कोविड-19 संबंधी गलत सूचनाओं के साजिशकर्ताओं का भंडाफोड़ करने के 6 तरीके !

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Graphic: Courtesy Coda Story

कोरोना महामारी के दौर में दुनिया भर में गलत सूूचनाओं की भरमार देखी गई। इनमें काफी सूचनाएं जान-बूझकर फैलाई गईं थीं। किसी संकट के दौरान ऐसी भ्रामक सूचनाएं काफी नुकसानदेह होती हैं। इसलिए इस आलेख में कोरोना संबंधी गलत सूचनाओं के साजिशकर्ताओं के पर्दाफाश के लिए छह उपकरण और छह तकनीकों की जानकारी दी गई है।

पत्रकार अलेक्जेंडर कैप्रोन ने अफ्रीका और पश्चिमी यूरोप में कोरोना महामारी संबंधी फर्जी खबरों की जांच की थी। वह France 24’s The Observers के रिपोर्टर हैं। उनकी रिपोर्ट  Investigating a COVID-19 Disinformation Campaign काफी चर्चित रही। इस जांच के प्रारंभ में पत्रकार अलेक्जेंडर कैप्रोन को यह संदेह था कि इन फर्जी खबरों के पीछे किसी बड़े और खतरनाक संगठन का हाथ होगा। उन्हें यह भी लगता था कि इस अभियान के पीछे कोई बड़ा वित्त-पोषित संगठन होगा।

पता चला कि पांच लोकप्रिय फेसबुक पेजों में कोरोना संबंधी फर्जी खबरें पोस्ट की गई थीं। इनमें राष्ट्रपति और प्रमुख चिकित्सा अधिकारियों के फर्जी उद्धरण दिए गए थे। इसमें कोरोना के संभावित घातक परिणामों के फर्जी दावे किए गए थे। इन खबरों में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो के लोगों और फ्रांस स्थित कांगो प्रवासियों की नाराजगी का फायदा उठाने की कोशिश नजर आती थी। पत्रकार अलेक्जेंडर कैप्रोन ने इस मामले का पता लगाने के लिए कई प्रकार के नेटवर्क ट्रैकिंग टूल्स का उपयोग किया। इनमें Hoaxy, whopostedwhat.com, और फेसबुक के Transparency box शामिल हैं।

आश्चर्य तब हुआ जब इस जांच-पड़ताल में उन्हें डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (डीआरसी) की राजधानी किन्शासा में 20 वर्षीय एक कॉलेज छात्र और 16 वर्षीय एक स्कूली बच्चे का हाथ मिला। हैरानी की बात थी कि फर्जी खबरों के इतने बड़े अभियान के पीछे इन बच्चों का यह खेल था।

पत्रकार अलेक्जेंडर कैप्रोन ने उस फेसबुक पेज के मैनेजर 20 वर्षीय छात्र से बात की। उसने बताया कि हम फेसबुक में अपने फाॅलोअर्स बढ़ाने के लिए फर्जी खबरें बनाते हैं। हम अपने सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं को ऐसी नई जानकारी देते हैं कि जो कहीं दूसरी जगह पढ़ने को नहीं मिलेगी।

20 वर्षीय कांगो छात्र ने पत्रकार को बताया कि उसे एक महीने में 60,000 फॉलोअर्स मिले। उसने कोविड-19 पर ऐसे फर्जी पोस्ट डाले थे Image: France 24’s The Observers

उस छात्र के सिर्फ एक फेसबुक पेज के 1,50,000 फाॅलाअर्स थे। कोविड-19 पर उसके फर्जी लेखों को पांच हफ्तों में सोशल मीडिया पर 2,06,000 बार शेयर किया गया।

महामारी के इस दौर में जानबूझकर दुनिया भर में फैलाए जा रहे झूठ के पीछे कई तरह की ताकतें काम कर रही हैं। इनमें कई प्रकार के वैचारिक समूहों, व्यावसायिक हित और अन्य किस्म के धंधेबाज, सरकारी मशीनरी, गोपनीय जनसंपर्क एजेंट, किसी साजिश के तहत काम कर रहे समाचार नेटवर्क इत्यादि शामिल हैं। साथ ही, ऐसे युवा तथा आम लोग भी हैं, जो सिर्फ मजा लेने या ध्यान आकर्षित करने या मामूली आर्थिक लाभ के लिए सोशल मीडिया में कोरोना पर झूठ फैला रहे हैं।

Reuters Institute at the University of Oxford Research के एक  शोध से पता चला कि कोविड-19 संबंधी भ्रामक सूचनाओं में लगभग 40 फीसदी जानबूझकर गढ़ी गई थी। ऑक्सफोर्ड इंटरनेट इंस्टीट्यूट के एक अध्ययन में पाया गया कि रूस और चीन के सरकारी मीडिया द्वारा कोविड-19 पर गढ़ी गई भ्रामक सूचनाओं को सोशल मीडिया में ज्यादा लोकप्रियता मिली। जबकि पश्चिमी यूरोप के मीडिया संस्थानों की तथ्यात्मक खबरों को अपेक्षाकृत कम लोकप्रियता मिली। स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को कहना पड़ा कि ‘पेंडेमिक‘ के साथ ‘इन्फोडेमिक‘ भी आया है। यानी महामारी के साथ गलत सूचनाओं का रोग।

राजनीतिक कुप्रचार के विपरीत किसी महामारी की गलत सूचनाओं के परिणाम ज्यादा घातक होते हैं। इसमें लोगों के गैर-जिम्मेदार व्यवहार या गलत इलाज के कारण मौतें हो सकती हैं। गलत सूचनाओं के जरिए हिंसा भड़क सकती है। भारत में कोरोना संक्रमण के बाद फैली अफवाहों के कारण मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर हमलों की कई घटनाएं हुईं।

जीआइजेएन ने कोविड-19 संबंधी गलत सूचनाओं पर काम करने वाले सात पत्रकारों और संपादकों का साक्षात्कार लिया। उन सबका मानना था कि खोजी पत्रकारों को ऐसी हर फर्जी खबर का सच बताने में समय लगाने के बजाय यह पता लगाने पर फोकस करना चाहिए कि ऐसे अभियान के पीछे कौन लोग जिम्मेवार हैं। ऐसे कुप्रचार अभियान की फंडिंग कौन कर रहा है?

