद रात के वीडियो की तलाश करें, जिसमें कुछ पहचान करने योग्य विवरण मिल सके। आप शानदार दिखने वाली लड़ाई के फुटेज देखने की भी कोशिश कर सकते हैं। लेकिन डोनबास में युद्ध के संबंधी किसी वीडियो में यूक्रेनियन या रूसियों की पहचान आसान नहीं होगी। रूसी, यूक्रेनी या बेलारूसी सेना के अभ्यास के वीडियो भी इसमें फिट नहीं हो सकते। ऐसा नहीं कह सकते कि दूसरे देश से युद्ध के फुटेज को रूसी भाषा में डब कर दिया। लेकिन यदि आप ‘प्रशिक्षण अभ्यास‘ और ‘रात‘ के लिए रूसी भाषा में सर्च करें, तो पहले परिणाम के रूप में यह वीडियो मिलेेगा। यदि आप इस मूल वीडियो के आधार पर निष्कर्ष तक न पहुंच सकें, तो इसे अपलोड करने वाले व्यक्ति के माध्यम से सत्यापित कर सकते हैं।
बारीक बातों पर नज़र रखने वाले डिजिटल जासूस बनें
डिजिटल उपकरणों का उपयोग करके हरेक सामग्री को सत्यापित करने की भी एक सीमा है। हर मामले में एल्गोरिदम कारगर हो, ऐसा जरूरी नहीं। कोई चाहे तो एल्गोरिदम को झांसा देने वाले तरीकों का उपयोग करके फर्जी सामग्री अपलोड कर सकता है। ऐसे लोग ‘रिवर्स इमेज सर्च‘ से बचने के लिए कुछ ट्रिक्स का इस्तेमाल करते हैं। जैसे, वीडियो मिरर करना, कलर स्कीम को ब्लैक एंड व्हाइट में बदलना, जूम इन या आउट करना इत्यादि। इसके लिए जांच का सबसे अच्छा तरीका यह है कि वीडियो के हर पहलू पर गौर करें। उसे जिस तरह की घटना बताया जा रहा है, उसके साथ वीडियो के हर पहलू का कितना तालमेल है? वीडियो उस कथित घटना के अनुरूप है अथवा नहीं?
19 सितंबर 2016 को लिंडन (न्यू जर्सी) में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किए जाने की खबरें आईं। उसे न्यूयॉर्क सिटी और न्यू जर्सी में तीन बम विस्फोटों के लिए जिम्मेदार बताया गया। विभिन्न स्रोतों से इसकी कई तस्वीरें और कुछ वीडियो भी सामने आए। इनमें जमीन पर गिरे हुए उस संदिग्ध अहमद खान रहमी को दिखाया गया जो पुलिस अधिकारियों से घिरा हुआ था।
डस व्यक्ति को लिंडन (न्यू जर्सी) में किस स्थान पर गिरफ्तार किया गया था, यह पता नहीं चल रहा था। लेकिन यह स्पष्ट था कि ये तस्वीरें वास्तविक थीं। इस वीडियो को एक स्थानीय नागरिक ने बनाया था। यह वीडियो पूरे दिन समाचार माध्यमों पर व्यापक रूप से साझा किया गया था। लेकिन ब्रेकिंग न्यूज के रूप में दिखाए जा रहे ऐसे वीडियो का सत्यापन हम कैसे कर सकते थे, ताकि यह पता चले कि वह वास्तविक है?
दो तस्वीरों के जरिए हम यह पता लगा सकते हैं कि रहमी को कहां गिरफ्तार किया गया था। दूसरी तस्वीर के निचले-बाएँ कोने में, हम चार नंबर (8211) का एक विज्ञापन देख सकते हैं। वहां ‘-ARS’ तथा ‘-ODY’ जैसे अधूरे शब्द लिखे थे। हम इसके पास में राजमार्ग 619 का एक जंक्शन भी देखकर उस स्थान का और अधिक सटीक रूप से पता चल रहा था। साथ ही, लिंडेन (न्यू जर्सी) में फोन नंबर के अंतिम चार अंक 8211 की जांच करने पर हमें फर्नांडो के ‘ऑटो सेल्स एंड बॉडी वर्क‘ की जानकारी मिली। इससे ऊपर लिखे गए अधूरे शब्दों का पता चला यानी ‘CARS’ तथा ‘BODY’. इसके अलावा, हमें फर्नांडो के पते की भी जानकारी मिल गई- 512, ई, एलिजाबेथ एवेन्यू, लिंडेन, (न्यू जर्सी)।
गूगल स्ट्रीट व्यू पर उस पते की जाँच करके हमने दोबारा चेक कर लिया कि हम सही रास्ते पर हैं।
तस्वीरों और वीडियो दोनों में मौसम एक जैसी नमी वाला दिखता है। वीडियो के छब्बीस सेकंड पर ड्राइवर जिस जगह से गुजरता है, वहां ‘बोवर स्ट्रीट‘ लिखा मिलता है। साथ ही, एक अन्य राजमार्ग 619 का जंक्शन संकेत भी मिलता है। हम उन दोनों तस्वीरों में मिले स्थान के साथ इस वीडियो के लोकेशन की क्रॉस-चेक करें, तो हमें उसके भौगोलिक स्थान की जानकारी मिल जाती है।
गूगल मैप्स पर देखने से पूर्वी एलिजाबेथ एवेन्यू से गुजरती बोवर स्ट्रीट का पता चला, जहां संदिग्ध को गिरफ्तार किया गया था। उसके समीप वह ऑटो मरम्मत की दुकान थी। उसे पीले स्टार द्वारा दिखाया गया है।