उन पत्रकारों ने गलत सूचनाओं का सच जानने के लिए दर्जनों उपकरणों का इस्तेमाल किया। जीआईजेएन ने सबसे कारगर छह उपकरणों और छह तकनीकों की पहचान की है।

बजफीड न्यूज के मीडिया एडिटर क्रेग सिल्वरमैन ने कहा- ”मुझे लगता है कि हमारे ऊपर ऐसे लोगों और समूहों को बेनकाब करने की जिम्मेदारी है, जो गलत सूचनाएं फैलाते हैं। ऐसे ट्रोल समूहों, निहित स्वार्थ समूहों, राजनीतिक और व्यावसायिक समूहों की जांच जरूरी है। यह एक अच्छी खबर का विषय है। साथ ही, इससे लोगों को गलत दिशा में जाने से रोका जा सकता है। अगर पत्रकार अपना काम सही करेंगे, तो गलत सूचनाओं का ज्यादा असर नहीं होगा।

A list of essential open-source plugins and tools  – क्रेग सिल्वरमैन ने ऐसे open-source plugins और टूल्स की सूची बनाई है। इनसे संवाददाताओं को गलत सूचनाओं का पता लगाने में मदद मिलती है।

साक्षात्कार के दौरान पत्रकारों ने बताया कि 2020 में दुनिया भर के फैक्ट चेकिंग संगठनों के सामूहिक प्रयास से हमें अफवाह के साजिशकर्ताओं के पर्दाफाश में मदद मिली है।

The CoronaVirusFacts Alliance में अमेरिका के पाॅयन्टर इंस्टीट्यूट द्वारा संचालित ‘इंटरनेशनल फैक्ट चेकिंग नेटवर्क‘ में 100 संगठन शामिल हैं। इस नेटवर्क ने वर्ष 2020 में कोविड-19 से संबंधित 7000 से भी अधिक गलत सूचनाओं का पर्दाफाश किया।

The Forum on Information & Democracy  ने इन्फोडेमिक के खिलाफ नीतिगत विषयों पर काम करने के लिए एक कार्यकारी समूह बनाया है। फर्स्ट ड्राफ्ट (First Draft) नामक रिसर्च संगठन द्वारा पत्रकारों को ऑनलाइन पोस्ट की जांच करने और उसके पीछे जिम्मेवार लोगों का पता लगाने की तकनीक पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

वर्ष 2020 में यह तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल हुई। इसे चीन में कोरोना से मौत की फोटो बताया गया। फ़र्स्ट ड्राफ्ट ने ‘रिवर्स इमेज सर्च‘ किया। पता चला कि इसे जर्मनी में वर्ष 2014 की एक कला परियोजना में बनाया गया था

फ़र्स्ट ड्राफ्ट के यूएस डिप्टी डायरेक्टर ऐमी रिनहर्ट  ने बताया कि गलत सूचनाओं का पता लगाने के दौरान हमें कोरोना संबंधी अफवाहों को वायरल होने से पहले ही रोकने में मदद मिली। इसके कारण मीडिया संस्थानों के न्यूजरूम को भी अफवाह फैलाने से बचना संभव हुआ। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन अफवाहों में आम तौर पर जैसी शब्दावली और कुछ समूहों के लिए नफरत इत्यादि दिखती है, वही चीज इसमें भी देखने को मिल रही है। लेकिन इसमें कोरोना वायरस संबंधी गलत सूचनाओं का लेप चढ़ा दिया गया है।

ऐमी रिनहर्ट के अनुसार पहले जॉर्ज सोरोस (इन्वेस्टर एवं समाजसेवी) को निशाना बनाकर ज्यादातर गलत सूचनाएं वायरल की जाती थीं। लेकिन अब बिल गेट्स (माइक्रोसोफ्ट के मालिक) मुख्य निशाने पर हैं। पहले भ्रामक जानकारी होती थी, लेकिन अब जानबूझकर बनाई गई फर्जी सामग्री होती है। कोविड-19 के बाद लॉकडाउन के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में इसे ज्यादा देखा गया।

उन्होंने बताया कि ऐसे गलत सूचना अभियानों में राजनीतिक तौर पर कई तरह के समूह मिलते हैं। इनमें टीकाकरण विरोधी समूह भी हैं और ‘बंदूक का अधिकार‘ वाले लोग भी हैं। लेकिन इन सबके कुप्रचार अभियान में यह बात सामान्य मिलती है कि ‘आप हमें नहीं बता सकते कि हमें क्या करना है।‘

गलत सूचनाओं का संगठित अभियान

रिसर्च करने वाले पत्रकारों ने विश्व राजनीति के महत्वपूर्ण मामलों में गलत सूचनाओं के बड़े मामले उजागर किए। जैसे, वर्ष 2016 में अमेरिकी चुनावों को प्रभावित करने और यूनाइटेड किंगडम में ब्रेक्सिट वोट को प्रभावित करने के पीछे कई संगठित समूहों का हाथ पाया गया।

बजफीड न्यूज के मीडिया एडिटर क्रेग सिल्वरमैन ने एक जांच में पाया कि एक छोटेे शहर मैसेडोनिया के युवा उद्यमियों ने लगभग 140 प्रॉपगैंडा वेबसाइटें बनाई थीं। इनका दूसरे मतदाताओं पर काफी प्रभाव पड़ा। दिलचस्प यह है कि इनमें ट्रंप समर्थकों को लुभाने वाली फर्जी खबरें डाली जाती थीं। फिर वेबसाइट के लिंक को फेसबुक में शेयर किया जाता था। इससे उनके वेबसाइट को देखने वालों की संख्या बढ़ती थी।

वर्ष 2016 में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के लिए रूस की कुछ एजेंसियों द्वारा सोशल मीडिया के दुरुपयोग के किस्से अक्सर सुनने को मिलते हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स ने सेंट पीटर्सबर्ग स्थित ऐसे ट्रोल फार्म को उजागर किया, जिसका संचालन रूस की ‘इंटरनेट रिसर्च एजेंसी‘ द्वारा किया जा रहा था।

कोविड-19 पर गलत सूचनाओं के अभियान के संबंध में अब तक ऐसी कोई बड़ी खबर अब तक नहीं आई है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले में भी कुछ संगठित अभियान चलाने वालों की सूचना सामने आने की आशंका है।

जॉर्जिया स्थित ‘कोडा स्टोरी डाॅट काॅम‘ ने 5-जी नेटवर्क को लेकर गलत सूचनाओं पर खोजी रिपोर्टिंग की। इसकी  संपादक नतालिया एंटीलवा ने बताया कि गलत सूचनाओं ने कई मीडिया संस्थानों को इसकी जांच का सिस्टम बनाने के लिए मजबूर किया है। बेहतर यही है कि ऐसे अभियान संचालित करने वाले संगठनों और उनके निहित स्वार्थों पर हम अपना ध्यान केंद्रित करें।

नतालिया एंटीलवा कहती हैं- ”मुझे लगता है कि गलत सूचनाओं का पर्दाफाश करना पत्रकारों के लिए अपने असल काम से भटकाव है। हमें दूसरों के एजेंडे पर प्रतिक्रिया देने के बजाय अपने एजेंडे पर सक्रिय रहना चाहिए। गलत सूचना अभियान को भी अन्य विषयों की तरह कवर करना चाहिए।”

Graphic: Courtesy of Coda Story

फरवरी 2020 में ‘कोडा स्टोरी‘ ने 5-जी नेटवर्क पर स्टोरी की। इसमें ‘स्टॉप 5-जी इंटरनेशनल‘ नामक फेसबुक समूह की जांच की गई। यह अभियान 5-जी डेटा तकनीक के खिलाफ झूठी जानकारी प्रसारित करता था। कोरोना महामारी के दौरान इस पर काफी गलत सूचनाएं वायरल हुईं। इसके कारण सिर्फ ब्रिटेन में लोगों ने 70 से अधिक मोबाइल फोन टॉवरों को जलाया अथवा तोड़ दिया। ऐसे लोग मानते थे कि 5-जी तकनीक के कारण मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्युनिटी सिस्टम) को नुकसान पहुंच रहा है। इसके कारण कोविड-19 तेजी से फैल रहा है।

‘कोडा स्टोरी‘ की टीम ने उस फेसबुक पेज के मैनेजर के साथ ज्यूरिख के पास मुलाकात की। उसने अपने घर के बेसमेंट में रिपोर्टर से बात की। उसके हाथ में एक ‘रेडिएशन डिटेक्टर‘ भी था। उसने इस डिटेक्टर के जरिए रिपोर्टर को स्कैन किया और मोबाइल बंद करा दिया। इस रिपोर्ट में उस फेसबुक मैनेजर के प्रति कोई कठोर बात नहीं लिखी गई। सिर्फ इस चीज पर फोकस किया गया कि वह ऐसा अभियान क्यों चलाता है। 5-जी तकनीक पर उसके दावों और आशंकाओं पर यह रिपोर्ट की गई। इस स्टोरी में वैज्ञानिक तथ्यों पर कम फोकस किया गया।

भंडाफोड़ का हुआ बड़ा असर

मई 2020 में आर्मेनिया के रिपोर्टर तातेव होवहनिस्यान (Tatev Hovhannisyan)  ने एक वेबसाइट की गलत सूचनाओं का सच उजागर किया। Medmedia.am नामक एक स्थानीय स्वास्थ्य समाचार वेबसाइट ने कोरोना महामारी पर कई झूठी खबरें पोस्ट की थी। इनमें अर्मेनिया के लोगों को टीकाकरण कार्यक्रमों का बहिष्कार करने के लिए कहा गया था। इसकी एक स्टोरी को महज 30 लाख की आबादी वाले देश में 1.31 लाख लोगों ने देखा।

इसी वेबसाइट की एक और झूठी स्टोरी काफी लोकप्रिय हुई। इसमें बताया गया था कि एक मुर्दाघर द्वारा परिजनों से कहा जा रहा है कि अगर कोरोना से मौत होने के झूठे फाॅर्म पर हस्ताक्षर कर दें, तो बदले में नकद राशि दी जाएगी।

Medmedia.am नामक वह साइट एक डॉक्टर द्वारा चलाई जा रही थी। वह समलैंगिकता अधिकार विरोधी विचार रखते थे। वेबसाइट का दावा था कि यह अमेरिकी सरकार के अनुदान से चलती है।

पत्रकार तातेव होवहनिस्यान इस बात को लेकर हैरान थीं, कि क्या वाकई ऐसी वेबसाइट के लिए अमेरिकी सरकार से अनुदान मिलता है? इसलिए वेबसाइट की फर्जी खबरों को भंड़ाफोड़ करने के बदले उन्होेंने इसकी फंडिंग का पता लगाना शुरू किया। पहले उन्होंने अमेरिकी संघीय सरकार की अनुदान साइट grants.gov को देखा। इसमें उन्होंने इस वेबसाइट के मालिक, इसके डोमेन नेम और एनजीओ के नाम से सर्च किया। लेकिन इसमें कोई जानकारी नहीं मिल सकी।

इस दौरान तातेव होवहनिस्यान को पता चला कि अनुदान लेने के लिए डीयूएनएस नंबर लेना पड़ता है। इससे एक विशिष्ट संख्यात्मक पहचान मिलती है। इसके बाद सिस्टम फाॅर एवार्ड मैनेजमेंट के लिए पंजीकरण होता है। तातेव होवहनिस्यान ने इसके साइट पर जाकर डेटाबेस में खोज की। इसमें ‘आर्मेनियन एसोसिएशन ऑफ यंग डॉक्टर्स‘ के पंजीकरण का रिकॉर्ड मिल गया। यह उसी डॉक्टर का एनजीओ था।