यदि आपके पास समय हो, तो आप गूगल स्ट्रीट व्यू की सुविधाओं की तुलना करके ठीक उस स्थान का पता लगा सकते हैं जहां वीडियो बनाया गया।
इनमें से प्रत्येक चरण में बहुत सारे काम शामिल हैं। इसके बावजूद, यदि आप जानते हैं कि क्या देखना है, तो इस पूरी प्रक्रिया में पांच मिनट से अधिक समय नहीं लगेगा। यदि घटना का वीडियो बनाने वाले प्रत्यक्षदर्शी तक आपकी पहुंच नहीं है, तो उसके फुटेज की पुष्टि करने के लिए केवल चौकस निगाह की आवश्यकता होगी। आप गूगल मैप्स और स्ट्रीट व्यू पर कुछ रचनात्मक तरीके से काम करके सत्यापन कर सकते हैं। वीडियो का सत्यापन करना रिपोर्टिंग का एक नियमित हिस्सा होना चाहिए। साथ ही, सोशल नेटवर्क पर सामग्री साझा करना भी जरूरी है, क्योंकि यह नकली समाचारों और अफवाहों को फैलाने का सबसे तेज माध्यम है।
संदेश को शोर के बीच से पहचानना
किसी वीडियो को डिजिटल रूप से बदलने या छेड़छाड़ करने के लिए काफी कौशल की आवश्यकता होती है। ऐसा करके किसी वीडियो में कुछ तत्वों को जोड़ने या घटाने के जरिए अलग रूप दिया जाता है। ऐसा तथ्य की जांच करने वालों तथा कॉपीराइट से बचने के लिए किया जाता है। साथ ही ऐसा करने से इंटरनेट के एलगोरिदिम की पकड़ में आने से भी बचने की संभावना होती है।
आम तौर पर मूवी, टेलीविजन शो या खेल की घटनाओं के वीडियो यूट्यूब पर अपलोड करते वक्त मिरर करने या अन्य तरीकों से बदलाव किया जाता है। ऐसा करके डिजिटल मिलेनियम कॉपीराइट एक्ट के उल्लंघन से बचने की कोशिश की जाती है। अगर किसी वीडियो को मिरर किया गया है, तो उसके किसी टेक्स्ट या नंबर को ध्यान से देखें क्योंकि वे फ्लिप होने या उल्टा होने के कारण अजीब दिखेंगे। इससे आप अंदाज लगा सकते हैं कि इसे मिरर किया गया है।
नीचे दिए गए स्क्रीनशॉट देखें। वर्ष 2011 में मास्को के डोमोडेडोवो हवाई अड्डे में एक हमले के फुटेज को ब्रसेल्स और इस्तांबुल में हवाई हमला बताकर फर्जी वीडियो बनाया गया था। इसके लिए कुछ प्रभावों का उपयोग करके वीडियो के सेगमेंट में जूमिंग, नकली समय दिखा़ना, रंग को काले और सफेद में बदलना जैसे काम किए गए। इसके अलावा फुटेज के शीर्ष पर भड़कीले लोगो जोड़े गए ताकि रिवर्स इमेज सर्च करना भी मुश्किल हो।
ऐसे फर्जी वीडियो की असलियत को किसी उपकरण के माध्यम से पता लगाना मुश्किल है। ऐसे मामलों में आपको सामान्य ज्ञान और रचनात्मक खोज पर भरोसा करना होगा। जैसा कि रूसी सैन्य प्रशिक्षण के पुराने वीडियो को ताजा लड़ाई के फुटेज के रूप में दिखाया गया था, वैसा ही मामला यह भी है। आपको यह सोचने की जरूरत है कि नकली वीडियो बनाने के लिए कोई व्यक्ति स्रोत सामग्री खोजने के लिए क्या खोज करेगा। ‘हवाई अड्डा विस्फोट‘ या ‘सीसीटीवी आतंकवादी हमले‘ जैसे शब्दों की खोज करके आप डोमोडेडोवो हवाई अड्डे के हमले के फुटेज खोज सकते हैं। इसके बाद स्क्रीनशॉट लेकर ‘रिवर्स इमेज सर्च‘ करें तो उपयोगी परिणाम मिल सकते हैं।
अभी भी सब कुछ इतना आसान नहीं है
फेक वीडियो और फर्जी सामग्री की जांच करना आज मीडियाकर्मियों के लिए एक बड़ा विषय बन चुका है। कई तकनीकी प्रगति और उपकरणों ने ऐसा करने में मदद की है। लेकिन किसी भी डिजिटल तरीके के भरोसे नकली वीडियो का सत्यापन संभव नहीं। यह काम मुख्यतः आपकी रचनात्मकता पर ही निर्भर करेगा। दूसरे शब्दों में कहें तो फर्जी वीडियो बनाने वालों के खिलाफ यह एक लड़ाई है। डिजिटल उपकरण किसी फर्जी सामग्री को सत्यापित करने में काफी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन रचनात्मकता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
एरिक टोलर वर्ष 2015 से बेलिंगसैट से जुड़े हैं। वह रूसी मीडिया, पूर्वी यूक्रेन में संघर्ष, अमेरिका और यूरोप में रूसी प्रभाव और एमएच 17 की जांच जैसे मामलों की सूचनाओं का सत्यापन करते हैं।