सबूत पेश करने के आठ दिन बाद, अमेरिकी दूतावास (अर्मेनिया) ने स्वीकार किया कि इस एनजीओ और वेबसाइट दोनों को अनुदान दिया गया है।

पत्रकार तातेव होवहनिस्यान की स्टोरी ‘ओेपन डेमोक्रेसी‘ में छपी थी। इसमें बताया गया कि अमेरिकी टैक्सपेयर्स के पैसों से चलने वाले बेबसाइट में कोरोना टीकाकरण पर कुप्रचार किया जा रहा है। यह स्टोरी आने के एक हफ्ते बाद अमेरिकी राजदूत लिन ट्रेसी ने दूतावास द्वारा उस वेबसाइट के लिए दिया जाने वाला अनुदान बंद करने का ऐलान किया। उन्होंने अनुदान प्रक्रिया को और चुस्त करने की भी बात कही।

‘ओेपन डेमोक्रेसी‘ की वह स्टोरी अब तक आठ भाषाओं में 70 से अधिक मीडिया संस्थानों में प्रकाशित या उद्धृत की गई है।

पत्रकार तातेव होवहनिस्यान कहती हैं- “मैं हैरान थी कि अमेरिकी सरकार किसी ऐसे अर्मीनियाई वेबसाइट को अनुदान कैसे दे सकती है जो कोविड-19 के बारे में गलत सूचना फैलाए और जो टीकाकरण के खिलाफ वकालत करेे? इस महामारी के दौरान गलत सूचनाओं का खतरनाक प्रसार हुआ है। इस स्टोरी से हमें अपेक्षा से काफी अधिक सफलता मिली। उस वेबसाइट ने अब कोरोना पर भ्रामक खबरें डालना कम कर दिया है।“

साजिशकर्ताओं की पहचान के लिए छह उपकरण

  • Hoaxy – (हाॅक्सी) – इस ओपन-सोर्स टूल से ऑनलाइन पोस्ट और लेखों के प्रसार, कम विश्वसनीयता वाले स्रोत, शेयर की संख्या और समय अवधि की जानकारी मिलती है।
  • CrowdTangle – (क्राउड टेंगल) – इसे गलत सूचनाओं के नेटवर्क का पर्दाफाश करने वाला सबसे शक्तिशाली उपकरण समझा जाता है। यह एक सोशल मीडिया मॉनिटरिंग प्लेटफॉर्म है। यह फेसबुक, इंस्टाग्राम और रेडिट जैसे प्लेटफार्मों पर किसी सामग्री शेयर किए जाने के बारे में गहन जानकारी प्रदान करता है।
  • Graphika (ग्राफिका) – यह टूल आपको सोशल मीडिया परिदृश्य को मैप करने और विभिन्न डोमेन के बीच कनेक्शन खोजने में मदद करता है। यह Gephi रूप में गलत सूचनाओं का पता लगाने का एक जटिल, लेकिन प्रभावी उपकरण है।
  • DNSlytics.com (डीएनएस लाइटिक्स डाॅट काॅम) – किसी आर्थिक समूह द्वारा गलत सूचना अभियान और कुप्रचार की जांच के लिए यह उपकरण उपयोगी है। इससे आप किसी वेबसाइट पर आने वाले विज्ञापनों और संदिग्ध वाणिज्यिक गतिविधियों का पता लगा सकते हैं। इस सुविधा का प्रीमियम खाता लेने के लिए कुछ राशि का भुगतान  करना पड़ता है। अगर कोई ज्यादा खर्च कर सके, तो Adbeat नामक उपकरण काफी उपयोगी है। यह वेबसाइटों के डिस्प्ले विज्ञापनों पर महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान करता है।
  • Whopostedwhat – (हू पोस्टेड व्हाट) यह एक ऑनलाइन इंटेलिजेंस विशेषज्ञ हेंक वेन एस (Henk van Ess) द्वारा बनाया गया उपकरण है। यह सार्वजनिक हित में जांचकर्ताओं के लिए डिजाइन किया गया है। यह आपको कीवर्ड के जरिए फेसबुक में तारीख के साथ सर्च करने की अनुमति देता है। वीडियो सत्यापन उपकरण InVID और CrowdTangle के साथ ही यह उपकरण भी सोशल मीडिया पोस्टों में फर्जी सूचनाओं के साजिशकर्ताओं को पहचानने में काफी उपयोगी है।
  • Google Search to find questions – (जवाब के बजाय सवाल के लिए गूगल सर्च) – राइनहर्ट (Rinehart) का सुझाव है कि गूगल में सवाल खोजने की सुविधा भी पत्रकारों के लिए काफी उपयोगी है। आप गूगल में जब कुछ सर्च करते हैं, तो आधा प्रश्न टाइप करते हर कई प्रकार के सवालों का विकल्प दिख जाता है। जैसे, अगर आप ‘कोरोना से लड़ने की रणनीति‘  पर सर्च करना चाहते हों, तो आधा सवाल टाइप करते ही कई प्रकार के सवाल दिख जाएंगे। इससे आप यह पता लगा सकत हैं कि इस विषय पर लोगों के मन में क्या सवाल है और एक पत्रकार के बतौर आपको किन सवालों के जवाब तलाशने हैं। इसका एक प्रसिद्ध उदाहरण है। युनाइटेड किंगडम के ब्रेक्जिट वोट के दूसरे दिन गूगल पर सबसे ज्यादा सर्च किया गया सवाल था- ‘यूरोपीय संघ क्या है।’

एशिया में फर्जी सूचनाओं की खतरनाक लहरें

दिल्ली स्थित सोसाइटी ऑफ एशियन जर्नलिस्ट्स के अध्यक्ष सैयद नजाकत ने एशिया में फर्जी सूचनाओं की खतरनाक लहरों के बारे में बताया। वह जीआईजेएन बोर्ड के सदस्य भी हैं। वह DataLEADS  नामक वेबसाइट का संचालन करते हैं।

उन्होंने कहा कि एशिया में कोरोना महामारी के बारे में चार लहरें देखी गईं। सबसे पहले, इस महामारी की उत्पत्ति को लेकर फर्जी सूचनाएं आईं। दूसरी लहर के दौरान पुरानी मनगढ़ंत कहानियों को जोड़ते हुए वायरस के रूप में पेश किया गया। इलाज को लेकर मनमाने दावों के रूप में गलत सूचनाओं की तीसरी लहर आई। अंत में, लॉकडाउन के बारे में गलत सूचनाओं की चौथी लहर देखी गई।

सैयद नजाकत ने चेतावनी दी कि अगले कुछ महीनों में कोरोना वैक्सीन के खिलाफ संगठित कुप्रचार अभियान देखने को मिल सकता है। उन्होंने कहा कि अब तक कोरोना महामारी पर हमने जितनी गलत सूचनाएं देखी हैं, उससे काफी अधिक संगठित और तीव्र अभियान वैक्सीन के खिलाफ हो सकता है। वैक्सीन के खिलाफ अफवाहों के कारण लोग इसे लेने से परहेज कर सकते हैं। वैक्सीन के खिलाफ गलत सूचनाओं वाले काफी वीडियो सामने आ रहे हैं। पत्रकारों के पास इन विषयों पर जांच के काफी अवसर हैं।

उन्होंने बताया कि वैक्सीन संबंधी तथाकथित साजिश की अफवाहें पूरे पाकिस्तान में देखने को मिलीं। कई खबरों में बताया गया कि सीआईए ने वर्ष 2011 में अल-कायदा पर अमेरिकी सेना के छापे से पहले ओसामा बिन लादेन के परिसर में एक टीकाकरण यात्रा का आयोजन किया था। उन अफवाहों के साथ अब कोविड-19 महामारी को जोड़कर गलत सूचनाएं फैलाई जा रही हैं।

सैयद नजाकत कहते हैं- “जब कोरोना महामारी शुरू हुई, तब भी यह कुप्रचार किया गया कि कोई कोरोना नहीं है, बल्कि यह सीआईए का एक गुप्त मिशन है। हमने हिंदी और बांग्ला में कई ऐसे वीडियो देखे हैं, जिनमें कोरोना की वैकल्पिक दवाओं और इलाज के बारे में बताया गया है। जैसे, लहसुन या गो-मूत्र आपको किस तरह कोरोना से ठीक कर सकता है। उर्दू भाषा में भी ऐसे कई वीडियो पाकिस्तान और भारत में शेयर किए गए। इस कुप्रचार का एक विषय वैक्सीन के संबंध में देखा गया। कोरोना को मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने के हथियार के रूप में भी इस्तेमाल किया गया। इलाज के बिना किसी वैज्ञानिक प्रमाण वाले दावों पर हमने काफी खबरें लिखी हैं। हमने यह भी पता लगाया कि ऐसे अभियान के पीछे किन लोगों का हाथ है। इसमें वैकल्पिक चिकित्सा से संबंधित विभिन्न निहित स्वार्थी समूहों की भागीदारी साफ तौर पर देखी गई।”

HealthAnalyticsAsia की इस स्टोरी में एक डॉक्टर ने इस अफवाह का  खंडन किया कि नींबू के रस से हाथ धोने से कोरोना में सुरक्षा मिलती है

DataLEADS ने कोरोना महामारी संबंधी लेखों में चिकित्सा दावों की जांच के लिए Health Analytics Asia का गठन किया है। इसमें 17 एशियाई देशों के डॉक्टरों की भागीदारी है।

झूठी खबरों के पीछे के तत्वों को उजागर करना

सिल्वरमैन ने पत्रकारों को गलत सूचनाओं के पर्दाफाश में मदद के लिए कई पुस्तकों का संपादन किया है। इनमें निशुल्क डाउनलोड करने योग्य एक हैंडबुक भी शामिल है। इसमें आपातकालीन कवरेज के लिए डिजिटल सामग्री के सत्यापन की जानकारी दी गई है। “Verification Handbook: A definitive guide to verifying digital content for emergency coverage.”

मई 2020 में क्रेग सिल्वरमैन ने कोविड-19 के नाम पर महंगी कीमत पर बेचे जाने वाले फेस मास्क के बारे में संगठित अभियान का भंडाफोड़ किया। इसके विज्ञापनों और वीडियो में किसी तथाकथित मेडिकल एक्सपर्ट का दावा दिखाया गया था कि ऐसे फेसमास्क कोविड-19 मामले में काफी कारगर हैं। जबकि यह दावा सरासर फर्जी होने के कारण फेसबुक ने ऐसे विज्ञापनों पर रोक लगा रखी थी।

उन्होंने किसी गलत सूचना अभियान के पीछे व्यावसायिक हितों वाले नेटवर्क और धोखाधड़ी को उजागर करने के तरीकों पर भी प्रकाश डाला।

क्रेग सिल्वरमैन ने कोरोना के नाम पर फेसमास्क बेचने के एक घोटालेबाज नेटवर्क का पर्दाफाश किया। इस जालसाजी की शुरूआत एक फेसबुक पोस्ट से हुई थी

फर्जी सूचनाओं पर जीआईजेएन के वेबिनार में क्रेग सिल्वरमैन ने इस मामले की पूरी जानकारी दी। उन्होंने फेसबुक में एन-95 मास्क का एक विज्ञापन देखा था। उसमें झूठी जानकारी देते हुए अमेरिकी रोग नियंत्रण केंद्र के ‘सर्जन जनरल‘ के एक उद्धरण का हवाला दिया गया था। जबकि इस केंद्र में ऐसा कोई पद ही नहीं है।

इस फेसमास्क के लिए ऑनलाइन स्टोर के यूआरएल लिंक में अधिक जानकारी नहीं दी गई थी। लेकिन सिल्वरमैन ने उस यूआरएल में उद्धरण चिह्न लगाकर गूगल सर्च किया। इससे उस यूआरएल के संबंध में गूगल के इन्डेक्स में मौजूद सभी पेज मिल गए। इनमें पे-पाल समुदाय द्वारा पोस्ट की गई सूचनाएं, ग्राहकों की शिकायतें और मास्क बेचने वाली कंपनी ‘जेस्ट-एड्स‘ से जुड़ी सूचनाएं शामिल थी। इसके अलावा, “masks” and “ZestAds” सर्च करने पर सैकड़ों शिकायतें मिलीं। इनमें झूठी जानकारी, महंगी कीमत और यहां तक कि मास्क की आपूर्ति नहीं किए जाने जैसे मामले शामिल थे।

क्रेग सिल्वरमैन ने उस फेसबुक पेज से संबंधित अन्य पेज, सभी साइडबार तत्व, समीक्षा और ‘हमारे बारे में‘ इत्यादि को खोलकर देखा। उन्होंने पेज के ट्रांसपेरेंसी बॉक्स पर भी क्लिक किया। पता चला कि उसे फेसबुक पेज का मालिक ‘जेस्ट-एड्स‘ नहीं बल्कि कोई अमेरिकी कंपनी है।

सिल्वरमैन के लिए यह विसंगति एक महत्वपूर्ण जानकारी थी। इस कथित अमेरिकी पेज का मैनेजर स्पेन निवासी होने की बात भी सामने आई।

उस कंपनी संबंधी शिकायतों के लिए बने एक फेसबुक समूह ने अपनी रसीदें उपलब्ध कराईं। इनके यूआरएल से ‘जेस्ट-एड्स‘ द्वारा स्थापित ऑनलाइन स्टोरों का पता चल गया।

इसके बाद क्रेग सिल्वरमैन ने यह पता लगाया कि यह नेटवर्क कितना बड़ा है। इसके लिए उन्होंने ‘स्नोबॉलिंग‘ तकनीक का इस्तेमाल किया। इसमें मास्क बेचने वाले फेसबुक पेजों और ऑनलाइन स्टोर की संख्या संबंधी सूचनाएं भी मिलीं ।

इस जांच के दौरान पता चला कि फेसबुक पर शॉपिफाई का स्टोर के रूप में इस्तेमाल करके अपने उत्पादों को बेचने वाली करने वाली कंपनियों की बाढ़ आ गई है। ऐसी कंपनियां लोगों को गुमराह करके काफी पैसे कमा रही हैं।

क्रेग सिल्वरमैन ने अनुमान लगाया कि ऐसी कंपनी वाले लोग प्रत्येक स्टोर का अलग-अलग मिशन स्टेटमेंट लिखने की झंझट नहीं उठाते होंगे। इसकी जांच के लिए उन्होंने कुछ ऑनलाइन स्टोर के ‘हमारे बारे में‘ पृष्ठ से वाक्य निकालकर उनमें उद्धरण चिह्न लगाकर गूगल सर्च किया। उन्होंने लगभग 300 स्टोर मिले। उनमें प्रत्येक साइट पर मिली जानकारी को एक स्प्रेडशीट में लेकर यह पता लगाया कि उन सबका इस घोटाला नेटवर्क से क्या संबंध है।

उन्होंने कहा कि ऐसी मैनुअल जांच करना बेहद मुश्किल काम है। लेकिन यह वास्तव में काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे मुझे उन सभी स्टोरों के बारे में हर चीज समझने का पूरा अवसर मिला।

फिर उन्होंने इस नेटवर्क से जुड़ी लगभग 200 कंपनियों के नाम के साथ सर्च ऑपरेटर में “site:facebook.com” लिखकर सर्च किया। इसके जरिए उन्होंने सोशल मीडिया में इन कंपनियों की पैठ का पता लगाया।

इस स्टोर के फेसबुक पेज में ट्रांसपेरेंसी बॉक्स से कंपनी के असली स्थान का पता चल गया। यह इस नेटवर्क के लगभग 200 स्टोर में एक था

इस स्टोर के फेसबुक पेज में ट्रांसपेरेंसी बॉक्स से कंपनी के असली स्थान का पता चल गया। यह इस नेटवर्क के लगभग 200 स्टोर में एक था

इस सूचना के आधार उन्हें एक ऑनलाइन स्टोर “qomingsoon.com”  के फेसबुक पेज पर जाने का अवसर मिला। इसके ट्रांसपेरेंसी फंक्शन ने आखिरकार उन्हें घोटाले के मुख्यालय के असली स्थान की जानकारी मिली। वह मलेशिया की एक कंपनी थी।

जांच से पता चला कि ‘जेस्ट-एड्स‘ ने फेसबुक पेज के आॅनर का नाम जोड़ने की प्रक्रिया में जालसाजी करके लोगों को भ्रमित किया। इस क्रम में फेसबुक को भी गुमराह किया।

इसके बाद सिल्वरमैन ने इन सभी स्टोरों के पंजीकरण का इतिहास जानने के लिए Whois.net पर DomainBigData.com सर्च किया।

उस समय फेसबुक ने मास्क संबंधी सभी विज्ञापनों पर प्रतिबंध रखा था। इसलिए सिल्वरमैन ने इस कंपनी द्वारा गलत तरीके से ऐसे विज्ञापन देने का भंडाफोड़ करते हुए यह भी खुलासा किया कि फेसबुक अपनी नीति को लागू करने में विफल रहा।

बजफीड ने फेसबुक को ‘जेस्ट-एड्स‘ से जुड़े लगभग 100 पेजों की एक सूची भेजी। इसके आधार पर फेसबुक ने ‘जेस्ट-एड्स‘ को प्रतिबंधित कर दिया।

साजिशकर्ताओं के पर्दाफाश की छह तकनीकें

  • जिस संदिग्ध सोशल मीडिया पेज की आप जांच कर रहे हैं, उस पर अपलोड की गई सबसे पहली प्रोफाइल फोटो या बैकग्राउंड फोटो खोजें। फिर उसे मिले ‘लाइक‘ और कमेंट्स को देखें। अक्सर ऐसे फेसबुक पेज के मालिक तथा उनके करीबी लोग ही इन पर लाइक और कमेंट्स करते हैं। इससे आपको उन तक पहुंचने का रास्ता मिल सकता है।
  • पुराने और नए फेसबुक पेज की सूचनाओं के डिजाइन में थोड़ी भिन्नता है। इसलिए इन दोनों प्रारूपों में उपलब्ध सूचनाओं को देखें। संभव है इसके कारण किसी एक प्रारूप में अधिक उपयोगी डेटा या लिंक मिल जाए। फेसबुक समूहों में रसीदें देखें, जहां उपभोक्ता किसी उत्पाद के बारे में शिकायत करते हैं।
  • किसी ट्रोल से सीधे संपर्क हो, तो उसके काम के पीछे की प्रेरणा या नीयत को समझने का प्रयास करें। आप अपना परिचय एक पत्रकार के रूप में ही देंगे तो ज्यादा सफलता मिलेगा। कुछ ट्रॉल्स अपने पेज की लोकप्रियता पर इंटरव्यू देने के लिए तत्काल राजी हो जाते हैं। लेकिन अगर उनके पेज की गलत सामग्री पर बात करेंगे, तो वे शायद तैयार न हों। कैप्रोन के अनुसार एक पत्रकार को ऐसे मामले में अपने इरादों के बारे में झूठ नहीं बोलना चाहिए, लेकिन यह समझना होगा कि ट्रोल अपने पेज की लोकप्रियता के बारे में बात करना ज्यादा पसंद करते हैं।
  • संदिग्ध वेबसाइट पर ‘हमारे बारे में‘ लिखी गई सामग्री में उद्धरण चिन्ह लगाकर यह सर्च करें कि क्या अन्य स्टोर नेटवर्क में ऐसी ही सामग्री हैं। उनके यूआरएल और डोमेन नेम के साथ भी उद्धरण चिह्न लगाकर  “site:youtube.com” में सर्च करें।
  • किसी सामग्री में भावनात्मक या चरमपंथी भाषा और अपीलों को पहचानें। जैसे कहीं ऐसा लिखा हो-  ‘जल्द पढ़ें, इससे पहले कि ट्विटर इस महत्वपूर्ण समाचार को हटा दें।‘ न्यूजफीड पोस्टों में एक जैसी संरचना के जरिए भी ऐसी पहचान कर सकते हैं। “.news”  डोमेन नेम वाली साइटों पर भी ध्यान दें, क्योंकि कई बार गलत सूचनाओं वाले नेटवर्क इसका उपयोग करते हैं।
  • आप जिन झूठे संदेशों या लोगों की जांच कर रहे हैं, उनका प्रचार न करें, उन्हें बढ़ावा न दें। फ़र्स्ट ड्राफ्ट के ऐमे राइनहार्ट का सुझाव है कि किसी असामाजिक विचार या समूह पर स्टोरी करते समय उसके नाम को अपने शीर्षक और स्टोरी के इंट्रो में जगह न दें। अगर आप उनके नाम को आगे रखेंगे, तो उन्हें ट्रेंडिंग शब्द के रूप में आगे बढ़ने का मौका मिल सकता है। बहुत से लोग या स्वार्थी समूह अपना प्रचार चाहते हैं। आपकी स्टोरी और शीर्षक ऐसे हों, जिससे उन्हें प्रचार लाभ न मिले सिल्वरमैन का सुझाव है कि इन खबरों को मुख्य तथ्यों के साथ शुरू करें। इसके बाद झूठ का सावधानीपूर्वक वर्णन करें। पाठकों को सच्चाई याद दिलाने के लिए सत्यापित तथ्यों को अंत में फिर दोहरा दें। आप ट्रोल को जवाबदेह ठहराएं, न कि उन्हें प्रचार दें, जैसा कि वह चाहते हैं।

ग़लत सूचनाओं के साम्राज्यों का पर्दाफाश

यूके स्थित Institute for Strategic Dialogue (ISD) एक चरमपंथ विरोधी नागरिक संगठन है। यह पत्रकारों के साथ मिलकर काम करता है। इसने जून 2020 में कोविड-19 पर गलत सूचनाओं के दुनिया भर के प्रमुख साजिकशकर्ता को पर्दाफाश करने वाली जांच रिपोर्ट प्रकाशित की – A comprehensive investigation into one of the world’s largest contributors to COVID-19 disinformation।

इस जांच में पाया गया कि 496 डोमेन उस वक्त तक यूएस आधारित ‘नेचुरल न्यूज नेटवर्क‘ और इसके संस्थापक माइक एडम्स से जुड़े हुए थे। जबकि उस कोर डोमेन पर जून-2019 में ही फेसबुक सहित विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों  ने प्रतिबंध लगा दिखा था।

इस कुप्रचार नेटवर्क ने बिल गेट्स और 5-जी टावरों को लेकर काफी झूठी पोस्ट जारी की थी। इसने कोरोना महामारी को षड्यंत्र बताने वाले कई वीडियो जारी करके ‘सुपर स्प्रेडर‘ का काम किया। इनमें यह झूठे दावे किए गए थे कि इस महामारी को किसी योजनाबद्ध तरीके से लाया गया है।

आइएसडी के जांचकर्ताओं ने इस नक्शे के द्वारा बताया है कि कोरोना-19 पर गलत सूचनाओं के नेचुरल न्यूज नेटवर्क से जुड़े डोमेन मालिकों और वाणिज्यिक संस्थाओं का क्या संबंध है

आईएसडी की रिपोर्ट में कहा गया है कि नेचुरल न्यूज नेटवर्क और इसके डोमेन को फेसबुक ने वर्ष 2019 में ही प्रतिबंधित कर दिया था। वर्ष 2020 में भी फेसबुक ने प्रतिबंध जारी रखा। इसके बावजूद इस नेटवर्क ने कोविड-19 और जॉर्ज फ्लोयड विरोध सहित अन्य विषयों पर गलत सूचनाएं साझा करने के लिए फेसबुक का दुरुपयोग जारी रखा। वर्ष 2020 में प्रतिबंध के बाद तीन महीनों के भीतर इस डोमेन के कंटेंट को 5,62,193 इंटरैक्शन मिला।

आईएसडी की डिजिटल रिसर्च यूनिट के प्रमुख क्लो कोलिवर ने कहा- ”गलत सूचनाओं के अभियान के पीछे जिम्मेवार अपराधियों का पता लगाना जरूरी है। लेकिन यह बहुत जटिल काम है। ऐसे नापाक चरित्र वाले लोगों का पर्दाफाश करने के लिए काफी कौशल और साहस की जरूरत होती है। जनता को यह बताना महत्वपूर्ण है कि इन चीजों को नियंत्रित करना असंभव नहीं है। ऐसे लोगों के पास कई तरह के सत्ता समीकरण होते हैं। इसलिए पत्रकारों के लिए इनकी जांच के लिए काफी गतिशील होना महत्वपूर्ण है।”

क्लो कोलिवर ने कहा कि CrowdTangle, Gephi, और Bellingcat’s List of OSINT  ऐसे जटिल नेटवर्क की जांच में महत्वपूर्ण साबित हुई है। नेचुरल न्यूज के ऑनलाइन पते का ब्रिक-एंड-मोर्टार के कार्यालयों से क्या संबंध है, यह पता लगाने के लिए आईएसडी शोधकर्ताओं ने Google Earth Pro का उपयोग किया।

इस जाँच में यह बात भी सामने आई कि गलत सूचनाएं फैलाने वाले कुछ नेटवर्क अपने पाठकों को वैचारिक रूप से विभाजित करने का भी प्रयास करते हैं। इसके लिए वे उन्हें उन साइटों पर ले जाते हैं जहां उन्हें पसंद न आने वाली सामग्रियों को हटा दिया जाता हो।

उदाहरण के लिए, जिन पाठकों की अपने स्वास्थ्य में रुचि हो, लेकिन जो ‘बंदूक का अधिकार‘ को पसंद नहीं करते, उनके लिए इस नेटवर्क ने विशेष इंतजाम कर रखा था। ऐसे पाठकों को वैकल्पिक स्वास्थ्य संबंधी को गुमराह करने वाले दावों की सामग्री के लिए “.news” डोमेन वाली वेबसाइट उपलब्ध कराई गई। इनमें ‘प्रो-बंदूक‘ प्रचार नहीं किया गया।

गलत सूचनाओं के क्षेत्र पर नज़र

कोलिवर ने ‘डार्क पीआर‘ की भी जांच का सुझाव दिया। कई मामले में किसी व्यक्ति अथवा संस्थान को बदनाम करने के लिए ‘डार्क पीआर‘ फर्मों की सेवाएं ली जाती हैं। इसके लिए रणनीतिक रूप से झूठ फैलाया जाता है। इसलिए पत्रकारों के लिए यह भी जांच का क्षेत्र होना चाहिए।

क्लो कोलिवर ने कहा- “मुझे लगता है कि ‘डार्क पीआर‘ का क्षेत्र काफी व्यापक है, जबकि इसपर बेहद कम शोध किया गया है। कोरोना-19 संबंधी गलत सूचनाओं के प्रसारण में उनकी बहुत बड़ी भूमिका है।“

बजफीड के क्रेग सिल्वरमैन ने कहा- “मुझे संदेह है कि दुनिया भर में कोरोना पर गलत सूचनाओं के पर्दाफाश के लिए चीन के प्रयासों के बारे में और अधिक जानकारी मिल पाएगी। संभवतः दुनिया भर में ऐसे वित्त संचालित लोग हैं, जो गलत तरीके से धन कमाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें हम अभी तक उजागर नहीं कर पाए हैं।“

उन्होंने कहा- “हमें यह समझना होगा कि QAnon नामक षड्यंत्रकारी समूह, वैक्सीन विरोधी समुदाय और सरकार विरोधी चरमपंथियों ने कोरोना महामारी के बहाने किस तरह एक अपवित्र गठबंधन बना लिया। ये लोग एक साथ मिलकर मास्क पहनने के खिलाफ कुप्रचार कर रहे थे और कोरोना को जान-बूझकर पैदा की गई महामारी बताकर लोगों को गुमराह कर रहे थे।“

पत्रकार एलेक्जेंडर कैप्रोन (फ्रांस-24) ने कहा- “मैंने एक हाॅक्स पेज के बीस वर्षीय मैनेजर का साक्षात्कार लिया था। उसे यह पता ही नहीं था कि कोविड-19 पर अपने 37 पोस्ट के जरिए उसने क्या नुकसान पहुंचाया है।“

एक झूठा दावा यह किया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 के इलाज के लिए एक मेडागास्कर की हर्बल उपचार को मंजूरी दी है। इसी तरह, फ्रांस के एक महामारी विशेषज्ञ डिडियर राउल्ट का टीकाकरण के खिलाफ एक फर्जी उद्धरण भी वायरल किया गया। इसी तरह भारत में बाबा रामदेव की जड़ी-बूटी के मामले में हुआ।

पत्रकार एलेक्जेंडर कैप्रोन ने कहा- “वह छात्र अपने गलत सूचना अभियान के खेल के लक्ष्य के बारे में स्पष्ट था। उसकी रणनीति अपनी फर्जी सामग्री को कई प्रमुख समूहों में साझा करने की थी। ऐसे समूहों में साझा करने से उस फर्जी खबर के वास्तविक होने का भ्रम फैलता है।“

कैप्रॉन ने कहा- “उसका अभियान काफी लोकप्रिय था। वह कांगो प्रवासी लोगों में पश्चिम के प्रति आक्रोश को भुनाया करता था। इनमें कहानियाँ ऐसी होती थीं, जिन पर लोग विश्वास कर सकें। ये बहुत युवा लोग थे, और बहुत स्मार्ट थे। ये लोग सोशल मीडिया को समझते हैं और इन्हें मालूम है कि लोग क्या पढ़ना चाहते हैं।“


रोवन फिलिप ‘जीआईजेएन’ के संवाददाता हैं। वह पहले दक्षिण अफ्रीका के संडे टाइम्स के मुख्य संवाददाता थे। एक विदेशी संवाददाता के रूप में उन्होंने दुनिया भर के दो दर्जन से अधिक देशों से समाचार, राजनीति, भ्रष्टाचार और संघर्ष पर रिपोर्टिंग की है।

 

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